समझ
समझ
"मम्मी, क्या पहनूँ मैं ? दो महीने से आपने मेरे लिए एक भी ड्रेस नहीं लाकर दी है ! मेरी फ्रैंड नीतू के पास कितनी सुंदर सुंदर ड्रेसेज़ हैं.. वह कभी रिपीट नहीं करती और एक मैं हूँ कि... और वह एक से एक बड़ी गाड़ियों में आती है,, कितनी शर्म आती है उसके सामने।" कहते हुए गुस्से में उसने सारे कपड़े अलमारी से निकाल कर ज़मीन पर फेंक दिए और कॉलेज चली गई।
लौटते समय क्लास की ही, पढ़ाई में अव्वल लड़की सुनीता से नोट्स लेने वह उसके घर चली गई...पर ये क्या ? उसके घर में टूटा सा दरवाज़ा और फिर अंदर घुसने पर कमरे के दरवाजे पर पुरानी साड़ी का पर्दा पड़ा देखकर उसका मन अजीब सा हो गया।
इतनी गरीबी में कैसे रहती है ये और कितनी खुश रहती है ! सुविधा ना होने के बावजूद पढ़ने में भी कितनी तेज़ है।" मन ही मन वह अपनी सुबह वाली हरकतों पर शर्मिंदा हो रही थी ! अब उसका मन नहीं लग रहा था उसने चुपचाप सुनीता से नोट्स लिये और घर आ गई।
आज उसे मम्मी की कही बातें याद आ रही थी ! सही ही तो कहती हैं वो कि "बेटा, अपने से ज़्यादा हैसियत वालों को नहीं देखो, बल्कि अपने से कम हैसियत वालों से अपनी तुलना करो. .तब देखना तुम कितनी सुखी रहोगी।"
वह उठी और सुबह निकालकर फेंके हुये कपड़े वापस अलमारी में करीने से लगाने लगी।