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Sachin Tiwari

Inspirational

4  

Sachin Tiwari

Inspirational

अंतर्तम

अंतर्तम

43 mins
15

प्रस्तावना


हम रोज़ भागते हैं—कभी कल के लिए, कभी आने वाले किसी सुनहरे भविष्य के लिए। पर शायद ही कभी रुककर हमने आज को जिया हो। हमारे हाथों में मोबाइल है, दिमाग़ में योजनाएँ हैं, मगर दिल में एक अनकहा खालीपन है। यही खालीपन हमें पुकारता है

"रुको, और भीतर झाँको।"


“अंतरतम” उसी झाँकने की कला है।

यह कोई धर्मग्रंथ नहीं, कोई भारी उपदेश नहीं—यह तो बस एक दीपक है, जो आपको आपके भीतर छुपी रोशनी तक ले जाएगा। आप जानेंगे कि शांति कहीं दूर नहीं, वह आपकी हर साँस में है। सुकून किसी और के पास नहीं, वह आपके ही मौन में है।

यह पुस्तक आपको आमंत्रित करती है— हर क्षण को सजगता से जीने के लिए। हर अनुभव को पूरे मन से महसूस करने के लिए। और सबसे बढ़कर, अपने अंतरतम से मिलने के लिए। क्योंकि जब हम भीतर उतरते हैं, तभी जीवन बाहर भी उज्ज्वल हो उठता है।



भूमिका

मनुष्य का सबसे बड़ा संघर्ष बाहर की दुनिया से नहीं, अपने ही भीतर से है। हर इंसान जीवन में सुख, शांति और संतुलन चाहता है, परंतु अधिकतर लोग यह खोज बाहर करते हैं—धन, मान-सम्मान, रिश्तों और उपलब्धियों में। सच्चाई यह है कि जो तलाश हम बाहर कर रहे हैं, उसका स्रोत हमारे ही भीतर छिपा है।

“अंतरतम” इसी भीतर की खोज की यात्रा है। यह पुस्तक पाठक को सजगता (Mindfulness) के माध्यम से अपने गहरे स्व से जोड़ने का प्रयास करती है।

सजगता का अर्थ केवल ध्यान की मुद्रा में बैठना नहीं है, बल्कि रोज़मर्रा की साधारण गतिविधियों—खाना, चलना, बोलना, सुनना—में पूरी तरह उपस्थित होना है। जब हम हर क्षण को सचमुच जीते हैं, तभी जीवन की असली सुगंध मिलती है।

इस पुस्तक की रचना का उद्देश्य है— मनुष्य को तनाव, चिंता और भय से बाहर निकलने का सरल मार्ग देना।

यह दिखाना कि आध्यात्मिकता केवल साधु-संतों के लिए नहीं, बल्कि सामान्य जीवन जीने वालों के लिए भी है। पाठक को व्यावहारिक अभ्यासों और अनुभवों के माध्यम से आत्म-अन्वेषण की ओर ले जाना।


“अंतरतम” उन सभी के लिए है जो जीवन में गहराई चाहते हैं। यह उन लोगों के लिए है जो बाहरी उपलब्धियों के बावजूद भीतर के खालीपन से जूझ रहे हैं। यह पुस्तक कोई अंतिम सत्य नहीं देती, बल्कि हर पाठक को उसकी अपनी राह खोजने का निमंत्रण देती है।


सामग्री-सूची


भाग 1 – खोज की शुरुआत

1. अंतरतम का द्वार – भीतर की पुकार

2. भागदौड़ और खालीपन – क्यों ज़रूरी है रुकना

3. सजगता का अर्थ – माइंडफुलनेस क्या है?


भाग 2 – सजगता के अभ्यास

4. साँस का संगीत – श्वास पर ध्यान

5. क्षण को जीना – वर्तमान की शक्ति

6. मौन का जादू – चुप्पी में छिपा संवाद

7. सजग आहार – mindful eating

8. सजग चाल – mindful walking

9. सजग कर्म – काम को ध्यान बनाना


भाग 3 – जीवन में सजगता

10. रिश्तों में सजगता – सुनना, समझना, अपनाना

11. तनाव से शांति तक 

12. अकेलापन और आत्मीयता – भीतर जुड़ाव

13. काम और करियर में सजगता 


भाग 4 – अंतरतम की यात्रा

14. अंतर की आँख – आत्म-दर्शन

15. चेतना का स्पर्श – भीतर की शांति

16. जीवन एक ध्यान – हर पल को साधना बनाना

17. मुक्ति की ओर – भीतर-बाहर की आज़ादी


परिशिष्ट (Appendix)

30 दिन का सजगता अभ्यास कार्यक्रम

आशा है, यह ग्रंथ आपके जीवन को नयी दृष्टि देगा और आपको आपके भीतर सोई हुई शांति से परिचित कराएगा।


अध्याय 1 : अंतरतम का द्वार


हम सभी जीवन में किसी न किसी दरवाज़े की तलाश करते हैं—कभी अवसर का, कभी सफलता का, कभी रिश्तों का। लेकिन सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण दरवाज़ा हमारे सामने हमेशा रहता है, जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं—यह है अंतरतम का द्वार। यही वह द्वार है, जो हमें हमारी असली पहचान, हमारी गहराई और हमारे भीतर छुपी शांति तक ले जाता है।


आधुनिक जीवन की तेज़ रफ़्तार में हम बाहर की दुनिया को जीतने में लगे रहते हैं। सुबह से रात तक की भागदौड़, मोबाइल स्क्रीन पर अनगिनत सूचनाएँ, और मन में उठते हजारों विचार हमें कभी चैन से बैठने ही नहीं देते। हम बाहर बहुत कुछ पा लेते हैं, लेकिन भीतर खालीपन महसूस करते हैं। यह खालीपन ही हमारी आत्मा की पुकार है। यह हमें कहता है—“रुको, और मेरे पास आओ।”


अंतरतम का द्वार बाहर कहीं नहीं है। यह न तो किसी मंदिर में, न किसी पर्वत की गुफ़ा में और न ही किसी पवित्र नदी के किनारे पर। यह हमारे भीतर ही है। लेकिन समस्या यह है कि हम इतना बाहर भागते हैं कि भीतर झाँकने का साहस ही नहीं कर पाते। और जब कभी भीतर उतरने की कोशिश करते हैं, तो हमें अपने ही विचारों का शोर रोक देता है। यही कारण है कि बहुत से लोग ध्यान (Meditation) शुरू तो करते हैं, पर जल्दी हार मान लेते हैं। वे सोचते हैं कि शांति मिलना कठिन है।


लेकिन सच्चाई यह है कि शांति कठिन नहीं है, केवल साधारण है। अंतरतम का द्वार किसी जटिल साधना से नहीं, बल्कि सरल सजगता से खुलता है। यह सजगता हमें हर क्षण जीने की कला सिखाती है। जब हम साँस लेते हुए सचमुच यह महसूस करें कि हम साँस ले रहे हैं, तब हम अंतरतम के दरवाज़े पर दस्तक देते हैं। जब हम चलते हुए केवल चलने पर ध्यान दें, न कि भविष्य की चिंताओं पर, तब हम उस द्वार के और करीब पहुँचते हैं।


इस यात्रा में सबसे पहली ज़रूरत है रुकना।

रुकना यानी थम जाना, ठहरना, एक क्षण के लिए भागदौड़ छोड़ देना। जब हम रुकते हैं, तभी हमें एहसास होता है कि जीवन कितनी तेज़ी से बह रहा था। रुककर हम उस प्रवाह को देख पाते हैं और पहचानते हैं कि हम कहाँ जा रहे हैं। यही रुकना हमें भीतर की ओर मोड़ता है।


अंतरतम का द्वार हमेशा खुला रहता है, लेकिन उसकी ओर जाने वाली राह धूल और धुँध से ढकी होती है। यह धूल हमारे विचारों, हमारी आदतों और हमारी चिंताओं की है। हम अपने ही मन की गहराई तक नहीं पहुँच पाते क्योंकि हम अपने ही शोर में उलझे रहते हैं। सजगता यानी mindfulness इस धूल को धीरे-धीरे साफ़ करने की प्रक्रिया है। यह कोई जादू नहीं, बल्कि अभ्यास है।


जैसे कोई बच्चा धीरे-धीरे चलना सीखता है, वैसे ही सजगता भी धीरे-धीरे सीखी जाती है। शुरुआत में यह कठिन लगती है। मन बार-बार भागता है। विचार बार-बार घेरते हैं। पर हर बार जब हम साँस पर लौट आते हैं, हर बार जब हम वर्तमान क्षण में लौट आते हैं, तो समझिए हम अंतरतम के द्वार के और नज़दीक पहुँच रहे हैं।


यह द्वार खुलने पर हमें बाहर की दुनिया से अलग कोई नया ब्रह्मांड नहीं मिलता। बल्कि हम उसी दुनिया को नए दृष्टिकोण से देखने लगते हैं। पहले जो बातें हमें तनाव देती थीं, वही बातें अब हमें समझने का अवसर देती हैं। पहले जो रिश्ते बोझ लगते थे, वही रिश्ते अब जुड़ाव का माध्यम बनते हैं। और सबसे बड़ी बात—पहले जहाँ जीवन केवल जिम्मेदारियों का बोझ लगता था, वहीं अब वही जीवन एक वरदान लगने लगता है।


