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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational Others

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

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संस्कार की शिक्षा

संस्कार की शिक्षा

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एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहते थे  उस गरीब ब्राह्मण के पास अपनी झोंपड़ी के अलावा खेती की कोई जमीन नहीं थी जिसके कारण पंडित जी अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिये पांडित्य कर्म करते उससे भी परिवार का पेट नहीं भरता तो भिक्षाटन भी करते बड़ी मुश्किल से परिवार का गुज़र बसर हो पाता कभी कभार फाका मस्ती के कारण पानी पी कर ही दिन रात गुजारनी पड़ती। पंडित की चार पुत्र थे जिनका पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता पंडित जी अपनी पूरी क्षमता से कोशिश करते कि उनके बेटे कम से कम इतना तो पढ़ ही ले कि कम से कम पांडित्य कर्म करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकने में सक्षम हो सके, मगर उनके चारों पुत्रों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा धीरे धीरे समय बीतता गया और पंडित जी के चारों बेटे जवान हो गए, मगर शिक्षा के नाम पर मात्र संस्कृत के कुछ अक्षर शब्द ज्ञान तक ही सीमित थे। अब पंडित जी के ऊपर जवान चार बेटों के भरण पोषण का भी भार था पंडित जी को देखकर अक्सर लोग कहते थे पंडित जी की क्या किस्मत है जिसके चार चार जवान बेटे नाकारा हो क्या कहा जाय भगवान के न्याय को पंडित जी कोल्हू के बैल जैसे दिन रात खटते और पत्नी के साथ साथ चार जवान बेटों का पेट भरते

पंडित जी बूढ़े भी हो चुके थे एक दिन पंडित जी ने अपने चारों बेटों सुरेश ,रमेश, दिवेश , शिवेश को बुलाया और वात्सल्य से भाव विभोर होते हुए कहा मेरे प्यारे सुपुत्रों मैंने तुम लोगों पर कभी कोई दबाव पिता होने के नाते नहीं बनाया तुम लोगों की जब जो इच्छा हुई करते रहे मैंने सदैव तुम लोगों की प्रसन्नता में खुद की भलाई और खुशी का अनुभव किया अब मैं बूढ़ा हो चुका हूँ पता नहीं कब ईश्वर के यहाँ से बुलावा आ जाय मैं चाहता हूँ कि तुम लोग अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करो इतना कहने के बाद पंडित जी की आंखों से आंसू आ गए पंडित जी के चारों बेटों ने जब पिता शुखराम की स्वयं के कारण यह दशा देखी चारों ने एक स्वर में कहा पिता जी अब हम लोग आपको अपनी शक्ल तभी दिखाएंगे जब कुछ समाज में आपके लिये कर सकने में सक्षम होंगे इतना कह कर चारों भाई उठे और एक साथ आपस मे मंत्रणा करने लगे कि वे ऐसा क्या करे कि उनके बूढ़े पिता को आत्म सन्तोष मिले चारों ने कहा कि चुकी हम लोगों ने अपने पिता को जबान दे रखा है कि हम लोग अपनी शक्ल तभी दिखाएंगे जब समाज में किसी सम्मान जनक स्तर पर पहुँच जाएंगे


चारों भाइयों ने किसी तरह रात काटी और ब्रह्म मुहूर्त की बेला में साथ उठे और स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर बिना किसी को बताए घर छोड़ बाहर निकल पड़े चारों भाई एक साथ पैदल चलते चलते थक चुके थे एक जामुन के वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे तभी जामुन के बृक्ष से जामुन का एक फल नीचे गिरा बड़ा भाई सुरेश बोला (जामुनी अन्त न पाईओ) थोड़ी देर विश्राम करने के उपरांत चारो भाई फिर भूखे प्यासे चल पड़े कुछ दूर चलने के बाद फिर चारों भाई एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर विश्राम करने लगे उसी समय दो व्यक्ति आपस मे लड़ते झगड़ते चले जा रहे थे जिनको देखकर दूसरे भाई रमेश के मुँह से बरबस निकल पड़ा (ता पर मंडे रार) पंडित सुखराम की नींद खुली तब उन्होंने अपनी पत्नी सुचिता से पूछा कि हमारे चारों पुत्र कहां चले गए सुचिता ने कहा कि आपसे कल चारों ने कहा था कि वे जब तक समाज में सम्मानित स्तर पर नही पहुंच जाते तब तक अपनी शक्ल नहीं दिखाएंगे पता नहीं कब चारों कहाँ चले गए और फुट फुट कर रोने लगी पंडित सुख राम ने सुचिता को ढाढस बंधाया और। बोले हमने पूरे जीवन में किसी का कभी कुछ नहीं बिगाड़ा विश्वास रखो मेरी संतानों का भी अनभल भगवान नहीं करेगा किसी तरह से सुचिता ने अपने कलेजे पर पत्थर रख दिन रात अपने बेटों के इंतज़ार करने लगी। इधर दो दिन से भूखे प्यासे चारों भाई चलते थकते विश्राम करते फिर चलते ना कोई उद्देश्य था ना निश्चित रास्ता चारों विश्राम कर रहे थे कि दो व्यक्ति आपस में प्रेम करते जा रहे थे तभी तीसरे भाई के मुख से निकला (प्रीत करंता द्वी जने) फिर चारों भाई साथ चलना शुरू किया कुछ दूर पैदल चलने के बाद फिर चारों भाई एक बट वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे तभी चारों ने देखा कि एक पुरुष एक स्त्री को जबरन हाथ पकड़ कर घसीटते ले जाने की कोशिश कर रहा है शिवेश के जुबान से निकला(ता हरि लाओ नारी)


