Vishvnath Mishra

Tragedy

4.5  

Vishvnath Mishra

Tragedy

संस्कार भाग 2 (अंतिम भाग)

संस्कार भाग 2 (अंतिम भाग)

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आदित्य भी बिजी रहने लगा और 15 दिन कब 20 दिन कब 40 दिन हो गये पता ही नही चला। अदिति अब आदित्य से मिलने को तरसती रह जाती और आदित्य उसको, ज्यादा काम की बात कहकर मना लेता था।

लेकिन एक दिन अचानक....

अदिति को मीटिंग के लिये अपने दो सहकर्मियों के साथ लखनऊ, में एक नये बनते अस्पताल के काम से जाना पड़ा जो कि 280 किलोमिटर दूर था, वहां जाते ही अदिति की जिन्दगी ने ऐसा मोड़ लिया जिसकी कल्पना उसने कल्पना मे भी नहीं की होगी। उनको वहाँ दो दिन रुकना था और हॉस्पीटल के नये शाखा के कुछ काम निपटाने थे, तो हॉस्पिटल की तरफ से उनके रहने का इन्तज़ाम किया था। अगले दिन वहाँ के डायरेक्टर ने सबको अपने यहाँ डिनर पर बुलाया। शाम 8 बजे अदिति सबके उनके घर पहुंची और पार्किंग मे आते ही अदिति ने कुछ ऐसा देखा कि उसकी आंखे फटी रह गई।

गार्ड भैया, ये गाड़ी किसकी है, यहां कैसे, कब से। अदिति ने लगभग आपा खोते हुए पूछा।

मैडम जी ये आदित्य सर की है, कोई डेढ़ साल पहले से यहा अपनी पत्नी रेखा के साथ रहते है। गार्ड ने बताया।

क्या, पत्नी के साथ, क्या कह रहे हो। अदिति ने बैचैन होते हुए मोबाइल मे फोटो दिखा कर पूछा। ये आदित्य साहब ये तो नहहीं है ना? उसकी आवाज में एक डर था, एक टूटन थी।

हाँ मैडम जी यही हैं। बड़े सीधे शरीफ इन्सान हैं और इनकी पत्नी के साथ तो इनकी जोड़ी बहुत अच्छी लगती है, बहुत सुन्दर। गार्ड के ये शब्द अदिति के कानो मे पिघले हुए शीशे की तरह लग रहे थे और उसका संतुलन बिगड़ा तो उसकी कलीग रचना ने उसको संभाला।

क्या हुआ अदिति, तुम ठीक हो ना।

नहीं, हाँ, कुछ नहीं। अदिति कुछ बोलना चाह रही थी लेकिन जुबान साथ नहीं दे रही थी। लेकिन उसने अपने आप को बड़ी मुश्किल से संभाला तभी उनके सर की गाड़ी भी आ गई और लगभग रोते हुए मन से अदिति उनके साथ जा पाई। उसका मन अजीब से ड़र से सुबक रहा था। और बड़े अनमने मन से लगभग बिना कुछ खाए वो सहकर्मियो के साथ वापस आ गई। बाहर निकलते ही उसने आदित्य को फ़ोन किया।

हल्लौ।

हाय जान, कैसी हो, कहाँ हो, क्या कर रही हो। स्वीट मैं इस हफ्ते भी नहीं आ पाऊंगा। मीटिंग के लिये मुंबई में हूँ और यहां का काम अभी 1 हफ्ते है। आदित्य बोला जा रहा था।

तुम मुंबई में हो, तुम्हारी गाड़ी कहाँ है। अदिति ने पूछा।

गाड़ी से ही आया हूँ यार।

अच्छा सच्ची। अदिति ने पूछा।

अरे हाँ यार। मैं क्यों तुमसे झूठ बोलने लगा। पगली। आदित्य ने हँसते हुए बोला।

अच्छा सच बताओ ना। अदिति ने फिर पूछा। शायद आदित्य सच बोल दे।

अरे बाबा सच, क्या हुआ है तुमको, ऐसे क्यू पूछ रही हो। बोलो ना मुम्बई में हूँ, रानी साहिबा।