“अंतरतम का द्वार” केवल एक आध्यात्मिक कल्पना नहीं है, यह एक व्यावहारिक सच्चाई है। अगर आप दिन में केवल पाँच मिनट भी सचेत होकर बैठें और अपनी साँसों पर ध्यान दें, तो आप उस द्वार की आहट महसूस करेंगे। धीरे-धीरे यह आहट गहराई में ले जाएगी। और एक दिन ऐसा होगा जब आपको महसूस होगा कि द्वार कभी बंद ही नहीं था—बस आपकी आँखें उस ओर नहीं देख रही थीं।


इस अध्याय का सार यही है कि सजगता का पहला कदम है—भीतर लौटना। हमें बार-बार खुद से कहना होगा—“मैं वही हूँ, जिसकी मुझे तलाश है।”

जब हम यह स्वीकार कर लेते हैं, तभी अंतरतम का द्वार वास्तव में खुलता है।


अध्याय 2 : भागदौड़ और खालीपन


हमारी ज़िंदगी बाहर से जितनी चमकदार दिखाई देती है, भीतर से उतनी ही खाली होती जा रही है। सुबह की शुरुआत मोबाइल की स्क्रीन से होती है और रात का अंत थकान से भरे हुए मन से। दिनभर काम, परिवार, रिश्ते और जिम्मेदारियों की आपाधापी में हम इतना उलझ जाते हैं कि खुद से मिलने का समय ही नहीं निकाल पाते।


आज की दुनिया में हर कोई भाग रहा है। कोई नौकरी की सुरक्षा के लिए, कोई सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए, कोई रिश्तों को संभालने के लिए। यह भागदौड़ हमें बाहर से व्यस्त और सक्रिय तो दिखाती है, लेकिन भीतर धीरे-धीरे एक खालीपन बढ़ने लगता है। यह वही खालीपन है जो हमें रातों को चैन से सोने नहीं देता। वही खालीपन जो भीड़ में भी हमें अकेला महसूस कराता है।


अगर हम ध्यान से देखें तो यह खालीपन कोई बीमारी नहीं, बल्कि संकेत है। संकेत इस बात का कि हमने अपने भीतर की ज़रूरतों को अनसुना कर दिया है। हमने केवल बाहर के लक्ष्यों को महत्व दिया है, पर अपने मन की गहराई से संवाद करना भूल गए हैं।


याद कीजिए, बचपन में जब हम खेलते थे तो हमें समय का होश नहीं रहता था। वह सजगता थी—वह क्षण में जीना था। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े हुए, हमने अपने जीवन को योजनाओं, उम्मीदों और भय के जाल में बाँध लिया। अब हमारा मन या तो अतीत के पछतावे में रहता है या भविष्य की चिंता में। वर्तमान—जो असली जीवन है—वह हमारे हाथ से फिसल जाता है। यही वजह है कि जीवन भर की भागदौड़ के बावजूद हम भीतर से अधूरे रहते हैं।


खालीपन को अक्सर लोग कमजोरी मानते हैं, लेकिन यह कमजोरी नहीं—यह निमंत्रण है। यह हमें पुकारता है कि हम भीतर लौटें। जब भीतर का खालीपन बहुत गहरा हो जाता है, तब ही इंसान आत्म-खोज की यात्रा शुरू करता है। यही खालीपन हमें सजगता की ओर धकेलता है।


लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है—क्या हम भागदौड़ से पूरी तरह बच सकते हैं?

उत्तर है—नहीं।

जीवन की जिम्मेदारियाँ, रिश्तों की माँग और कामकाज की ज़रूरतें बनी ही रहेंगी। लेकिन सजगता हमें यह सिखाती है कि हम भागदौड़ के बीच भी भीतर की शांति पा सकते हैं। यह कोई पलायन नहीं है, बल्कि एक नया दृष्टिकोण है।


जब हम अपने मन को थमाना सीखते हैं, तो पाते हैं कि खालीपन डरावना नहीं, बल्कि स्वागतयोग्य है। जैसे किसी बर्तन को भरने के लिए पहले उसे खाली करना पड़ता है, वैसे ही जीवन को गहराई से जीने के लिए भी भीतर थोड़ी जगह खाली होना ज़रूरी है। इस खालीपन को स्वीकार करना ही सजगता की शुरुआत है।


भागदौड़ हमें थकाती है, पर खालीपन हमें पुकारता है। दोनों के बीच संतुलन पाना ही अंतरतम का मार्ग है। अगर हम हर दिन कुछ क्षण रुकें, साँसों की गिनती करें, और अपने भीतर झाँकें, तो धीरे-धीरे यह खालीपन बोझ नहीं लगेगा। यह शांति का द्वार बन जाएगा।


जीवन का सच यही है—हम बाहर जितना दौड़ेंगे, भीतर उतना ही खाली महसूस करेंगे। और जब हम भीतर लौटेंगे, तब पाएँगे कि हमें बहुत दूर जाने की ज़रूरत ही नहीं थी। जो खोज हम बाहर कर रहे थे, वह तो हमेशा से हमारे ही अंतरतम में छुपी थी।


अध्याय 3 : सजगता का अर्थ


सजगता—यह शब्द सुनते ही बहुतों के मन में अलग-अलग तस्वीरें उभरती हैं। कोई सोचता है कि यह केवल ध्यान की कोई विशेष तकनीक है, कोई मानता है कि यह योगियों या साधुओं की साधना है, और कुछ इसे पश्चिमी दुनिया का नया फैशन समझते हैं। लेकिन असल में सजगता (Mindfulness) न तो कठिन साधना है, न ही कोई नया विचार। यह तो जीवन की सबसे पुरानी, सबसे सहज और सबसे सुंदर कला है—क्षण को पूरी तरह जीने की कला।


सजगता का अर्थ है—जहाँ हैं, वहीं होना।

लेकिन हमारा मन कहाँ है?

हमारा शरीर यहाँ है, पर मन या तो अतीत की गलियों में भटक रहा है या भविष्य की चिंताओं में उलझा है। इसी वजह से हम जीवन को वैसे नहीं जी पाते जैसे वह हमारे सामने खुल रहा है। सजगता हमें सिखाती है कि कैसे हर क्षण में पूरी उपस्थिति के साथ जिया जाए।


जब आप चाय पी रहे हों और सचमुच महसूस करें कि कप की गर्माहट आपके हाथों तक पहुँच रही है, उसकी खुशबू आपकी साँसों में घुल रही है, और हर घूँट आपके भीतर उतर रहा है—तो यह सजगता है।

जब आप किसी से बात कर रहे हों और पूरी ईमानदारी से उसकी आँखों में देख रहे हों, बिना मन ही मन जवाब सोचने के, तब आप सजग हैं।

जब आप रास्ते पर चल रहे हों और हर कदम की धड़कन सुन रहे हों, तब आप सजग हैं।


सजगता का अर्थ यह नहीं कि विचार आना बंद हो जाएँ। विचार तो आते रहेंगे—कभी अच्छे, कभी बुरे, कभी मीठे, कभी कड़वे। सजगता का मतलब है—विचारों को आना-जाना देखना, बिना उनसे उलझे। जैसे आकाश में बादल आते हैं और चले जाते हैं, वैसे ही मन में विचार आते हैं और चले जाते हैं। आकाश को बादलों से कोई फर्क नहीं पड़ता, वैसे ही सजगता में रहने वाले को विचारों से कोई परेशानी नहीं होती।


जब हम सजग नहीं होते, तो जीवन अपने असली सौंदर्य से दूर हो जाता है। हम खाना खाते हैं, लेकिन उसका स्वाद नहीं लेते। हम सुनते हैं, लेकिन वास्तव में सुनते नहीं। हम जीते हैं, लेकिन जीना भूल जाते हैं। सजगता हमें जीवन के इस खोए हुए स्वाद से फिर से मिलाती है।


सजगता का सबसे बड़ा उपहार है—शांति।

यह शांति बाहर से नहीं आती, यह हमारे भीतर पहले से ही मौजूद है। लेकिन हमारे व्यस्त मन का शोर उसे ढक देता है। जैसे तालाब की सतह पर लहरें उठती हैं तो पानी में आकाश का प्रतिबिंब साफ़ नहीं दिखता, वैसे ही हमारे विचारों की हलचल हमें भीतर की शांति देखने से रोक देती है। जब हम सजग होते हैं, तो लहरें शांत हो जाती हैं और आत्मा का आकाश साफ़ दिखाई देने लगता है।


इस अध्याय का सार यही है कि सजगता कोई तकनीक नहीं, बल्कि जीवन का स्वभाव है। हर बच्चा जन्म से सजग होता है। वह खिलौने को देखकर पूरे मन से मुस्कुराता है, फूल को देखकर ठहर जाता है, और छोटी-सी चीज़ से भी खुश हो जाता है। लेकिन बड़े होते-होते हम वह मासूम सजगता खो देते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य है—उसी खोए हुए खज़ाने को फिर से पाना।


सजगता का अर्थ है—जीवन को उसकी संपूर्णता में जीना।

हर साँस में, हर कदम में, हर क्षण में।

यही सजगता हमें अंतरतम तक पहुँचाती है।


अध्याय 4 : साँस का संगीत


जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि हम साँस ले रहे हैं।

जब तक साँस है, तब तक जीवन है। पर आश्चर्य की बात यह है कि हम दिनभर हजारों साँसें लेते हैं, फिर भी शायद ही कभी सचेत होकर एक भी साँस को महसूस करते हों। यही भूल हमें जीवन की असली गहराई से दूर कर देती है।


