समर्पण
समर्पण
राधा और आशीष ग्यारहवीं कक्षा से एक दूसरे के पक्के दोस्त बन गये।कहीं न कहीं आशीष राधा की सुंदरता,बुद्धिमत्ता और वाकपटुता का क़ायल हो चुका था और राधा भी उसकी सादगी,उसके आकर्षक रूप और हँसमुख व्यवहार से प्रभावित हो चुकी थी।कब जान-पहचान दोस्ती में बदली और दोस्ती प्यार में...दोनों को इसका पता भी न चला।अब दोनों इण्टरमीडिएट में थे और जल्द ही विदाई समारोह का दिन भी आ गया।उस दिन उनको पहली बार दूर जाने का अहसास हुआ और दोनों की आँखें नम हो गयीं।
मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी आशीष......मैं....तुमसे....मतलब...मुझे ऐसा लगता है कि मैं........।
क्या तुम भी..... आशीष बोला।
मतलब तुम भी मुझसे प्यार करते हो ? बोलो न कभी कहा क्यूँ नहीं ? आज भी मैं न कहती तो??बोलो बोलो,कहते हुए राधा हँसने लगी और आशीष भी मानो सातवें आसमान पर था।
इंटरमीडिएट की परीक्षा के पश्चात दोनों का सिलेक्शन अलग-अलग इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया।समझ में नहीं आ रहा था कि सिलेक्शन की ख़ुशी मनाए या दूर जाने का दुःख क्यूँकि अब जल्दी से मिलना भी न हो पाएगा।बस एक ही ख़ुशी थी कि दोनों के कॉलेज एक ही शहर में थे।
अरे पगली बस चार साल की तो बात है फिर तो हम हमेशा हमेशा के लिए एक हो जाएँगे,रोती हुई राधा को अपने सीने से लगाते हुए आशीष बोला और बमुश्किल अपने आंसुओं को रोक पाया।
दोनों अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गये लेकिन समय निकालकर फ़ोन पर बात करते रहते,और कभी कभार मिलना भी हो जाता।ऐसे ही एक साल बीत गया।राधा के कॉलेज में उसकी ही कक्षा का एक लड़का विराट जो उस साल मिस्टर कॉलेज चुना गया,अचानक उसके सामने आया एक गुलाब लेकर और घुटनों पर बैठकर राधा को प्रपोज़ करने लगा।राधा सन्न होकर उसको देखती रही और कुछ बोलती कि तभी सब दोस्त हँसते हुए कक्षा में आ गये।
देखो भई मैंने अपना टास्क पूरा कर दिया....तुमने कहा था कि कोई राधा को प्रपोज़ नहीं कर सकता......लो मैंने कर दिया,मुस्कुराते हुए विराट बोला।
टास्क ? राधा बोली।
हाँ यार अब क्या मज़ाक़ भी नहीं कर सकते ? राधा के सारे दोस्त हँसने लगे लेकिन अब वो विराट की तरफ़ आकर्षित होती जा रही थी।उसका लम्बा गोरा क़द,सुडौल काया,आकर्षक व्यक्तित्व और उसकी बातों में...जैसे वो उलझती जा रही थी।कब उसने आशीष की जगह विराट को दे दी, शायद उसको भी पता न चला।अब तो आशीष से बात भी कम ही करती,कोई न कोई बहाना बनाकर उसने आशीष से मिलना भी बंद कर दिया।
उधर आशीष का यह सोच सोचकर बुरा हाल था कि राधा उससे क्यूँ नज़रें चुरा रही है।आशीष के कम ही दोस्त थे लेकिन सब राधा के प्रति उसके प्यार को समझते थे।उन्हीं में से थी काजल जो सब जानते हुए भी आशीष को बहुत पसंद करती थी लेकिन कभी उसने आशीष को ये जताया नहीं।हाँ बाँकी के दोस्त कभी आशीष को चिढ़ाने के लिए काजल का नाम लेते थे तो शायद वह भी काजल के मनोभावों को समझने लगा था लेकिन राधा का स्थान कोई और नहीं के सकता ऐसा वह गाहे-बगाहे बताता रहता था।काजल तो आशीष की दोस्ती में ही सुकून पा लेती थी और अपने जज़्बात दिल में समेटे पूरी ईमानदारी से दोस्ती निभा रही थी...बिना किसी उम्मीद के...।
