Nand Lal Mani Tripathi

Action Crime Thriller

4.4  

Nand Lal Mani Tripathi

Action Crime Thriller

स्मारक

स्मारक

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342


गांव मेंं अमूमन शान्ति का माहौल था 

क्योकि गांव के खुराफातियों ठाकुर सतपाल की मृत्यु हो चुकी थी और लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त का मन पसंद शोमारू गांव का प्रधान हो चुका था। शोमारू कम पढ़ा नही था सिर्फ साक्षर और सीधा साधा गंवार किस्म का अतिसाधारण ग्रामवासी था उसे किसी खुराफात से कोई मतलब नही था एव ना ही प्रधान होने का गुरुर या लालच।जो भी लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त कहते करता जाता उसके लिये लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के आदेश का पालन ही अपना धर्म कर्म था इसके अतिरिक्त वह अपना कुछ भी दिमाग नही लगाता कुल मिलाकर लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त की चाकरी ही करता।धीरे धीरे समय बीत रहा था गांव वाले भी सुकून मेंं थे किसी को गांव के विकास की कोई फिक्र नही थी खुशी इस बात पर थीं कि गांव मेंं कोई नया फसाद नही खड़ा हो रहा था गांव वालों को लग रहा था गांव का विकास हो या ना हों अमन चैन बना रहे उनको यह भी चिंता नही थी कि पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति शोमारू से अनाप सनाप कार्य एव निर्णय कराते रहते। चौधरी सुरेमन के प्रधान रहते गांव मेंं विकास की एक धारा बह रही थी और उनकी लोकप्रियता से गांव की खुराफाती तिगड़ी पंडित महिमा दत्त ठाकुर सतपाल एव लाला गजपति उसे परेशान करने की खुराफ़त करते जिसमें वे सफल भी हो गए थे मगर गांव वालों को विकास से अधिक शांति प्रिय लगी और मात्र तीन साल बाद पुनः प्रधानी का चुनाव होना निश्चित था अतः गांव वालों ने पंडित महिमा दत्त और लाला गजपत की कारगुजारियों की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया।इधर पण्डित महिमा दत्त एव लाला गजपति की मनमानी को शोमारू अपना कतर्व्य मान उनके आदेश का पालन करता जा रहा था।

उधर गांव का चुना प्रधान चौधरी सुरेमन अपनी सजा काट रहा सजा समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहा था।

 पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति इस बात पर आनंदितआत्मआल्लादित

थे कि मित्र ठाकुर सतपाल ने जाते जाते भी दोस्ती निभाई और हम दोनों मित्रो को अपनी कुर्बानियों से गांव की सत्ता दिलाई बेचारे सतपाल ने दोस्ती की ऐसी मिशाल कायम की जो दूँनिया मेंं कम ही मिलती है दोस्त सतपाल ने

अपनी चिता भी मांगी तो मोक्ष या मुक्ति के लिये नही वरन हम दोनों मित्रो के लिये दोस्त हो तो ऐसा पंडित महिमा एव लाला गजपति ने आपस में विचार किया कि क्यो न हम लोग गांव मेंं ठाकुर सतपाल सिंह के नाम का स्मारक बनवाये इस कार्य के लिये इस वक्त से मुफीद वक्त नही मिलने वाला क्योकि शोमारू प्रधान है तो मित्र सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जगह भी मिल जाएगी और पैसा भी पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति ने आपस में सलाह मशविरा करके गांव मेंं जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वही जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये सबसे उचित लगी दोनों स्वयं प्रधान शोमारू के पास गए और ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के वावत बात की जब ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक की बात चल रही थी ठीक उसी समय शोमारू की पंद्रह साल की बेटी चबेना और गुड़ लेकर वहाँ आयी पंडित महिमा और लाला गजपति की निगाह शोमारू की बेटी सुगनी पर पड़ी दोनों ने एक टक देखने के बाद शोमारू से पूछा शोमारू यह तुम्हारी बेटी है सीधा साधा शोमारू निश्चल निर्विकार बोला हाँ हुज़ूर यह मेंरी बेटी सुगनी है दसवीं जमात मेंं पढ़ती है अब तक गांव की कउनो लड़की इतना नाही पढ़े है।

पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा तोर भाग शोमारू देख आज तक तोरे बिरादरी मेंं केहू प्रधान होखे खातिर सोच सकत रहे देख ते प्रधान है और एमा हमरे मित्र ठाकुर सतपाल केतनी बड़ी कुर्बानी दिए है। सुगनी वहां से जा चुकी थी पुनः पंडित महिमा और लाला गजपति ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये विचार विमर्श करने लगे शोमारू प्रधान बोले हुज़ूर आप तो जनते हो हम ठहरे नीरा गवार जहां कहेंगे वहां हम ठाकुर साहब का स्मारक की जमीन की जगह के लिये अंगूठा लगाई देब तब पंडित महिमा एव लाला गजपति ने बड़ी होशियारी से शोमारू को समझाना शुरू किया पंडित महिमा दत्त बोले देखो शोमारू जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वह जगह मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जी के लिये वाजिब होगी क्योंकि सदबुद्धि यज्ञ की आग से ही मुखाग्नि की ठाकुर साहब की अंतिम इच्छा थी और वे उसी अग्नि मेंं समहित भी हुए शोमारू ने पूछा हुज़ूर जब ठाकुर साहब गांव मेंं आग लागे से पहले मर चुके थे तब का उनका मुर्दा आग मेंं कूदा रहा तब लाला गजपति एव पंडित महिमा ने अभियान मेंं एक साथ बोला बक बुरबक कही मुर्दा आग मेंं कूद सकत है और बात को बादलते हुए बोले ई वखत एकर समय नाही है कि मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जिंदा आग मेंं कूदे या जिंदा मणनसन्न अवस्था में उनका कोउ फेंक दिहेस ई समय उनके स्मारक की बात हुई रही है शोमारू बोला मालिक सदबुद्धि यज्ञ की जमीन त गांव मेंं प्राइमरी पाठशाला खातिर हौ हाकिम लोग जांच पड़ताल करके गवाँ है पुनः लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त ने शोमारू को समझाना शुरू किया बोले देख शोमारू गांव मेंं प्राइमरी पाठशाला खुले ना खुले वोसे ना ते गांव प्रधान बने है और खुलिओ जाय त फिर ना बनपैबे सोमारू बोला हुज़ूर हम प्रधान रही चाहे ना रही मगर गांव मेंं प्राइमरी पाठशाला खुले से गांव के लड़िका पढ़िये लिखिए त गांव के तरक्की होई तब दबाव और भय की राजनीति का दांव खेलते पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा कि देख शोमारू गांव मेंं पाठशाला खुले ना खुले सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति कुंड की जमीन पर ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक जरूर बनी चाहे उनकर बने चाहे तोहरे साथ बने शोमारू को अंदाजा लग गया कि अगर अब उसने आना कानी की तो निश्चित ही दोनों मिलकर उसे सांसत मेंं डाल सकते है शोमारू ने तुरंत कहा हुज़ूर गांव आपोके है आप लोग होशियार मनई ह कुछ गलत थोड़े करब ठीक है ठाकुर साहब के स्मारक जहाँ कहत ह वही बने तब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति एक साथ बोले कल गांव पंचायत सदस्यन से प्रस्ताव पारित कराके सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये निश्चित कराइलेव भईया प्रधान जी शोमारू बाबू इतना कह कर पंडित महिमा और लाला गजपति शोमारू के घर से निकले रास्ते में पंडित महिमा दत्त बोले कि देखा लाला गजपति सोमारुआ के बिटिया कैसी जवान लाज़बाब गुदड़ी क लाल लागी रही थी लाला गजपति बोले पंडित जी बात त ठिके कहत हौव् मगर समय के इन्तज़ार कर रस और मीठा होई पंडित महिमा दत्त बोले लाला जी सुगनी के हाथे क गुड़ चबेना खाईके हम मताई गइल हई अब त लगता कि गुड़ चबेना खाये रोजे जाएके परी लाला गजपति बोले पंडित तू पगलाई गइल हव सबर कर सबर क फल मीठ होत है जैसे पंडित जी कलेजे पर जैसे पत्थर रख दिया गया हो बोले ठिके ह लाला जी काल हम जात हई नदी नहाए ससुरा गाँवई के पंजरे नदी लरिकाई मेंं सांझा सुबह दुपहरिया हर दम नहात रहेन अब दस वरस होई गइल होली संक्रांति पुर्नवासीओ ना नहाइत काल भोरे जाब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति दोनों अपने घर चले गए।

