Dhvani Ameta

Inspirational Others

3.7  

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संबंध

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पलक अपने पति प्रदीप को महंगाई का रोना रोते हुये समझा रही थी। कोरोना काल के बाद आज महंगाई आसमान छु रही है। कमा ने वाले एक आप हो ऐसे में घर कैसे चलेगा। आप अपने बूढ़े माँ बाप को गाव क्यों नहीं भेज देते खर्चा कुछ कम हो जाएगा। 

क्या बात कर रही हो पलक तुम। महंगाई का बहाना मत बनाओ। आखिर वे लोग तुम्हारे सास ससुर है। तुम्हारे माता -पिता के समान है। आखिर इस बुढ़ापे में उनको गाव क्यों भेज दूँ आखिर वहाँ कौन है उनकी देख भाल करने वाला। दो रोटी कम एक खाएँगे मगर हम सब साथ रहेंगे। रजत ने नाराजगी जताते हुये।

मैं नहीं कुछ नहीं सुनना नहीं चाहती। तुम जितनी जल्दी हो सके उनको गाव पहुंचा दो। इतना कहकर पैर पटकती हुई अंदर चली गई। प्रदीप बिना नाश्ता किए और बिना टिफिन के अपने ऑफिस चला गया। अपने दोनों बच्चे प्रतिमा और शेखर को अपनी बाइक से स्कूल छोड़ दिया था।

ऑफिस में उसका मन नहीं लग रहा था। कोई काम भी ठीक से नहीं कर पा रहा था। उसके सीनियर ऑफिसर ने उसे डांट भी लगाई।

लंच के समय प्रदीप केंटीन में चुपचाप बैठा हुआ चाय पी रहा था। उसे अकेला देख उसका दोस्त रोहन जो उसके साथ ही काम करता था उसके पास आकर बैठते हुये पूछा- क्या हुआ प्रदीप तुम अकेले क्यों बैठे हो आज अपनी टिफिन नहीं लाये क्या। भाभी घर पर नहीं है क्या। 

नहीं यार पलक घर पर ही है मगर आज सुबह उससे थोड़ी बहसा- बहसी हो गई थी। फिर उसने रोहन को सारी बात बता दिया। बस इतनी सी बात इसलिए तुम इतना परेशान हो। 

मैं अभी तुम्हारी चिंता दूर किए देता हूँ यार। तुम अपने माता- पिता को गाव ले जाने के बहाने मेरे घर पहुंचा दो मेरी पत्नी गुड़िया को अपने सास -ससुर की सेवा करने का बड़ा मन है मगर तुम तो जानते हो मेरे माता- पिता कब के गुजर चुके है। तुम चिंता मत करो हम दोनों तुम्हारे माता-पिता को अपने माता-पिता से ज्यादा सम्मान देंगे और सेवा करेंगे। मेरी पत्नी को भी बहुत अच्छा लगेगा। 

ठीक है प्रेम मैं एक बार पलक से बात करके देखता हूँ अगर फिर भी वो नहीं मानी तो फिर सोचता हूँ। तुम्हें तो पता है मुझे अपने माता -पिता से कितना प्यार है। कितना मुश्किल से उन्होंने मुझे पाला -पोसा है। अब मेरी बारी आई है तो उनको कैसे छोड़ दूँ। पलक ने  चाय का प्याला पटकते हुये अपने सास -ससुर रोशन और राधा देवी को कहा – आप लोगों को तो बड़ी खुशी हुई होगी आज मेरा पति बिना नाश्ता किए और टिफिन लिए ऑफिस चले गए।

 कैसी बात कर रही हो बहू आखिर प्रदीप मेरा बेटा है हम क्यों ऐसा चाहेंगे। दुख तो हम दोनों को भी हो रहा है। शाम को प्रदीप अपने दोनों बच्चो को स्कूल से लेकर घर आया। दोनों बच्चे दौड़कर अपने दादा – दादी के पास चले गए और उनसे लिपटते हुये कहा – आज हमारा रीजल्ट निकला है। आप दोनों के आशीर्वाद से हम दोनों फ़र्स्ट आए है। उनके दादा – दादी ने उनको अपने गले से लगाते हुये कहा – वाह बहुत सुंदर इसी तरह हमेशा पास होते रहना मेरे बच्चों।

पलक ने गुस्से से उन दोनों को अपने सास ससुर की गोदी से खींचते हुये कहा – केवल तुम्हारे दादा – दादी ने ही तुम दोनों को आशीर्वाद दिया है मैंने कुछ नहीं किया है क्या। चलो हाथ मुंह धोकर खाना खा लो।

दोनों अपनी माँ के डर से चुपचाप चले गए। 

रात को खाना खाते समय नैना ने रजत से कहा – अपने माता- पिता को कब गाँव ले जा रहे हो। मुझसे उनकी सेवा नहीं हो पाएगी। घर में और भी कई काम है। कर कर के थक जाती हूँ ऊपर से तुम्हारे माता -पिता का नखरा। 