कॉलेज का एक और वर्ष इसी तरह बीत गया।अब तक राधा और विराट पूरी तरह से एक दूसरे के रंग में रंग चुके थे।आशीष बस राधा के फ़ोन का ही इंतज़ार करता रहता कि एक दिन राधा का फ़ोन आया और आशीष को हैलो की जगह “मैं किसी और से प्यार करती हूँ” सुनने को मिला।ये शब्द मानो सीसे की तरह उसके कानों में पिघलने लगे,दिल ज़ोरों से धड़कने लगा,आँखों के आगे अंधेरा छा गया।इसके बाद राधा ने क्या कहा उसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया।
फ़ोन काट दिया राधा ने....एक बार भी नहीं सोचा....मैं...कैसे......उसके बिना.....क्यूँ राधा क्यूँ.....क्यूँ किया तुमने ऐसा...कहते कहते आशीष फूट-फूट कर रोने लगा।हर दिन बस अपने आपको मानो तिल तिल मार रहा था वह।न खाने का होश,ना पढ़ाई में ध्यान,न अपने शरीर की सुध।सारे दोस्त प्रयास करते...पर सब बेकार।आशीष की ऐसी हालत देखकर काजल की भी तबियत बिगड़ने लगी।जब आशीष को पता चला की ये सब उसके कारण हुआ है तो उसे बहुत अफ़सोस हुआ।वो काजल से मिला,उसे समझाया कि राधा की जगह कोई और....मैं सोच भी नहीं सकता..उसकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है।
यही अगर मैं भी कहूँ तो.....काजल बोली।मैंने कब तुमसे प्यार माँगा लेकिन ये भी सच है कि मैं तुमसे बहुत...बहुत प्यार करती हूँ....बस तुम ख़ुश रहो मैं भी यही चाहती हूँ....मैं तुम्हें ऐसे नहीं देख सकती....नहीं देख सकती,कहते कहते काजल की आँखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
रात भर यही सोचता रहा कि इतनी शिद्दत से जिसको चाहा उसने एक बार भी पलटकर नहीं देखा,इतने सालों का प्यार भी कोई ऐसे भूलता है भला और एक ये.....काजल....बिलकुल पागल है.....सब जानते हुए भी....इतना निःस्वार्थ प्रेम....क्या मैं ठीक कर रहा हूँ इसके साथ....क्या मुझे नहीं पता दिल टूटने पर कितना दर्द होता है......लेकिन मैंने कब कोई वादा किया था काजल से?.....उसको तो सब पता था न.... नहीं नहीं... मैं....अपनी राधा को धोखा नहीं दे सकता.....अपनी राधा ?हाँ मैंने तो यही समझा था.....लेकिन... फिर भी .... क्या मैं सच में काजल को इतना प्यार दे पाऊँगा....क्या उसके समर्पण के साथ न्याय कर पाऊँगा। रात भर दिमाग़ में यही कश्मकश चलती रही,आँखों ही आँखों में रात बीत गयी।
सुबह उठकर कुछ सोचकर आशीष काजल के पास जाने को निकला कि अचानक राधा आशीष के सामने आ कर हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगने लगती है।काजल दोनों को देखकर चुपचाप कैंटीन में चली जाती है। थोड़ी देर में आशीष चुपचाप काजल के बग़ल में बैठ जाता है और बोलता है-पायल आयी थी......विराट से धोखा मिला तो....माफ़ी माँगने आयी थी।
हाँ...देखा था मैंने...तो तुमने माफ़ कर दिया न ?
हाँ,मैंने उसको माफ़ कर दिया।
चलो अच्छा हुआ..बधाई हो.....अपनी शादी में....बुलाओगे न?अपने आँसुओं को लगभग गुटकते हुए काजल बोली।
हाँ..हाँ..ज़रूर बुलाऊँगा....वो क्या है न कि दुल्हन के बिना शादी नहीं होती,कहते-कहते आशीष मुस्कुराने लगा।
लेकिन तुमने तो...
हाँ माफ़ कर दिया लेकिन अब मैं तुम्हारे समर्पण का स्थान राधा के स्वार्थ को नहीं दे सकता।मेरे दिल में बस अब तुम ही हो और हमेशा रहोगी।बोलो..दोगी न मेरा साथ।
काजल ने सिर हिलाकर सहमति दो लेकिन अपने आँसू ना रोक सकी पर अब ये ख़ुशी के आँसू थे।