ये रानी साहिबा, जान मत बोलो मुझे, झूठ का प्यार क्यों दिखाना जब कुछ हो ही न और सुनो मैं लखनऊ आई हूँ, हॉस्पिटल के काम से। यहाँ हर्ष अपार्टमेंट मे आई थी डायरेक्टर साहब का घर है, वहां तुम्हारी गाड़ी, तुम्हारा फ्लैट, तुम्हारी बीवी सब देखा। क्या है ये, कौन सा काम जिसके लिये दो-दो महिने घर नही आते, कौन सी बीवी है ये। और तुम तो मुंबई मे हो ना गाड़ी के साथ तो ये यहां कैसे? अदिति गुस्से मे बोलती जा रही थी।

अरे सुनो, ऐसा नहीं है, मैं बताता हूँ आकर, कल ही आता हूँ। आदित्य बोला।

नहीं मैं आ जाती हूँ तुम्हारे फ्लैट मे अभी रुको, क्यो बुलाओगे नहीं अपनी रानी को अपने दूसरे घर, अपनी दूसरी वाली से मिलवाओगे नही क्या। अदिति ने गुस्से मे बोला।

रुको, मैं कल ही घर आता हूँ, सुनो तो सही।

नहीं आना, बिल्कुल नहीं आना। मैं जा रही हूँ घर से। और हाँ मेरे सामने मत आ जाना कभी। फोन काट कर अदिति ने काम से अवकाश लिया, और अपने मम्मी पापा के यहां चली गई।

बेटी को आया देख कर खुश मम्मी और पापा की सारी खुशी हवा मे उड़ गई जब अदिति ने उनको आदित्य की सारी बात बताई।

क्या कह रही हो, ऐसा नहीं हो सकता। पापा और मम्मी ने एक साथ बोला।

सच पापा, मैं खुद देख कर आई हूँ। मेरे विश्वास को तोड़ा है आदित्य ने मेरे प्यार को अपमानित किया है, मेरे को धोखा दिया है।

बेटा मैं बात करता हूँ आदित्य से। पापा ने बोला।

नहीं पापा किसी को कोई बात नहीं करनी। बात करके होगा क्या, उसने किसी और से शादी कर ली है या साथ रह रहा है। मुझे उससे कुछ नहीं लेना देना। आपको मेरी कसम आप बात नही करोगे। आप ही बताओ ऐसा होने में बाद क्या मैं उसके साथ रह पाऊंगी? क्या टूटा विश्वास जुड़ जाएगा? क्या वो अपनी दूसरी पत्नी या जो भी हो को छोड़ देगा? उस लड़की को भी नहीं बताया होगा न कि वो शादीशुदा है। उसने मुझे ही नहीं उसको भी धोखा दिया होगा।

ठीक है बेटा, जैसा तू कहेगी वैसा ही होगा। तो समझदार है। लेकिन एक बार बात तो कर ले।

क्यों पापा? क्या ऐसा मैं करती या किसी के साथ रहती तो आदित्य मुझे स्वीकार कर लेता? क्या वो बात करता? इसलिए सिर्फ की मैं लड़की हूँ इसलिए मुझे बात करनी चाहिए?

नहीं बेटा, आज तक मैंने तुझे अपना बेटा ही कहा है और तू वही है मेरे लिए। हम तेरे साथ हैं हमेशा। मम्मी पापा ने अदिति को संभाला।

लेकिन ये सारी बातें अदिति की बुआ ने सुन ली। उनका घर मे बहुत मान सम्मान था। कोई उनके आगे बोलता नहीं था। सुनते ही बुआ ने हाय तौबा मचा दी।

अरे फूट गई किस्मत, क्या कर दिया तूने अदिति, घर नही संभाल पाई। बोला था पढ़ाई लिखाई ना करवाओ, घर को संभालना सिखाओ, और पढा लो। फूट गई रे किस्मत। और क्या क्या बोले जा रही थी।

अदिति का रो रो कर बुरा हाल था। ऊपर से ये बातें।

पापा मै अब वहां नहीं जाऊंगी और मुझे उसकी शक्ल नहीं देखनी।

हाँ बेटा, ठीक है, तेरा ही घर है, तेरे सिवा हमारा है भी कौन। तुम जो फैसला लोगी वो सही होगा।