सजगता की यात्रा का पहला और सबसे सरल अभ्यास है—साँस को देखना।

साँस हमारे शरीर और मन के बीच सेतु है। जब हम चिंतित होते हैं तो साँस तेज़ और उथली हो जाती है। जब हम शांत होते हैं तो साँस गहरी और सहज बहने लगती है।

यानी हमारी साँस हमारे भीतर की स्थिति का आईना है।


कल्पना कीजिए—आप किसी पेड़ की छाँव में बैठे हैं और आँखें बंद कर बस अपनी साँस को देख रहे हैं। साँस भीतर जाती है, साँस बाहर आती है। बिना किसी प्रयास के, बिना किसी नियंत्रण के। धीरे-धीरे आप महसूस करेंगे कि हर साँस एक संगीत है, जो भीतर और बाहर के बीच तालमेल बना रहा है। यही है साँस का संगीत।


साँस पर ध्यान देने से मन धीरे-धीरे वर्तमान क्षण में लौटने लगता है। जो मन अतीत और भविष्य में भटक रहा था, वह अब यहीं ठहर जाता है। यह ठहरना ही शांति है। यही वह क्षण है जब हम अंतरतम के द्वार पर खड़े होते हैं।


साँस का अभ्यास करने का एक सरल तरीका है—


1. आराम से बैठ जाइए।

2. आँखें बंद कर लीजिए।

3. अब केवल अपनी साँस को देखिए।

साँस भीतर जाती है, बस देखिए।

साँस बाहर आती है, बस देखिए।

4. मन भटकेगा, विचार आएँगे।

उन्हें रोकने की कोशिश मत कीजिए।

बस धीरे-धीरे ध्यान फिर साँस पर ले आइए।


यह अभ्यास आप दिन में कहीं भी, कभी भी कर सकते हैं—काम पर, यात्रा में, या घर में। शुरू में दो-तीन मिनट ही पर्याप्त हैं। धीरे-धीरे यह समय बढ़ेगा और आपको महसूस होगा कि आपके भीतर एक अनकही शांति जन्म ले रही है।


साँस का संगीत हमें यह भी सिखाता है कि जीवन कितना क्षणभंगुर है। हर साँस आती है और चली जाती है। हर क्षण उठता है और मिट जाता है। यही जीवन का स्वभाव है। जब हम इसे समझ लेते हैं, तो पकड़ने की आदत कम हो जाती है। हम छोड़ना सीखते हैं—ग़ुस्सा, दुःख, डर और चिंता।


साँस हमें यह भी याद दिलाती है कि हम अकेले नहीं हैं।

जब हम साँस लेते हैं तो हवा के साथ पूरा ब्रह्मांड हमारे भीतर प्रवेश करता है। जब हम साँस छोड़ते हैं तो हम अपनी उपस्थिति संसार में लौटाते हैं। इस प्रकार हर साँस हमें जोड़ती है—अपने शरीर से, अपने मन से, और पूरे अस्तित्व से।


धीरे-धीरे जब साँस सजगता का द्वार बन जाती है, तो हमें जीवन का हर पल एक उपहार लगने लगता है। तब साधारण पल भी असाधारण हो जाते हैं। एक गिलास पानी पीना, बच्चे की हँसी सुनना, या पेड़ों की हरियाली देखना—सबमें वही संगीत सुनाई देता है, जो साँस में है।


इस अध्याय का सार यही है कि सजगता की शुरुआत किसी कठिन साधना से नहीं, बल्कि हमारी साँस से होती है। साँस तो पहले से ही हमारे साथ है—बस उसे सुनना है, देखना है, महसूस करना है। जब हम सचमुच साँस के संगीत को सुन लेते हैं, तब हमें एहसास होता है कि जीवन कितना गहरा और कितना सुंदर है।


अध्याय 5 : क्षण को जीना – वर्तमान की शक्ति


हमारे जीवन का सबसे बड़ा विरोधाभास यही है कि हम वर्तमान में रहते हुए भी वर्तमान को जी नहीं पाते।

शरीर यहाँ है, पर मन अतीत की गलियों में भटक रहा है या भविष्य की आशंकाओं में उलझा हुआ है। इसी कारण हम जीवन को पूरी तरह अनुभव नहीं कर पाते।


वर्तमान क्षण ही एकमात्र वास्तविकता है। अतीत केवल स्मृति है और भविष्य केवल कल्पना। परंतु सच यह है कि न स्मृति को बदला जा सकता है, न कल्पना को नियंत्रित किया जा सकता है। बदलने योग्य केवल यह क्षण है—यहीं, अभी।


जब हम सजग होकर वर्तमान को जीते हैं तो छोटी-सी घटना भी जीवनदायी बन जाती है।

जब आप बच्चे की मुस्कान को सचेत होकर देखते हैं, तो वह मुस्कान आपके हृदय में उतर जाती है।

जब आप भोजन को पूरे मन से खाते हैं, तो उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है।

जब आप मित्र की बात पूरी उपस्थिति के साथ सुनते हैं, तो वह सुना हुआ शब्द हृदय को छू जाता है।

यही है वर्तमान की शक्ति।


लेकिन प्रश्न यह है कि हम वर्तमान को जी क्यों नहीं पाते?

उत्तर है—हमारे विचार।

विचार हमें या तो पछतावे में घसीट ले जाते हैं या चिंता में डाल देते हैं। हम हर पल किसी और पल की प्रतीक्षा करते रहते हैं—“जब मुझे सफलता मिलेगी, तब मैं खुश होऊँगा। जब सबकुछ ठीक होगा, तब मैं चैन से जी पाऊँगा।” लेकिन वह क्षण कभी आता ही नहीं, क्योंकि जब वह आता है, तब तक हमारा मन फिर किसी और क्षण की प्रतीक्षा करने लगता है।


सजगता हमें यही सिखाती है कि जीवन अभी है।

खुशी कोई भविष्य की मंज़िल नहीं, बल्कि यही वर्तमान क्षण है। अगर हम इसे खो देते हैं, तो जीवन को ही खो देते हैं।


वर्तमान को जीने का अभ्यास भी सरल है।

जब आप टहल रहे हों, तो हर कदम को महसूस करें।

जब आप किसी से बात कर रहे हों, तो मन को भटकने न दें।

जब आप चाय पी रहे हों, तो मोबाइल पर न भागें, बस स्वाद में डूब जाएँ।

ये छोटे-छोटे अभ्यास हमें धीरे-धीरे वर्तमान की शक्ति का अनुभव कराते हैं।


वर्तमान क्षण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हमें स्वतंत्र करता है।

अतीत की जंजीरें और भविष्य की चिंताएँ हमें बाँधती हैं, लेकिन वर्तमान क्षण हमें मुक्त करता है। इस क्षण में कोई बोझ नहीं है, कोई डर नहीं है, कोई पछतावा नहीं है। यहाँ केवल जीवन है—खुला हुआ, ताज़ा, और जीवंत।


वर्तमान में जीना यह भी सिखाता है कि हर क्षण एक उपहार है। इसे ही अंग्रेज़ी में “present” कहते हैं, जिसका अर्थ होता है तोहफ़ा। जब हम इस तोहफ़े को खोलते हैं, तभी जीवन का रस चखते हैं। अन्यथा हम जीते तो रहते हैं, पर जीना भूल जाते हैं।


इस अध्याय का सार यही है कि सजगता का सबसे सुंदर आयाम है—क्षण को जीना।

जब हम वर्तमान की शक्ति को पहचान लेते हैं, तब हमें महसूस होता है कि जीवन हमेशा हमारे हाथ में था, बस हमारा ध्यान कहीं और भटक गया था।


अध्याय 6 : मन का दर्पण – विचारों को देखना


हमारे भीतर का मन एक विशाल आकाश की तरह है, जिसमें हर पल विचारों के बादल आते-जाते रहते हैं। कभी हल्के, कभी भारी, कभी चमकीले, कभी गहरे। हममें से ज़्यादातर लोग इन बादलों को ही सच मान लेते हैं और उनके पीछे-पीछे दौड़ते रहते हैं। यही कारण है कि मन अक्सर थका हुआ और बोझिल महसूस होता है।


पर सजगता हमें एक नई दृष्टि देती है—मन को दर्पण की तरह देखना।

दर्पण केवल दिखाता है, वह किसी छवि से जुड़ता नहीं। उसमें जो भी आता है, वह दिखाई देता है और फिर चला जाता है। दर्पण कभी पकड़ता नहीं, कभी रोकता नहीं।


यदि हम अपने विचारों को इसी तरह देखना सीख लें, तो जीवन बहुत हल्का हो सकता है। विचारों को देखना मतलब है—उनके पीछे अंधाधुंध भागना बंद करना। अगर ग़ुस्से का विचार आए, तो बस देखना कि “ग़ुस्सा आया है।” अगर दुःख का भाव आए, तो देखना कि “मन दुखी है।” अगर खुशी का विचार आए, तो देखना कि “मन प्रसन्न है।” बस देखना, बिना मूल्यांकन किए। बिना यह सोचे कि यह अच्छा है या बुरा।


यह देखने का अभ्यास हमें यह अहसास कराता है कि हम विचार नहीं हैं। हम उन विचारों के साक्षी हैं।

जैसे आकाश बादलों से अलग है, वैसे ही हम अपने विचारों से अलग हैं। मन का दर्पण हमें यह भी सिखाता है कि विचार स्थायी नहीं होते।