सोच लो फिर से नैना इससे उनको कितना दुख लगेगा की बुढ़ापे में जब उनकी देखभाल करनी थी उस समय अकेले गाँव भेजा जा रहा है। रजत ने नैना को समझाने का प्रयास करते हुये कहा।

बच्चे अब बड़े हो रहे है। उनकी पढ़ाई लिखाई का खर्चा बढ़ रहा है। घर में सारा खर्चा करने के बाद एक रुपया नहीं बचता है। मैंने कई महीने से कोई नई साड़ी और गहना भी नहीं लिया है। तुम बस उन लोगों को गाँव पहुंचा दो इसके अलावा मैं कुछ नहीं सुनना चाहती हूँ। पलक दो टूक लहजे में अपनी बात कह दी। ठीक है तुम नहीं मानोगी तो मैं पहुंचा आऊँगा। प्रदीप ने पलक के सामने हार मानते हुये कहा।

रात को प्रदीप धीरे से अपने माता - पिता के कमरे में गया और उनको पलक की जिद के बारे में बताने के बाद कहा- मैं आमलोगों को कुछ दिनों के लिए अपने दोस्त रोहन के घर पहुंचा दूंगा। वहाँ आप लोगों को कोई कष्ट नहीं होगा। रोहन और उसकी पत्नी गुड़िया आप दोनों का पूरा ख्याल रखेंगे। हर शनिवार की शाम को मैं भी आ जाऊंगा और रविवार को दिन भर आप सबके साथ रहूँगा। साथ में अपने बच्चों को भी लाया करूंगा वे भी आप दोनों के साथ मिलकर खुश होंगे और आप दोनों का मन भी लगेगा।

अगले दिन प्रदीप ने अपनी पत्नी पलक से कहा तुम ऑटो से बच्चों को स्कूल पहुंचा दो मैं अपने मम्मी पापा को गाँव लेकर जाता हूँ। पलक बहुत खुश हुई और वो नंदिनी और क्रियाश को लेकर स्कूल चली गई। पलक के जाते ही प्रदीप ने एक ऑटो से अपने मम्मी पापा को लेकर रोहन के घर पहुँच गया। 

प्रदीप और उसके माता -पिता को देखकर रोहन और उसकी पत्नी गुड़िया बहुत खुश हुये। दोनों उनका पाव छूकर प्रणाम किया। थोड़ी देर में गुड़िया ने उनको चाय नाश्ता बना कर दिया। प्रदीप और रोहन दोनों नाश्ता करने के बाद साथ में अपने ऑफिस चले गए।

शाम को नंदिनी और क्रियाश जब घर आए तो अपने दादा – दादी को घर में न पाकर अपनी माँ से पूछा – मम्मी दादा – दादी नहीं दिख रहे है वे दोनों कहा गए। पलक ने बताया – उनका यहाँ मन नहीं लग रहा था इसलिए तुम्हारे पापा उन दोनों को गाव लेकर गए है।

अपनी माँ की बात सुनकर दोनों बच्चे बड़े उदास हुये। वे सोचने लगे अब वे किसके साथ खेलेंगे। कौन उनको कहानी सुनाएगा। कौन उनको प्यार दुलार करेगा। दुखी होकर दोनों ने पलक के लाख समझाने पर भी रात का खाना नहीं खाया। बिना खाये ही सो गए।

 दो दिनों बाद प्रदीप भी घर आ गया। दोनों बच्चे प्रदीप से नाराजगी जाहिर करते हुये कहा- पापा हम दोनों आपसे बहुत नाराज है आपने हमारे दादा दादी को गाव क्यों पहुंचा दिया। उनके बिना हमारा मन नहीं लग रहा है। जाइए हमलोग आपसे बात नहीं करेंगे। रजत ने बड़ी मुश्किल से उनको चॉकलेट देकर मनाया।

तुम लोग चिंता मत करो अगले शनिवार को तुम दोनों को तुम्हारे दादा – दादी के पास ले चलूँगा। अकेले में प्रदीप ने अपने बच्चों को सब सच बता दिया। दोनों बच्चे बहुत खुश हो गए।

प्रदीप हर शनिवार को अपने दोनों बच्चों को लेकर प्रेम के घर चला जाता था। बच्चे अपने दादा – दादी के साथ खूब खेल कूद करते थे। शाम को सभी पार्क में घूमने जाते थे। रविवार को कभी कभी सभी पिकनिक मनाने या किसी होटल में खाना खाने चले जाते थे। सोमवार की शाम प्रदीप अपने बच्चों को स्कूल से लेकर घर चला आता था। रोहन के लाख मना करने पर भी वो उसे कुछ रुपए अपने माता- पिता के खर्चे के लिए दे देता था।

पलक कुछ दिनों तक तो खूब खुश होती रही की उसके घर का खर्चा बचने लगा है। अपने सास – ससुर की सेवा नहीं करनी पड़ रही है। उनकी डांट फटकार सुनने को नहीं मिल रही है। मगर धीरे- धीरे उसे उनकी कमी काफी खलने लगी| दो दिनो तक बच्चे और पति भी घर पर नहीं रहते है घर खाली खाली लगता है। बगल वाली गुप्ताजी की पत्नी  अपने सास ससुर का कितना ख्याल रखती थी। हमेशा उनको लेकर मंदिर और प्रवचन में आया जाया करती थी| उनके बच्चे भी बड़े खुश रहते थे।