अब चारों भाइयों ने तय किया कि हम चारों ने जो शब्द बोले है उन्हें इकट्ठा करके देखते है कि क्या हमने कुछ सार्थक किया या नहीं चारों ने क्रमशः अपने शब्द बोलना प्रारम्भ किया (जामुनी अंत न पाईओ ,ता पर मंडे रारी ,प्रीति करंता द्वी जने ता हरि लायो

नारी।।)चारों भाइयों ने देखा कि उनके द्वारा बोले शब्दों से बहुत सुंदर श्लोक का निर्माण हो गया जो किसी वेद पुराण या धर्म शास्त्र में नहीं मिलेगा चारों भाई बड़े उत्साह से भूख प्यास भूल कर चल पड़े लगभग एक सप्ताह की भूखे प्यासे यात्रा के बाद चारों ने अपने राज्य की सीमा पार कर ली अब वे अपने देश राज्य की सीमा से बहुत दूर निकल चुके थे दूसरे राजा के राज्य सिमा में ज्यों चारों भाइयों ने प्रवेश किया तभी देखा कि बहुत से लोग राज दरबार की ओर जा रहे थे तभी चारों भाइयों ने जिज्ञासावश जानना चाहा कि इतनी भीड़ कहाँ किस उद्देश्य से जा रहे है लोगों ने बताया कि काम्पिल्य के राजा विभ्राट ने विद्वानों की एक सभा बुलाई है और शास्त्रार्थ का आयोजन किया है जो भी शास्त्रार्थ में विजयी होगा उसे राज पंडित की उपाधि प्रदान कर कीमती हीरे मोती जवाहरात के पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाएगा। चारों भाइयों ने निश्चय किया कि वे भी राजा विभ्राट की विद्वत शास्त्रार्थ में भागीदारी करेंगे चारों दस दिनों से भूखे पेड़ के पत्तों से झुधा मिटाते किसी तरह राजा विभ्राट की विद्वत सभा में जा पहुंचे राजा चारों भाइयों को देख बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला कि ये हमारे लिये गौरव की बात है कि हमारी विद्वत सभा के शात्रार्थ में दूर देश के विद्वत जन पधारे चारों भाइयों का राज दरबार में विधिवत सम्मान और स्वागत हुआ और राजकीय अतिथि के रूप में ठहराया गया ।दूसरे दिन शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ सभी विद्वान एक दूसरे को परास्त करते रहे अब अंत में चारों भाई सुरेश, रमेश, दिवेश ,शिवेश की बारी आई चारों भाइयों ने कहा हम चारों भाई एक एक शब्द बोलेंगे जिससे एक श्लोक का निर्माण होगा उसका अर्थ इस विद्वत सभा को बताना होगा तब राजा विभ्राट ने आदेश दिया आप चारों भाई अपना शब्द बोले एक एक कर चारों भाइयों ने अपना शब्द बोलना शुरू किया -।।जामुनी अंत न पाईओ ता पर मंडे रार प्रीत करंता द्वी जने ता हरि लायो नारी।।