जो विचार इस क्षण भारी लग रहा है, वह अगले ही क्षण बदल सकता है। दुख के बाद सुख आता है, और सुख के बाद दुख। यह प्रवाह चलता रहता है। जब हम इस प्रवाह को देखना सीखते हैं, तो उसमें बहना बंद कर देते हैं।


विचारों को देखना शुरू में आसान नहीं लगता। मन भागता है, ध्यान बिखरता है। लेकिन अभ्यास से यह कला विकसित होती है।

एक सरल तरीका है—

1. आँखें बंद कीजिए।

2. आराम से बैठिए और अपनी साँस पर ध्यान दीजिए।

3. जब कोई विचार आए, तो उसे नाम दीजिए—“यह सोच है।”

4. उसे रोकने की कोशिश मत कीजिए। बस देखिए और फिर ध्यान साँस पर लौटा दीजिए।


धीरे-धीरे यह अभ्यास हमें यह एहसास दिलाता है कि मन की लहरें हमें नियंत्रित नहीं करतीं, हम उनके साक्षी हैं। जब यह समझ गहराती है, तब जीवन में एक हल्कापन आ जाता है। विचार आते हैं, जाते हैं, लेकिन भीतर शांति बनी रहती है। यही शांति सजगता की जड़ है।


इस अध्याय का सार यही है कि मन को दर्पण की तरह देखना सीखना सजगता की सबसे बड़ी उपलब्धि है। जब हम विचारों को पकड़ना बंद कर देते हैं, तो मन का बोझ उतर जाता है और भीतर का आकाश साफ़ हो जाता है। तब अंतरतम की रोशनी अपने आप प्रकट होती है।


अध्याय 7 : सजग आहार


जीवन को सजगता से जीने का अर्थ केवल ध्यान में बैठना या साँस पर ध्यान देना ही नहीं है, बल्कि यह हमारे रोज़मर्रा के हर कार्य से जुड़ा हुआ है। उनमें सबसे अहम है—भोजन करना।


आज का मनुष्य भोजन करता है, पर अक्सर खाता नहीं—बस निगलता है। टीवी देखते हुए, मोबाइल चलाते हुए, या बातचीत में उलझे हुए हम खाना खाते हैं। न हमें उसके स्वाद का पता चलता है, न उसके पोषण का, न उस आभार का जो भोजन के साथ होना चाहिए।


सजग आहार का मतलब है—भोजन को केवल पेट भरने का साधन न मानना, बल्कि उसे जीवन के प्रति एक उत्सव के रूप में देखना।


सोचिए—एक दाना चावल हमारे सामने आने से पहले कितनी यात्राएँ करता है। किसान के श्रम से लेकर धरती की उर्वरता तक, पानी की बूँदों से लेकर सूरज की रोशनी तक—सब मिलकर हमारे भोजन का निर्माण करते हैं। जब हम यह समझते हैं और हर निवाले में उस मेहनत और प्रकृति की कृपा को महसूस करते हैं, तभी हम सचमुच सजग आहार कर रहे होते हैं।


भोजन सजगता का अभ्यास करने का एक सहज अवसर है। जब आप भोजन करें, तो कुछ क्षण शांत बैठें। भोजन को देखें—उसका रंग, उसकी सुगंध।

पहला कौर धीरे-धीरे चबाएँ। स्वाद को महसूस करें।

हर निवाले के साथ अपने भीतर यह भाव रखें कि यह मुझे जीवन दे रहा है।


धीरे-धीरे यह आदत भोजन को केवल शारीरिक क्रिया से बदलकर एक आध्यात्मिक अनुभव बना देती है।

सजग आहार का दूसरा पहलू है—क्या खाएँ।

जब मन असजग होता है, तो हम या तो ज़रूरत से अधिक खाते हैं या शरीर के लिए हानिकारक चीज़ें खाते हैं। असजगता हमें स्वाद की लत में बाँध देती है। लेकिन जब हम सजग होते हैं, तो शरीर की वास्तविक ज़रूरतों को समझने लगते हैं। हमें पता चलने लगता है कि कब पेट भर गया है, कौन सा भोजन हमें हल्का और ऊर्जावान रखता है, और कौन सा हमें भारी और सुस्त बना देता है।


सजग आहार हमें यह भी सिखाता है कि भोजन केवल शरीर का पोषण नहीं करता, बल्कि मन और आत्मा को भी प्रभावित करता है। जैसे भोजन का चुनाव हमारे स्वास्थ्य को तय करता है, वैसे ही भोजन के प्रति हमारा दृष्टिकोण हमारे भीतर की शांति और संतुलन को तय करता है।


इस अध्याय का सार यही है कि भोजन कोई साधारण क्रिया नहीं, बल्कि सजगता का एक सुंदर अभ्यास है।

हर निवाला हमें वर्तमान क्षण में जीना सिखाता है।

हर कौर हमें आभार सिखाता है।

और हर भोजन हमें यह याद दिलाता है कि जीवन कितना गहरा और कितना सुंदर है।


अध्याय 8 : सजग चाल


हम दिनभर चलते हैं—घर से ऑफिस, ऑफिस से घर, बाज़ार, दुकानें, रास्ते। पर क्या कभी आपने सचमुच महसूस किया कि आप चल रहे हैं? हर कदम का अनुभव, ज़मीन की बनावट, हवा का स्पर्श, शरीर की हलचल—अधिकतर समय हम इसे नोटिस ही नहीं करते।


सजग चाल (Mindful Walking) का अर्थ है—हर कदम को पूरी तरह जीना। यह सिर्फ शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि मन और शरीर को वर्तमान क्षण में ले आने का एक शक्तिशाली तरीका है।


जब हम सजग होकर चलते हैं, तो ध्यान हर छोटे-छोटे अनुभव पर जाता है— पैरों की जड़ता और लचीलापन, ज़मीन से मिलने वाली हल्की कंपन,

हवा का स्पर्श, सूरज की गर्मी या छाँव की ठंडक,

आसपास की ध्वनियाँ, पक्षियों की आवाज़, पत्तियों की सरसराहट।


यह अभ्यास हमें यह सिखाता है कि हर पल एक अनुभव है, जिसे सिर्फ जीकर ही समझा जा सकता है। सजग चाल के माध्यम से हम यह भी सीखते हैं कि जीवन में गति के साथ संतुलन कितना आवश्यक है। तेज़ भागते हुए हम अक्सर आगे या पीछे सोचते हैं, लेकिन सजग कदम हमें यह महसूस कराते हैं कि गंतव्य की अपेक्षा यात्रा ही महत्वपूर्ण है।


सजगता की यह कला केवल बाहरी कदमों तक सीमित नहीं है। जब हम चलना सजगता के साथ सीख लेते हैं, तो जीवन के हर निर्णय, हर कार्य, हर बातचीत में भी यही लय और संतुलन उतर आता है।


प्रैक्टिकल अभ्यास:

1. धीरे-धीरे चलना शुरू करें।

2. हर कदम पर ध्यान दें—पहला कदम, दूसरा कदम… पैरों की गति और ज़मीन का अनुभव।

3. मन भटके, विचार आए—उन्हें नोट करें और फिर ध्यान धीरे-धीरे कदमों पर लौटाएँ।

4. आसपास के वातावरण को महसूस करें—हवा, ध्वनि, प्रकाश।


धीरे-धीरे यह अभ्यास हमें यह एहसास दिलाता है कि चलना केवल स्थान बदलने का माध्यम नहीं, बल्कि सजगता में जीने की कला है। हर कदम हमें भीतर की शांति और संतुलन से जोड़ता है। सजग चाल का सबसे बड़ा उपहार है—हर पल की उपस्थिति का अनुभव। जब हम सचमुच चलना सीख जाते हैं, तो जीवन के छोटे-छोटे पल भी महत्वपूर्ण लगने लगते हैं। रफ्तार कम हो जाती है, लेकिन जीवन की मिठास बढ़ जाती है। हर कदम हमारे अंतरतम की ओर एक और सीढ़ी बन जाता है।


अध्याय 9 : सजग कर्म


हमारे जीवन का अधिकांश समय हम किसी न किसी काम में व्यस्त रहते हैं। घर के काम, ऑफिस की जिम्मेदारियाँ, पढ़ाई, सामाजिक दायित्व—सभी हमें हर पल गतिविधियों में बाँधे रखते हैं। लेकिन क्या हम सचमुच अपने काम को पूरी तरह जीते हैं, या केवल उसे पूरा करने में लगे रहते हैं?