सही होगा मतलब और चढ़ा लो सर पर, कल के कल इसको छोड़ कर आओ और दामाद जी से माफी मांगो। घर नहीं संभाल पाई और आ गई मै नहीं जाऊंगी कहने वाली। कल को बोलेगी तलाक ले लूँगी। हमारे यहाँ ये सब नहीं होता न हुआ न होगा। कल जाकर जमाई बाबू से माफी मांग लो दोनो बाप बेटी। पति के घर से अर्थी ही उठती है समझी ये ही संस्कार हैं।

पापा ने बुआ को समझना चाहा तो बुआ और भड़क गई।

अपनी बेटी को संस्कार देने चाहिए घर चलाने के, और पढ़ा लो डॉक्टर बना लो। पति को नही संभाल पा रही नौकरी करनी है। बुआजी बोलते ही जा रही थी। पड़ोस की महिलाएं भी ये ही बात करने लगे।

अदिति रोते हुए सोच रही थी कि उसने कौन सा असंस्कारी काम कर दिया, धोखा आदित्य ने दिया, घर को उसने तोड़ा, और माफी भी मैं मांगू क्यों? ये ही सवाल उसने बुआ जी से पूछ लिया वो फिर से शुरू हो गई, पाँच साल हुए बच्चा नही हुआ, तुम में ही कमी होगी, तभी उसने दूसरी शादी कर ली।

बुआ जी रोज ये ही बातें सुनाती थी और पड़ोस की बुजुर्ग महिलाये उनका साथ देती रोज शाम को मेला लगता था।

आखिर एक दिन अदिति का धैर्य जवाब दे गया, उसने जोर से कहा आप सब मेरा साथ दे ना दें, मैं अपने आपको संभाल लूँगी। आज अभी एक वकील से मीटिंग है, मैंने तलाक के पेपर बनवा दिए है। और आप सबको कोई परेशानी हो तो मैं चली जाउंगी। लेकिन आज के बाद मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी है और न सुननी है। और हां आज से मैं असंस्कारी हूँ तो हूँ। ऐसे संस्कार का क्या करना जो पति की गलती के लिए पत्नी को जिम्मेदार ठहराएं।

अच्छा बुआ जी एक बात बताओ- मैं अगर किसी और के साथ रहती या आपकी बहु रहने लगे तो क्या आप जाकर उससे माफ़ी मांगोगी या उसको स्वीकार कर लोगी। अब क्यों चुप हो गई आप? बोलो स्वीकार कर लोगी तो मैं आज ही जाती हूँ माफी मांगने। ये क्या बात हुई लड़के ने नाजायज काम किया तो लड़की की गलती। लड़की करे तो भी लड़की की। वाह क्या संस्कार है रीति रिवाज हैं। भाड़ में जाये ऐसे संस्कार।

ये कहकर वो वकील के पास चली गई। उसका टूटा दिल रो रहा था लेकिन वो उस धोखे को नहीं सह पा रही थी जो आदित्य दो साल से या पता नहीं कब से उसको दे रहा था। लेकिन उसने फैसला किया कि इस बात से वो अपनी जिंदगी को रोकेगी नही बल्कि नए सफर पर निकलेगी।

जल्दी ही अदिति उस बन्धन से कानूनी रूप से बाहर आ गई। अब उसने अपना सारा ध्यान अपने कैरियर पर लगा लिया। दिन रात वो सिर्फ काम काम मे लगी रहती। मम्मी पापा को उसकी बहुत चिंता होती। कैसे गुजरेगा उसका जीवन।

एक दिन, अदिति आज गुनगुना रही है, माँ ने ये देखा तो उनको बहुत अच्छा लगा। शाम को डॉ रमेश घर आये, अपनी 6 साल की बेटी सुहाना के साथ। बहुत प्यारी बच्ची थी। वो आते ही अदिति से चुपक गई। उसकी माँ का देहांत 4 साल पहले हो गया था। वो प्यारी सी मासूम बच्ची अदिति से ऐसे चुपकी जैसे उसको छोड़ जाने का कोई विचार ही न हो। उधर बाहर, डॉ साहब अदिति के पिताजी से अदिति का हाथ मांग रहे थे और अंदर अदिति मुस्कुरा कर उनकी बातें सुनते हुए सुहाना के साथ खेल रही थी। बरसों बाद अदिति के दिल पर किसी ने दस्तक दी थी। आज घर में सब खुश थे। अदिति की जिंदगी फिर से रोशन हो गई। सुहाना को माँ मिल गई और अदिति को नई जिंदगी।


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