एक दिन उसने प्रदीप से कहा – आपके मम्मी पापा कैसे है काफी दिन हो गए उनको गए हुये। एक दिन मुझे भी ले चलो न गाँव उनसे मिलना है। प्रदीप ने कहा सब बड़े मजे में है। मगर मुझे अभी छुट्टी नहीं मिलेगी जब मिलेगी तब तुम्हें उनके पास ले चलूँगा।

एक रविवार को प्रदीप और प्रेम सबको लेकर एक होटल में खाना खा रहे थे तभी पलक अपनी पड़ोसन के साथ गुप्ताजी की पत्नी के साथ पनीर लेने गई। मगर वहाँ प्रदीप को अपने बच्चों और सास – ससुर के साथ देखकर हैरान रह गई। उसने अपनी पड़ोसन को कहा आप चलो मैं बाद में आती हूँ। फिर वो लपक कर प्रदीप पास गई। अपने सास- ससुर को देखकर वो बहुत खुश हुई मगर आश्चर्य भी हुआ।

उसने प्रदीप से पूछा तुमने तो कहा था इनको गाव छोड़ आए हो फिर ये लोग यहाँ कैसे। उसने झुक कर अपने सास – ससुर का पैर भी छूया। अपने बच्चो को प्यार भी किया।  प्रदीप ने कहा यहाँ होटल में नहीं तुम घर जाओ वही आकर सब बताऊंगा। पलक ने जिद करते हुये कहा – नहीं मैं अकेले घर नहीं जाऊँगी मेरे सास – ससुर भी साथ घर जाएंगे और तुम भी चलो बच्चो को लेकर।

गुड़िया ने कहा ये दोनों मेरे सास – ससुर है। तुम्हारे होते तो इनको घर से नहीं निकालती। गुड़िया ने पलक का जवाब देते हुये कहा। इनपर अब तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। पलक ने रजत की तरफ देखते हुये कहा ये क्या बोल रही है तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो प्रदीप ने कहा – अभी तुम घर जाओ। बाद में आकर तुमको सब समझाता हूँ।

नहीं अब तो मैं सबको लेकर ही घर जाऊँगी। पलक हठ कर बैठ गई। गुड़िया ने कहा – क्या अपने माता -पिता ही माता- पिता होते है। पति के माता पिता के साथ तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं होता है।

पलक और गुड़िया को बीच में टोकते हुये रोहन ने कहा देखो भाभी जी जब तुम्हारे सास -ससुर तुम्हारे साथ थे तब तुम्हें बोझ लग रहे थे। तुम्हारा खर्चा हो रहा था। मगर कभी सोचा अगर ये नहीं होते तो तुम्हारा पति कहा से आता। अगर तुम्हारे पति को पाल पोसकर ,पढ़ा लिखाकर काबिल नहीं बनाया होता तो क्या तुम्हारे माता -पिता रोहन के साथ विवाह करते एक अनपढ़ और बेरोजगार लड़के के साथ। जब रोहन तुम्हारे माता -पिता को अपने माता -पिता की तरह मान सकता है तो तुम क्यों नहीं। तुम्हारे पति के लिए जो इन्होंने किया क्या उसका कोई मोल नहीं है। क्या तुम्हारा इनके साथ कोई रिश्ता नहीं है। 

गुड़िया को देखो इनके साथ कोई रिश्ता नहीं होते हुये भी इनको अपना सास -ससुर मान बैठी है। एक तुम हो तुम्हारे साथ रिश्ता होते हुये भी तुमने इनको ठुकरा दिया। पलक रोने लगी। उसने अपनी किए के लिए सबसे माफी मांगी और कहा मुझसे बहुत भूल हो गई है। अपने सास -ससुर के साथ मैं अपने पति और बच्चों को भी नहीं खोना चाहती। मैं बहुत अकेली हो गई हूँ। इन सबके बिना घर सुना- सुना लगता है। 

प्रदीप ने उसे चुप कराते हुये कहा अब चुप हो जाओ। हम सब घर चलेंगे मरे मम्मी -पापा भी। मैं इनको गाँव नहीं ले गया था। इतने दिनों से रोहन और गुड़िया के घर ही थे और इनकी खूब सेवा सत्कार कर रहे थे। फिर सब लोग प्रदीप के घर चले गए। रोहन और गुड़िया भी साथ थे। पलक बहुत खुश थी।उस रात पलक और गुड़िया ने मिलकर रसोई घर में सबके लिए खूब खीर पकवान बनाया और पार्टी मनाई। गुड़िया फिर से अपने घर में अपने सास ससुर को घर में पाकर फुली नहीं समा रही थी। घर का खर्चा में मदद करने के लिए उसने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर लिया।  

-:समाप्त:- 



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