सजग कर्म का अर्थ है—हर कार्य में पूर्ण उपस्थिति। यह केवल शारीरिक सक्रियता नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक उपस्थिति का भी अभ्यास है। जब हम किसी काम को सजगता से करते हैं, तो वह केवल परिणाम का साधन नहीं रह जाता; वह अनुभव का एक माध्यम बन जाता है।


सोचिए—जब आप किसी मित्र के लिए भोजन बना रहे हैं, और हर कदम, हर स्वाद और हर खुशबू को महसूस कर रहे हैं, तो केवल भोजन ही नहीं बनता, बल्कि आप उसमें अपनी ऊर्जा, प्रेम और सजगता भी जोड़ते हैं। यही सजग कर्म है।


सजगता हमें यह भी सिखाती है कि काम केवल परिणाम के लिए नहीं, बल्कि खुद के अनुभव के लिए किया जाना चाहिए। जब हम सिर्फ लक्ष्य या परिणाम की चिंता करते हैं, तो हम वर्तमान पल से कट जाते हैं। लेकिन सजग कर्म हमें यह एहसास कराता है कि हर कार्य, चाहे बड़ा हो या छोटा, महत्वपूर्ण है जब उसे पूर्ण उपस्थिति के साथ किया जाए।


प्रैक्टिकल अभ्यास:


1. कोई भी काम शुरू करने से पहले एक पल रुकें और सोचें—मैं इसे पूर्ण सजगता के साथ करूँगा।

2. हर क्रिया को धीरे-धीरे और ध्यान से करें—चलाना, लिखना, खाना, बोलना।

3. मन भटके, विचार आए—उन्हें नोट करें और फिर ध्यान को अपने काम पर लौटाएँ।

4. परिणाम की चिंता को छोड़ दें; केवल अनुभव में पूर्ण उपस्थिति बनाए रखें।


सजग कर्म का सबसे बड़ा उपहार है—भीतर की संतुष्टि और शांति। जब हम कोई काम पूरी सजगता के साथ करते हैं, तो हम थकते नहीं; बल्कि ऊर्जा और आनंद अनुभव करते हैं। यही वह स्थिति है जहां काम और जीवन एकाकार हो जाते हैं।


इस अध्याय का सार यही है कि सजग कर्म केवल कर्म नहीं, बल्कि जीवन की गहराई को महसूस करने का मार्ग है। जब हम हर कार्य को सजगता के साथ करते हैं, तो अंतरतम की ओर हमारा हर कदम मजबूत होता है।


अध्याय 10 : रिश्तों में सजगता


हमारे जीवन की सबसे बड़ी शक्ति और सबसे बड़ा चुनौती दोनों हमारे रिश्ते हैं। परिवार, मित्र, साथी या सहकर्मी—हर संबंध हमें खुशी देता है और कभी-कभी तनाव भी। लेकिन अक्सर हम इन रिश्तों में उपस्थित नहीं रहते। हमारी बातों में मन कहीं और होता है, हमारी सुनने की क्षमता अधूरी रहती है, और हम केवल अपने विचारों और अपेक्षाओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं।


सजगता का अभ्यास हमें यह सिखाता है कि रिश्तों में पूर्ण उपस्थिति कितनी महत्वपूर्ण है। जब हम सचमुच किसी को सुनते हैं, उसकी आँखों में देखते हैं, उसके भाव को समझते हैं—तब संवाद केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं रहता; वह हृदय का मिलन बन जाता है।


सजगता रिश्तों में तीन स्तरों पर काम करती है—


1. सुनने में सजगता: केवल कान से नहीं, बल्कि पूरे मन और हृदय से सुनना।

2. बोलने में सजगता: शब्द सोच-समझकर, प्रेम और सम्मान के साथ बोलना।

3. अनुभव में सजगता: हर बातचीत और हर क्षण में पूरी तरह उपस्थित रहना।


जब हम रिश्तों में सजग रहते हैं, तो छोटी-छोटी असहमति भी क्षणभंगुर लगने लगती है। गुस्सा, तकरार और गलतफहमी धीरे-धीरे कम होने लगती है। यही कारण है कि सजगता केवल मानसिक अभ्यास नहीं, बल्कि संबंधों को गहरा और मधुर बनाने का माध्यम है।


प्रैक्टिकल अभ्यास:

किसी से बात करते समय अपने फोन या अन्य ध्यान भटकाने वाली चीज़ें दूर रखें। बातचीत के दौरान केवल उस व्यक्ति और उसके शब्दों पर ध्यान केंद्रित करें।

प्रतिक्रिया देने से पहले गहरी साँस लें और सोचें—क्या मेरा उत्तर प्रेम और समझदारी से भरा है? सुनने और बोलने के बाद, भीतर यह महसूस करें कि आपने पूरा अनुभव किया।



सजगता हमें यह भी सिखाती है कि रिश्ते केवल लेना और देना नहीं हैं; यह साझा अनुभव हैं। जब हम सजग होते हैं, तो हम किसी भी रिश्ते को केवल एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि जीवन का उपहार मानने लगते हैं।


इस अध्याय का सार यही है कि सजगता न केवल हमारे भीतर की शांति बढ़ाती है, बल्कि हमारे संबंधों को भी गहरा और मधुर बनाती है। जब हम सचमुच उपस्थित रहते हैं, तभी हम महसूस कर पाते हैं कि रिश्ते केवल बाहरी संबंध नहीं, बल्कि हृदय और आत्मा का मिलन हैं।


अध्याय 11 : तनाव से शांति तक


हमारे जीवन में तनाव एक ऐसा साथी बन गया है जिसे हम अक्सर अनदेखा नहीं कर सकते। काम का बोझ, रिश्तों की जटिलताएँ, भविष्य की अनिश्चितताएँ—ये सभी हमारी मानसिक और शारीरिक ऊर्जा को लगातार खींचते रहते हैं। लेकिन सवाल यह है—क्या तनाव जीवन का अपरिहार्य हिस्सा है, या इसे हम सजगता के माध्यम से नियंत्रित कर सकते हैं?


सजगता हमें यह सिखाती है कि तनाव केवल बाहर की परिस्थितियों का परिणाम नहीं है; यह हमारे मन की प्रतिक्रिया है। जब हम किसी स्थिति को पूरी सजगता से देखते हैं, बिना तुरंत निर्णय या प्रतिक्रिया के, तो तनाव अपने आप कम होने लगता है।


तनाव से शांति तक पहुँचने की प्रक्रिया सरल है, लेकिन इसे अपनाना अभ्यास मांगता है। पहले कदम है—सजग साँस लेना।

जब आप गहरी साँस लेते हैं और उसकी गति, आवाज़ और शरीर में होने वाले प्रभाव पर ध्यान देते हैं, तो आप तनाव को अपने भीतर महसूस कर पाते हैं। इसे पहचानना पहला कदम है—पहचानने के बिना परिवर्तन संभव नहीं।


दूसरा कदम है—विचारों को दर्पण की तरह देखना।

तनाव अक्सर विचारों के ताने-बाने से बनता है। हम अतीत की गलती या भविष्य की चिंता में फंस जाते हैं। सजग दृष्टि से इन विचारों को देखते समय हम समझते हैं कि वे केवल मानसिक रूप हैं, वास्तविक नहीं। हम उन पर प्रतिक्रिया करने के बजाय केवल साक्षी बनते हैं।


तीसरा कदम है—शारीरिक जागरूकता।

तनाव केवल मन में नहीं, बल्कि शरीर में भी उतरता है—कंधे कठोर हो जाते हैं, पीठ तनाव महसूस करती है, हृदय की धड़कन तेज़ हो जाती है। सजगता हमें इन संकेतों को महसूस करने और धीरे-धीरे शिथिल करने की कला सिखाती है।


चौथा कदम है—वर्तमान में लौटना।

तनाव अतीत या भविष्य में उलझा होने से बढ़ता है। सजगता का अभ्यास हमें वर्तमान में ले आता है। जब हम वर्तमान क्षण को पूरी तरह जीते हैं—साँस, चलन, विचार, अनुभव—तो शांति अपने आप उत्पन्न हो जाती है।


प्रैक्टिकल अभ्यास:


1. तनाव महसूस होने पर तीन गहरी साँसें लें और हर साँस पर ध्यान दें।

2. विचारों को आना-जाना देखें, उन्हें पकड़ने की कोशिश न करें।

3. शरीर के तनाव वाले हिस्सों को पहचानें और धीरे-धीरे शिथिल करें।

4. ध्यान वर्तमान क्षण में लाएँ—जो भी आप कर रहे हैं, उसे पूरी सजगता से करें।


इस अभ्यास को नियमित रूप से अपनाने से आप पाएँगे कि तनाव केवल बाहरी परिस्थिति नहीं, बल्कि हमारे मन की प्रतिक्रिया है। सजग दृष्टि से हम मानसिक और भावनात्मक शांति पा सकते हैं।


इस अध्याय का सार यही है कि तनाव जीवन का हिस्सा है, परन्तु सजगता उसे नियंत्रण में रखने और भीतर शांति बनाए रखने का सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है। जब हम सजग रहते हैं, तब जीवन का प्रत्येक पल तनाव से मुक्त और पूर्ण रूप से अनुभव किया जा सकता है।


अध्याय 12 : अकेलापन और आत्मीयता


अकेलापन—यह शब्द सुनते ही अक्सर हमारे मन में भय और उदासी की छाया उतर आती है। हम इसे नकारात्मक समझते हैं, इससे भागते हैं, और हर पल इसे दूर करने की कोशिश करते हैं। लेकिन सजगता हमें यह दिखाती है कि अकेलापन केवल एक अनुभव है, न कि जीवन का दुश्मन।


अकेलापन हमें अपने भीतर की ओर लौटने का अवसर देता है। जब हम अकेले होते हैं, तब हमारी असली आत्मीयता, हमारी अंतरतम गहराई, और हमारी सच्ची पहचान सामने आती है। यह समय हमें स्वयं के साथ संवाद करने का, अपने विचारों और भावनाओं को समझने का अवसर देता है।


अकेलापन और आत्मीयता दो पहलू हैं—जिन्हें समझना आवश्यक है।

जब हम अकेले रहते हैं और भय या असहजता के कारण खुद से दूर भागते हैं, तो वह अकेलापन बोझ बन जाता है।