सुबह चार बजे ब्रह्म मुहूर्त मेंं पंडित महिमा दत्त उठे और पंडिताइन से बताया कि आज गांव के पास नदी स्नान के लिये जा रहे हैं गांव के पंचायत सदस्यों की बैठक सतपाल सिंह के स्मारक के जमीन पर प्रस्ताव हेतु सहमति पर बैठक से पहले लौट आएंगे। लोटा धोती लेकर स्नान के लिये घर से निकल पड़े नदी गांव से लगभग आधे मिल दूरी पर थी अतः कुछ ही देर मेंं पंडित महिमा दत्त नदी तट पहुंचे तुरंत नित्य कर्म से निबृत्त होकर नदी मेंं स्नान किया और फिर गांव की ओर चलने लगे। ज्यो ही दस कदम आगे बढ़े उनके दाहिने पैर का अंगूठा नदी की रेत मेंं किसी खोखले बस्तु मेंं फंस गया पंडित जी ने गौर से देखा तो वह किसी मानव की खोपड़ी की अस्ति पंजर थी जिसमें उनके पैर का अंगूठा फंस गया था पंडित जी ने विचार किया कि अभी नदी स्नान कर निकले है यह भगवान की कृपा है कि यह मानव खोपड़ी किसी विशेष भविष्य मेंं छिपे रहस्य के कारण ही टकराई है क्यो न इसे संभाल कर घर ले चला जाय पंडित जी ज्यो ही उस खोपड़ी को उठाने के लिये नीचे झुके देखा कि खोपड़ी मेंं गेहुआँ सांप कोबरा छिपा बैठा था पंडित जी को लगा जैसे भगवान स्वयं उस मानव खोपड़ी मेंं सांप बनकर बैठे है सो पंडित जी ने मानव खोपड़ी को अपने भीगे कपड़े मेंं बड़ी मुश्किल से लपेट लिया जिसमेंं खोपड़ी के साथ साथ साँप भी उसी गीले कपड़े मेंं बंध गया अब पंडित जी खोपड़ी और उसमेंं छिपे सांप को अपने डंडे के एक किनारे बांध लिया और डंडे को कंधे पर रख कर गांव मेंं वही पहुंचे जहां गांव के देवता के स्थान पर पीपल के पेड़ के निचे ठाकुर सतपाल के स्मारक की जमीन के प्रस्ताव पर विचार विमर्श चल रहा था जब पंडित जी वहां पहुंचे तो पंचायत के जले भुने सदस्यों ने व्यंग मारते हुए एक स्वर मेंं कहा आईये यहां लाला गजपति तो थे ही आपही की कमी थी पंडित जी ने भी उसी अंदाज मेंं जबाब दिया तुम गांव वालों की क्या मजाल जो मेंरे और लाला गजपति के बिना कोई भी कार्य कर सको लो मैँ हाजिर हो गया।

अब पुनः ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जमीन पर चर्चा शुरू हुई पंचायत के सारे सदस्य अड़े थे कि सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति की जगह गांव मेंं प्राइमरी स्कूल के लिये है अतः उसे स्मारक के लिये नही दिया जा सकता पंडित जी के आने से पहले लाला गजपति ग्राम पंचायत के सदस्यों को संमझा कर तंग आ चुके थे मगर कोई असर नही हुआ। शोमारू प्रधान ने कह रखा था कि गांव पंचायत सदस्यों को मनाना पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति का काम है।तेज हवा पछुआ भी चल रही थी और बसंत का खुशगवार मौसम था पंडित जी ने अपने गीली धोती मेंं बंधी मानव खोपड़ी अपने डंडे सहित पीपत के पेड़ मेंं किसी तरह अटका रखी थी जब पंडित जी पंचायत की बैठक मेंं आये और पीपल के पेड़ मेंं अपनी लाठी मेंं बंधे खोपड़ी को रखने की जुगत कर रहे थे तभी बैठक मेंं बैठे सभी पंचायत सदस्यों को किसी खुराफात की आसंका हुई मगर किसी ने ध्यान इसलिये नही दिया कि कोई खास बात नज़र नही आई।