अब राजा विभ्राट ने विद्वत सभा को आदेश दिया कि चारों भाइयों द्वारा निर्मित श्लोक का अर्थ विद्वत सभा बताये। विद्वत सभा ने वैचारिक मंथन शुरू किया मगर कोई अर्थ नहीं समझ आ पा रहा था क्योंकि उक्त श्लोक किसी धर्म शास्त्र वेद पुराण से तो था नहीं जिसे किसी ने पढ़ा हो अतः एक माह का समय बीतने के बाद भी कोई विद्वान चारों भाइयों द्वारा निर्मित श्लोक का अर्थ नहीं बता पाया अंत में काम्पिल्य नरेश विभ्राट ने चारों भाइयों को स्वयं निर्मित श्लोक का अर्थ बताने का आदेश दिया तब बड़ा भाई सुरेश बोला जमुनी अंत न पाईओ अर्थात जिसका ऋषि मुनियों ने अंत नहीं पाया दूसरे भाई रमेश ने अपने शब्द ता पर मंडे रार का अर्थ बताया जिससे जबरदस्ती दुश्मनी किया तीसरे भाई दिवेश ने अपना शब्द बोला प्रीति करंता द्वी जने अर्थात राम लक्ष्मण जैसे भातृत्व प्रेम करने वाले भाइयों चौथा भाई शिवेश बोला ता हरि लायो नारी अर्थात जिनकी भार्या को छल पूर्वक हरण कर लिया फिर राजा विभ्राट ने चारों भाइयों के शब्दार्थों की संयुक्त व्यख्या के लिये कहा तब सुरेश ने तीनों भाईयो का प्रतिनिधित्व करते बोला महाराज --जिसका ऋषि मुनियों ने अंत नहीं पाया जो राम लक्ष्मण जैसे भ्रातृत्व प्रेम के आदर्श है ऐसे दयालु कृपालु भगवान राम की पत्नी सीता माता का छल पूर्वक हरण कर दुष्ट रावण ने दुश्मनी मोल ली ।राजा विभ्राट बहुत प्रसन्न हुए और चारों भाइयों को विद्वत शिरोमणी के सम्मान से पुरस्कृत कर ढेर सारे हीरे मोती आती कीमती रत्नों से सम्मानित किया और राज्य का पंडित घोषित किया।

 धीरे धीरे चारों भाइयों की यश कीर्ति का पताका चहूँ ओर लहराने लगा एक राजा विभ्राट भी चारों भाइयों से बहुत प्रसन्न रहते थे एक दिन राजा ने चारों भाइयों से कहा हम आपके माता पिता से मिलना चाहते है आप अपने गांव का पता बताये हमारे सैनिक आपके माता पीता को सम्मान यहां ले आएंगे चारों भाइयों ने राजा का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया राजा को अपने गांव का पता बता दिया राजा ने उन्हें आदर के साथ लाने हेतु अपने सैनिकों को आदेश दिया राजा का आदेश पाते ही सैनिक गए और चारों के माता पिता पंडित सुखराम और माँ सुचिता को साथ लेकर आये राजा विभ्राट ने स्वयं पंडित सुखराम और सुचिता को उनके चारों पुत्रों से मिलवाया पंडित सुखराम और माँ सुचिता गर्व से अभिभूत हो कर प्रसन्न हुए ।

अब पंडित सुखराम सुचिता अपने चारों बेटों के साथ राजा विभ्राट के राज्य में सम्मान के साथ रहने लगे एक दिन राजा विभ्राट और पंडित सुखराम सुचिता और उनके चारो बेटों को बुलवाया और पंडित सुखराम से प्रश्न किया कि आपने अपने चारों बेटों को क्या शिक्षा दी पंडित सुखराम ने कहा सत्य आचरण नैतिकता और वचन बद्धता की संस्कृति संस्कार की मैं बहुत गरीब ब्राह्मण था फिर भी मेरे जवान बेटों ने कभी भी अनैतिक आचरण पर चलना स्वीकार नहीं किया और जब इन्होंने मुझे वचन दिया कि ये तब तक अपनी शक्ल नहीं दिखाएंगे जब तक कि ये समाज में सम्मान जनक स्तर पर नहीं पहुंच जाते इन्होंने अपने वचन का निर्वहन किया ये पंद्रह दिनों तक भूखे प्यासे रहे लेकिन किसी अनैतिक रास्ते पर नही गए और इस भीषण चुनौती में भी इनमें कुछ करने की जिज्ञासा जागृत रही और अनेको कठिनाइयों में भी चारों भाइयों में परस्पर प्रेम में कोई कमी नहीं आई यहां तक कि आपके दरबार मे जिस श्लोक की चर्चा है उसे चारों भाइयों ने संयुक्त रूप से निर्माण किया। महाराज यही शिक्षा मैंने गरीबी में अपने चारों पुत्रों को दी है राज विभ्राट पंडित सुखराम की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए बोले यदि संसार के सभी माता पिता पंडित सुखराम और सुचिता जैसे हो जाय तो निश्चित ही संसार ही स्वर्ग बन जाय।।



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