जब हम सजगता के साथ अकेलापन स्वीकार करते हैं, तो वही अनुभव हमें आत्मीयता की ओर ले जाता है।


सजग अभ्यास यह है कि हम अकेले रहने के क्षणों को सजगता और आत्म-ध्यान के साथ अनुभव करें।

एक पल रुकें और अपनी साँस पर ध्यान दें। अपने शरीर और मन के हर भाव को महसूस करें। विचारों को देखना सीखें—बिना उन्हें पकड़ने या बदलने की कोशिश किए।


जब हम अकेलेपन को स्वीकार करते हैं, तब हमें एहसास होता है कि सच्ची आत्मीयता बाहरी दुनिया से नहीं, हमारे भीतर की गहराई से आती है। यह हमें दूसरों के साथ भी अधिक सहज और सजीव संबंध बनाने में मदद करती है।


अकेलापन हमें यह भी सिखाता है कि शांति और संतुलन के लिए हमें हमेशा बाहरी संबंधों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। स्वयं से जुड़ाव ही असली आत्मीयता है। यह आत्मीयता हमें जीवन के हर अनुभव को अधिक गहराई से महसूस करने की क्षमता देती है।


इस अध्याय का सार यही है कि अकेलापन डरने या बचने की चीज़ नहीं, बल्कि आत्मीयता का द्वार है। जब हम अकेलेपन में सजग रहते हैं, तब हम अपने भीतर की शांति, प्रेम और संतुलन से मिलते हैं। और यही मिलन जीवन को पूर्ण और सार्थक बनाता है।



अध्याय 13 : काम और करियर में सजगता 


हमारे जीवन का एक बड़ा हिस्सा काम और करियर में व्यतीत होता है। हम सुबह उठते हैं, काम की योजना बनाते हैं, ऑफिस जाते हैं, मीटिंग्स और जिम्मेदारियों में उलझ जाते हैं, और शाम को लौटते हैं। लेकिन सवाल यह है—क्या हम इस पूरे समय सच में वर्तमान में थे, या केवल काम पूरा करने की दौड़ में खो गए थे?


अधिकांश लोग काम को केवल परिणाम तक पहुँचने का साधन मानते हैं। यदि सफलता मिलती है, तो खुशी होती है; यदि नहीं मिलती, तो निराशा। लेकिन इस प्रक्रिया में हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि काम स्वयं एक अनुभव है, और यदि उसे पूरी सजगता से नहीं किया जाता, तो यह अनुभव खो जाता है।


सजगता का अभ्यास हमें सिखाता है कि हर कार्य—चाहे बड़ा हो या छोटा—महत्वपूर्ण है जब उसे पूरी उपस्थिति के साथ किया जाए। जब आप किसी ईमेल का उत्तर लिख रहे हों, उसे केवल एक काम के रूप में न देखें। हर शब्द, हर वाक्य, हर विचार को महसूस करें। जब आप रिपोर्ट तैयार कर रहे हों, तो केवल परिणाम पर ध्यान न दें, बल्कि हर चरण में अपने अनुभव को महसूस करें। जब आप किसी टीम के साथ काम कर रहे हों, तो केवल लक्ष्य तक पहुँचने की चिंता न करें, बल्कि टीम के साथ संवाद और सहयोग को सजगता के साथ अनुभव करें।


सजगता न केवल कार्य की गुणवत्ता बढ़ाती है, बल्कि स्वास्थ्य और मानसिक शांति भी बनाए रखती है। जब हम लगातार व्यस्त रहते हैं और केवल परिणाम की चिंता करते हैं, तो शरीर और मन दोनों थक जाते हैं। पीठ और गर्दन में दर्द, नींद की कमी, मन में तनाव—ये सब आम अनुभव बन जाते हैं। लेकिन सजगता के साथ काम करने पर न केवल कार्य बेहतर होता है, बल्कि थकान कम होती है, मानसिक ऊर्जा बढ़ती है, और संतोष मिलता है।


सजगता का अभ्यास यह भी सिखाता है कि हमें बाहरी मान्यता या पुरस्कार पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं। जब हम अपने काम में पूरी उपस्थिति और ध्यान डालते हैं, तो परिणाम चाहे जैसा भी हो, भीतर की संतुष्टि और शांति अपने आप मिलती है। यह संतोष किसी बॉस, तारीफ़ या पदोन्नति से नहीं, बल्कि हमारे अपने अनुभव और उपस्थिति से आता है।


प्रैक्टिकल अभ्यास:

1. आरंभ से सजग रहें: किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले गहरी साँस लें, मन को वर्तमान में लाएँ, और विचार करें—“मैं इसे पूरी उपस्थिति के साथ करूँगा।”

2. प्रत्येक चरण पर ध्यान दें: कार्य को छोटे हिस्सों में बाँटें और हर हिस्से को सजगता के साथ पूरा करें।

3. विचारों का निरीक्षण करें: काम के दौरान मन भटके, तनाव या चिंता आए—तो उन्हें केवल देखें और सजगता के साथ ध्यान को वापस कार्य पर लाएँ।


4. परिणाम की चिंता छोड़ें: परिणाम के बारे में सोचने के बजाय प्रक्रिया का अनुभव करें।

5. सफलता और असफलता में सजग रहें: दोनों में सीख है; दोनों को साक्षी की तरह देखें।




सजगता के माध्यम से हम यह भी समझते हैं कि जीवन का उद्देश्य केवल सफलता या मान्यता नहीं, बल्कि पूर्ण और उपस्थित होकर जीना है। जब हम हर कार्य को सजगता से करते हैं, तब काम केवल काम नहीं रहता; वह जीवन की साधना बन जाता है।


एक और महत्वपूर्ण पहलू है—सहयोग और नेतृत्व में सजगता।

जब हम टीम के साथ काम करते हैं, तो सजगता हमें यह सिखाती है कि हर व्यक्ति की उपस्थिति और विचार का सम्मान कैसे किया जाए। सजग नेता केवल आदेश नहीं देता; वह संवाद, समझ और साक्षी होने की कला को अपनाता है। इससे न केवल टीम के भीतर सामंजस्य बढ़ता है, बल्कि कार्य की गुणवत्ता भी स्वतः बढ़ती है।


सजगता का अभ्यास निरंतर होने पर धीरे-धीरे यह जीवन की आदत बन जाती है। हम केवल काम ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू—रिश्ते, खाने, चलने, सोचने—को सजगता के साथ अनुभव करने लगते हैं। और इसी सजगता के माध्यम से हम अपने अंतरतम से जुड़ते हैं।


इस अध्याय का सार यही है कि काम और करियर में सजगता केवल व्यावहारिक कुशलता नहीं, बल्कि जीवन को गहराई, अर्थ और शांति देने की कला है।


अध्याय 14 : अंतर की आँख 


हम अपनी दुनिया को हमेशा बाहरी दृष्टि से देखते हैं। आँखों से, कानों से, हाथ-पाँव के अनुभव से। पर क्या हमने कभी सोचा है कि हमारे भीतर भी एक दृष्टि है—एक गहन दृष्टि, जो हमें केवल देखने या सुनने तक सीमित नहीं रखती? इसे हम कह सकते हैं—अंतर की आँख।


अंतर की आँख केवल देखने का माध्यम नहीं, बल्कि सजगता की शक्ति है। यह हमें अपने भीतर की गहराई, हमारी भावनाओं, विचारों, डर, इच्छाओं और आनंद को महसूस करने की क्षमता देती है। जब हम इस दृष्टि को सक्रिय करते हैं, तो जीवन के अनुभव केवल सतही नहीं रह जाते; हर पल में अर्थ और गहराई उतर आती है।


अंतर की आँख का महत्व


1. साक्षी बनना

अंतर की आँख हमें अपने विचारों और भावनाओं की साक्षी बनने का अवसर देती है। उदाहरण के लिए, जब हम क्रोध महसूस करते हैं, तो यह आँख हमें केवल देखने का अधिकार देती है—“मैं क्रोध महसूस कर रहा हूँ।” हम उसमें उलझते नहीं। यही दृष्टि हमें मानसिक शांति और संतुलन देती है।


2. भीतर की गहराई तक पहुँचना

हमारे भीतर कई स्तर छिपे हैं—छोटे-छोटे डर, पुरानी यादें, अनजानी इच्छाएँ। अंतर की आँख हमें इन स्तरों तक धीरे-धीरे ले जाती है। हम समझते हैं कि हमारी खुशियाँ, दुःख, भय, और आनंद केवल क्षणिक नहीं, बल्कि गहरे स्तर पर हमारे अस्तित्व से जुड़े हैं।


3. सत्य की अनुभूति

जब हम बाहरी दुनिया की घटनाओं से अपने मन को प्रभावित होने देते हैं, तब जीवन उलझ जाता है। अंतर की आँख हमें जीवन की वास्तविकता और सच्चाई दिखाती है—कि जीवन हमेशा वर्तमान में है। जितना सजग हम होंगे, उतना ही जीवन को पूरी तरह अनुभव कर पाएंगे।


अंतर की आँख का अभ्यास


1. एक शांत जगह पर बैठें और आँखें बंद कर लें।

2. अपनी साँस पर ध्यान दें। धीरे-धीरे भीतर की ओर दृष्टि ले जाएँ।

3. उठने वाले विचारों और भावनाओं को केवल देखें—उन्हें पकड़ने या बदलने की कोशिश न करें।