पंडित जी की पुरानी धोती मेंं बंधी खोपडी गांव पंचायत बैठक मेंं पहुचते पहुचते फट चुकी थी पंडित जी की लाठी के एक किनारे लटकी खोपड़ी से सांप कभी कभार अपना फन निकाल कर बाहर निकलने की आहट लेता मगर डंडे के एक किनारे लटके होने के कारण अपना फन फिर खोपड़ी मेंं छुपा लेता अब वह पीपल के पेड़ पर फ़टी धोती से निकल कर पंचायत सदस्यों की चल रही बैठक के ठीक ऊपर वाली पतली डाल पर बैठा हवा के झोंको का आनंद ले रहा था।लाला लाजपत ने पंडित महिमा को बताया कि उनके आने से पहले उसने पंचायत सदस्यों को समझाने की बहुत कोशिश की मगर पंचायत सदस्य सद्बुद्धि यज्ञ हवन कुंड की जगह प्राइमरी विद्यालय बनाने को आड़े है।पंडित महिमा के समझ में आ गया कि बात सीधे नही बनने वाली है उन्होंने बोलना शुरू किया देखो भाई पंचायत सदस्यों सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड के जगह पर तो मरहूम ठाकुर सतपाल जी का स्मारक ही बनेगा चाहे जितना बखेड़ा खड़ा करना हो कर लो ठाकुर सतपाल ने शरीर छोड़ा है ना तो हम लोगों का साथ छोड़ा है ना गांव ठाकुर आदमी जो चाहते है उसे जिंदा या मुर्दा किसी तरह पूरा ही करते है।अब मैँ ठाकुर सतपाल से ही पूछता हूं बताओ मित्र तुम्हारा स्मारक सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड पर बनेगा की नही पंचायत के सारे सदस्य पंडित महिमा का चेहरा देखते कहने लगे पण्डितवा पगलाई गवा का ई ससुर जियत है तो स्मारक के जमीन खातिर कुछ करि नाही पावत हैं।

अब मुर्दा ठग सतपाल का करि जब जिंदा लाला गजपति और ई कुछ नाही करि सकत अभी संसय परिहास के मध्य पंचायत सदस्य पड़े हुये थे कि खोपड़ी का सांप जो खोपड़ी से निकल पीपल के डाल पर बैठा था एकाएक पंचायत सदस्य मुसई पर गिरा और उसको डस लिया मुसई गिरकर तड़फड़ाने लगा बाकी लोगों ने मिलकर साँप को मारने की कोशिश और बड़ी मुश्किल से उसे मार सके अब मुसई के उपचार मेंं झाड़ फूंक हुआ मगर मुसाई को बचाया नही जा सका। गांव वालों के बीच चर्चा आम हो गई कि सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक हेतु दे दी जानी चाहिए नही तो जीते जी ठाकुर ने कम परेशान किया मरने के बाद और परेशान करेगा जैसा कि पंडित महिमा कह रहे थे अब पंचायत के सभी सदस्य एकमत होकर सदबुद्धि यज्ञ की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये दे दी और सभी ने मिलकर ठाकुर का भव्य स्मारक बनवाया और बड़े जोर शोर से उसका उद्घाटन विधि विधान से करवाया और ठाकुर साहब की प्रतिमा के समक्ष खड़े होकर गांव की हिपज़त का आशीर्वाद मांगते हुए प्रार्थना की ठाकुर साहब आपने जीवित रहते हुए अपने दो मित्रो लाला गजपति और पंडित महिमा के साथ मिल कर गांव वालों को बहुत परेशान किया मरते मरते भी आपने चैधरी सुरेंमन को जेल भेज दिया और अब मुसाई की जान आपके ही स्मारक के चक्कर में अखड़ेरे चली गयी अब आप हम गांव वालों पर रहम करो। गाँव वालों की प्रार्थना सुनकर पंडित महिमा और लाला गजपति बोले गांव वाले आप चिंता ना करो हम लोग ठाकुर सतपाल की आत्मा को मनाएंगे और कोशिश करेंगे कि अब गांव मेंं शांति सौहार्दपूर्ण वातावरण बरकरार रहे मगर इसके लिये गांव के हर घर से ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक पर एक रुपया हर इतवार को चढ़ाया जाना होगा गांव वालों ने खुशी खुशी पंडित और लाला की शर्त स्वीकार कर ली अब क्या था हर इतवार को लाला और पंडित के पास पांच सौ रूपये आ जाते जिससे वे अपनी अनाप सनाप जरूरतों हेतु खर्च करते।गांव मेंं अमूमन शांति का माहौल कायम था।


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