4. महसूस करें कि आप केवल साक्षी हैं।

5. धीरे-धीरे इस दृष्टि को अपने दिनचर्या में लाएँ—भोजन, चलना, काम और बातचीत में।


जीवन में अंतर की आँख


अंतर की आँख से हम अनुभव करते हैं कि जीवन की वास्तविक सुंदरता बाहर नहीं, भीतर है। उदाहरण के लिए: खुशी में: जब हम आनंदित होते हैं, तो अंतर की आँख हमें यह महसूस कराती है कि खुशी केवल बाहरी कारणों पर निर्भर नहीं है। यह भीतर की जागरूकता से उत्पन्न होती है।

दुःख में: जब हम किसी दुःख या चुनौती का सामना करते हैं, तो अंतर की आँख हमें यह सिखाती है कि इसे साक्षी दृष्टि से देखना और अनुभव करना हमें मजबूत बनाता है।


साधारण पल में: जैसे चाय का पहला घूँट, हवा का स्पर्श, बच्चे की हँसी—ये सभी पल तब जीवंत और गहरे बन जाते हैं जब हम अंतर की आँख से उन्हें देखते हैं।


अंतर की आँख हमें यह भी समझाती है कि जीवन केवल तेजी से बिताने या परिणाम पाने का खेल नहीं है। हर क्षण अनुभव करने योग्य है। जब हम सचमुच अंतर की आँख से देखते हैं, तब जीवन केवल दिखाई देने वाली घटनाओं का संग्रह नहीं रह जाता; वह अनुभव और अर्थ बन जाता है।


अंतर की आँख और सजगता का सम्बन्ध


सजगता और अंतर की आँख अलग नहीं हैं—वे दो पहलू हैं। सजगता हमें वर्तमान क्षण में रहने की कला सिखाती है, और अंतर की आँख हमें भीतर की वास्तविकता को देखने का माध्यम देती है। जब दोनों एक साथ होते हैं, तो जीवन का अनुभव गहन, शांत और पूर्ण बन जाता है।


यह हमें अपने विचारों में फँसने से बचाता है।

यह हमें भावनाओं की लहरों में बहने नहीं देता।

यह हमें जीवन की हर घटना को एक अवसर, एक अनुभव के रूप में देखने की क्षमता देता है।


अंतर की आँख का सार


अंतर की आँख केवल देखने का माध्यम नहीं, बल्कि सजगता, आत्मीयता और जीवन की गहराई का अनुभव है। यह हमें सिखाती है कि जीवन की असली सुंदरता भीतर है। यह हमें अपने भीतर की शांति, प्रेम और संतुलन से जोड़ती है। यह दृष्टि हमें बाहरी परिस्थितियों की तुलना में अपने अनुभव को महत्व देने की क्षमता देती है।


जब हम अंतर की आँख अपनाते हैं, तब हमारा मन केवल प्रतिक्रियाशील नहीं रह जाता; वह साक्षी, शांत और जागरूक बन जाता है। और यही साक्षी दृष्टि जीवन को सार्थक, गहरा और पूर्ण बनाती है।


अध्याय 15 : सजग जीवन के सूत्र


हमने अब तक सजगता, साँस, वर्तमान क्षण, विचारों का साक्षी बनना, रिश्तों में सजगता, तनाव प्रबंधन और अंतर की आँख जैसे पहलुओं का अध्ययन किया। अब समय है इन सभी अनुभवों और अभ्यासों को जीवन में एक सूत्रबद्ध रूप में अपनाने का। यही हैं—सजग जीवन के सूत्र।


1. सजगता का आधार—साँस


साँस केवल जीवन की शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि सजगता का पहला साधन है। हर दिन कुछ मिनटों के लिए अपनी साँस पर ध्यान दें।

यह अभ्यास आपको वर्तमान क्षण में लाता है।

यह मन को शांत करता है। यह अंतरतम के द्वार खोलता है।

सूत्र: साँस को महसूस करना, जीवन को महसूस करना।

2. वर्तमान में जीना

भूत और भविष्य केवल हमारे मन की काल्पनिक रचना हैं। केवल वर्तमान क्षण वास्तविक है।

भोजन करते समय, चलते समय, बातचीत करते समय पूरी उपस्थिति रखें। छोटे-छोटे क्षण भी अनमोल हैं।

सूत्र: अभी और यहाँ जीना, जीवन का असली आनंद है।


3. विचारों का निरीक्षण


हमारे विचार जीवन के अनुभव को प्रभावित करते हैं। अंतर की आँख से उन्हें देखने का अभ्यास करें। विचार आते हैं, जाते हैं, लेकिन हम उनका साक्षी बन सकते हैं। किसी विचार में फँसना या उसे जज करना मानसिक तनाव बढ़ाता है।

सूत्र: विचारों का दर्पण बनकर, उन्हें साक्षी दृष्टि से देखें।


4. सजग आहार और जीवनशैली


भोजन और जीवनशैली केवल शरीर के लिए नहीं, मन और आत्मा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

सजग आहार अपनाएँ—हर निवाले को अनुभव करें।

संतुलित जीवनशैली से ऊर्जा, स्वास्थ्य और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है।

सूत्र: जो हम खाते हैं और कैसे खाते हैं, वही हमारे मन और आत्मा को पोषण देता है।


5. रिश्तों में सजगता


सच्चे और मधुर संबंध केवल बाहरी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि पूर्ण उपस्थिति और प्रेम से बनते हैं। सुनना, बोलना और अनुभव करना पूरी सजगता से सीखें।

संघर्ष और मतभेदों में भी सजग दृष्टि बनाए रखें।

सूत्र: रिश्ते सिर्फ लेने देने के लिए नहीं, अनुभव और उपस्थिति के लिए हैं।


6. तनाव से शांति तक


तनाव जीवन का हिस्सा है, लेकिन सजगता इसे नियंत्रित करने का माध्यम है। साँस, विचारों का निरीक्षण, और वर्तमान में लौटना—यह सभी अभ्यास तनाव को कम करते हैं। सजग दृष्टि से जीवन को अनुभव करने पर मन में शांति और संतोष स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है।

सूत्र: तनाव केवल प्रतिक्रिया है; सजगता से शांति संभव है।


7. काम और करियर में सजगता


कर्म केवल परिणाम के लिए नहीं, बल्कि जीवन के अनुभव के लिए किया जाना चाहिए। प्रत्येक कार्य में उपस्थिति रखें। परिणाम की चिंता के बिना अनुभव पर ध्यान दें। 

सहयोग और नेतृत्व में सजग दृष्टि अपनाएँ।

सूत्र: कर्म को साधना मानें; परिणाम स्वयं संतोष देंगे।


8. अंतर की आँख


अंतर की आँख हमें भीतर की वास्तविकता देखने की क्षमता देती है। जीवन की गहराई और वास्तविक सुंदरता भीतर है। यह दृष्टि हमें सजगता, आत्मीयता और शांति की ओर ले जाती है।

सूत्र: भीतर देखें, साक्षी बनें, और जीवन की प्रत्येक घटना को अनुभव करें।


9. अंतिम संदेश

सजग जीवन कोई जटिल सिद्धांत नहीं, बल्कि प्रत्येक पल की पूर्ण उपस्थिति और अनुभव है। हर साँस, हर कदम, हर कर्म, हर संबंध—यह सब अभ्यास हैं। जब हम सजग दृष्टि से जीते हैं, तब जीवन केवल गुजरता नहीं, बल्कि जीया और अनुभव किया जाता है।


अंतिम सूत्र:

“सजग रहो—साँस में, कदम में, कर्म में, रिश्तों में। यही अंतरतम की खोज है, यही जीवन का सार है।”


अध्याय : चेतना का स्पर्श


हमारा जीवन अक्सर स्वचालित रूप से चलता है। हम जागते हैं, काम करते हैं, बोलते हैं, खाते हैं और चलते हैं—लेकिन कितने समय हम सच में जाग्रत और सचेत होते हैं? अधिकांश समय हमारा मन कहीं और भटकता है—अतीत की यादों में, भविष्य की चिंता में, या सिर्फ आदतों और आवश्यकताओं में उलझा रहता है।


चेतना का स्पर्श हमें यह याद दिलाता है कि जीवन का हर क्षण केवल देखा या महसूस किया जा सकता है—जब हम सच में जाग्रत और उपस्थित होते हैं। यह कोई तकनीक या अभ्यास मात्र नहीं है; यह मन और आत्मा का गहरा अनुभव है।


चेतना का महत्व

1. सजग दृष्टि

चेतना हमें जीवन की प्रत्येक घटना को पूरी उपस्थिति और समझ के साथ देखने की क्षमता देती है। जब हम किसी फूल की सुंदरता देखें, केवल आँखों से नहीं, बल्कि हर इंद्रिय अनुभव के साथ, यही चेतना का स्पर्श है। जब हम किसी की बात सुनते हैं, केवल शब्द नहीं, बल्कि भावना और अर्थ को महसूस करते हैं, यही सजग चेतना है।


2. भीतर की जागरूकता

चेतना का अर्थ केवल बाहरी दुनिया में सजग रहने से नहीं है। यह हमें अपने भीतर झांकने की क्षमता देती है—विचारों, भावनाओं, भय, और इच्छाओं को महसूस करने की। जैसे हमारी साँस हमें जीवन का अहसास देती है, वैसे ही चेतना हमें भीतर की हर तरंग का अनुभव कराती है।


3. मन और आत्मा का मिलन

जब हम सजग रहते हैं, तब मन और आत्मा एकाकार हो जाते हैं। मन शांत रहता है, क्योंकि वह भविष्य और अतीत की चिंता में नहीं उलझा। आत्मा आनंदित होती है, क्योंकि वह हर क्षण के अनुभव में पूरी तरह मौजूद है।


चेतना का अभ्यास


1. साँस में चेतना

गहरी और धीमी साँस लें।

हर साँस के आने और जाने को महसूस करें।

ध्यान दें कि साँस केवल श्वास नहीं, बल्कि जीवन की ऊर्जा है।


2. हर क्रिया में सजगता


चलना, खाना, लिखना, बोलना—हर क्रिया में पूरी उपस्थिति बनाएँ। मन भटके, विचार आए—उन्हें साक्षी दृष्टि से देखें और ध्यान को क्रिया पर लौटाएँ।


3. भीतर की जागरूकता


अपने विचारों और भावनाओं को जज किए बिना देखें। अनुभव करें कि आप केवल साक्षी हैं, और यह अनुभव आपकी चेतना को गहरा करता है।


चेतना का सार


चेतना का स्पर्श जीवन को सतही अनुभव से गहरा, संपूर्ण और सार्थक बनाता है। यह हमें वर्तमान में लाता है। यह हमारे मन को शांत करता है। यह हमें आत्मा और अंतरतम से जोड़ता है। सच्चा अनुभव तभी संभव है जब हम केवल देखते और महसूस करते हैं—न कि प्रतिक्रिया या जजमेंट करते हैं। यही चेतना का असली स्पर्श है।

सूत्र: “जब जीवन को जाग्रत दृष्टि से देखा जाए, तब हर क्षण अनमोल बन जाता है। चेतना का स्पर्श जीवन को पूर्ण बनाता है।”


अध्याय : जीवन एक ध्यान


हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण एक अवसर है—जीवन केवल बीते समय की याद या भविष्य की चिंता नहीं है। जब हम इसे सजग दृष्टि से देखें, तो हम पाएँगे कि जीवन स्वयं एक ध्यान है। ध्यान केवल किसी कुशन पर बैठकर या आँखें बंद करके किया जाने वाला अभ्यास नहीं है। जीवन के हर पल में, हर सांस में, हर क्रिया में हम ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं। जब हम हर क्षण को पूरी उपस्थिति और सजगता के साथ जीते हैं, तब हमारे जीवन का हर अनुभव ध्यान बन जाता है।


जीवन को ध्यान बनाने के मार्ग


1. साँस के माध्यम से ध्यान- हर सुबह या दिनभर के किसी समय अपनी साँस पर ध्यान दें। महसूस करें कि हर साँस जीवन की ऊर्जा है।

धीरे-धीरे यह अभ्यास जीवन की प्रत्येक क्रिया में सजगता लाता है।


2. क्रियाओं में पूर्ण उपस्थिति


चलना, खाना, काम करना, बात करना—इन सभी क्रियाओं को केवल क्रियाओं के रूप में नहीं, बल्कि ध्यान के क्षणों के रूप में देखें। जब आप खाना खाते हैं, उसका स्वाद, खुशबू और बनावट महसूस करें।

जब आप किसी से बात कर रहे हों, तो उसकी आँखों, शब्दों और भावनाओं में पूरी तरह उपस्थित रहें।


3. विचारों का साक्षी बनना


जीवन में विचार आते और जाते रहते हैं। उन्हें पकड़ने या रोकने की कोशिश न करें। केवल साक्षी बनें और ध्यान को वर्तमान में रखें।


4. संवेदनाओं में सजगता


शरीर और मन की हर अनुभूति पर ध्यान दें। तनाव, थकान, खुशी, शांति—सभी भावों को महसूस करें। यह सजग अनुभव जीवन को ध्यानपूर्ण बनाता है।


जीवन में ध्यान का महत्व


1. शांति और संतुलन

जब हम जीवन के हर पल को ध्यान के साथ जीते हैं, तो मन का शोर कम होता है। हम बाहरी परिस्थितियों से उतनी प्रभावित नहीं होते।


2. भीतर की समझ

ध्यान हमें अपने भीतर झांकने की क्षमता देता है। हम अपनी भावनाओं, इच्छाओं और डर को पहचानते हैं और समझते हैं।


3. संतोष और आनंद

जीवन केवल परिणामों का खेल नहीं है। जब हम प्रत्येक क्षण को ध्यान से जीते हैं, तो हमें संतोष और गहरा आनंद अनुभव होता है।


प्रैक्टिकल अभ्यास


1. हर क्रिया को ध्यानपूर्ण बनाना

चलना, खाना, काम, बातचीत—हर क्रिया में पूरी सजगता अपनाएँ।

2. साँस और ध्यान का मेल

धीरे-धीरे चलते समय या काम करते समय अपनी साँस पर ध्यान दें।

3. विचारों को केवल देखना

विचार आएँ, तो उन्हें पकड़ने या बदलने की कोशिश न करें। उन्हें साक्षी दृष्टि से देखें और ध्यान को वर्तमान पर लौटाएँ।


अध्याय का सार


जीवन एक ध्यान है—हर क्षण, हर अनुभव, हर क्रिया सजगता और उपस्थित होने का अवसर है। जीवन के क्षण केवल गुजरने के लिए नहीं हैं, बल्कि जीने और महसूस करने के लिए हैं। जब हम जीवन को ध्यान की दृष्टि से देखते हैं, तो हर पल गहरा, अर्थपूर्ण और पूर्ण बन जाता है।


सूत्र:“जीवन एक ध्यान है; हर साँस, हर कदम और हर अनुभव इसे गहन बनाता है। सजगता से जिएँ, अनुभव करें, और प्रत्येक क्षण को जीवंत बनाएँ।”


अध्याय : मुक्ति की ओर 

सजगता, चेतना, ध्यान—ये सभी अभ्यास हमें जीवन के गहरे अनुभव की ओर ले जाते हैं। परंतु अंतिम लक्ष्य क्या है? यही मार्ग हमें मुक्ति की ओर ले जाता है। मुक्ति केवल मृत्यु या अंतिम लक्ष्य नहीं है; यह जीवन में भीतरी स्वतंत्रता, शांति और संतुलन का अनुभव है।


मुक्ति का अर्थ है—मन, विचार और भावनाओं की बंधनों से आज़ादी। हम अक्सर अपने भय, लालच, क्रोध और अतीत की यादों के बंदिशों में फँस जाते हैं। जब हम सजग दृष्टि, अंतर की आँख और जीवन को ध्यान के रूप में अपनाते हैं, तब ये बंधन धीरे-धीरे टूटने लगते हैं।


मुक्ति का अनुभव


1. भीतर की स्वतंत्रता

मुक्ति का पहला पहलू है—भीतर की स्वतंत्रता।

यह हमें मानसिक और भावनात्मक स्तर पर आज़ाद करती है। हम बाहरी परिस्थितियों से कम प्रभावित होते हैं। हमारा मन शांति और संतुलन का अनुभव करता है।


2. सत्य का बोध

मुक्ति हमें सिखाती है कि जीवन केवल बाहरी घटनाओं का परिणाम नहीं है। सच्चाई यह है कि जीवन वर्तमान में है। जब हम वर्तमान में सजग रहते हैं, तब हमें वास्तविकता का अनुभव होता है।


3. अंतरतम से मिलन

मुक्ति का अंतिम पहलू है—अपने अंतरतम से पूर्ण जुड़ाव। हम अपने भीतर की शांति, प्रेम और ज्ञान से मिलते हैं। यह अनुभव हमें स्थायी संतोष और आनंद देता है।


मुक्ति की ओर मार्ग


1. सजगता का अभ्यास

हर क्षण में उपस्थित रहें—साँस, कदम, क्रियाएँ और अनुभव। यह अभ्यास धीरे-धीरे मन और आत्मा के बंधनों को खोलता है।


2. अंतर की आँख का उपयोग

अपने विचारों और भावनाओं का साक्षी बनें। बंधन, भय और लालच को केवल देखें, उन्हें जज या पकड़ने की आवश्यकता नहीं।


3. ध्यान और आत्मीयता



जीवन के प्रत्येक क्षण को ध्यान के रूप में अनुभव करें। आत्मीयता और प्रेम के साथ हर अनुभव में उपस्थित रहें।



4. सतत अभ्यास


मुक्ति केवल एक क्षणिक अनुभव नहीं है; यह निरंतर सजगता और जागरूकता का फल है। नियमित अभ्यास से ही हम जीवन के हर पल में मुक्त होने लगते हैं।


मुक्ति का सार


मुक्ति केवल जीवन के अंत में नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षण में अनुभव की जा सकती है। यह बाहरी दुनिया के नियंत्रण से स्वतंत्रता है। यह अतीत और भविष्य की चिंता से स्वतंत्रता है। यह अपने भीतर की शांति, प्रेम और संतोष का अनुभव है।



जब हम सजग रहते हैं, चेतना का अनुभव करते हैं, जीवन को ध्यान मानते हैं और अंतर की आँख से देखते हैं, तब हम धीरे-धीरे मुक्ति की ओर अग्रसर होते हैं।


सूत्र: “मुक्ति जीवन के प्रत्येक क्षण में अनुभव की जा सकती है; सजगता, चेतना और ध्यान इसे प्राप्त करने की कुंजी हैं।” 




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