समाज और लड़कियां
समाज और लड़कियां
समाज ..... जी हां यही समाज
जिसकी खूबसूरत रचना में आती है लड़कियां
पर इस प्रकृति द्वारा प्रदत्त हर कोमल और खूबसूरत वरदान को
इस समाज द्वारा तोड़ दिया जाता है और कभी कभी कुचल दिया जाता है
इन खोखले रीति रिवाजों के पैरो तले
यूं तो पूजी जाती है बेटियां दुर्गा काली के रूप में पर
उन्हें जब ये पुरुष प्रधान समाज देखता है तो
वो दिखाई देती है वासना पूर्ति के साधन के रूप में
कम उम्र में ब्याह दिया जाता है बेटियों को चढ़ा दी जाती है उनकी बली
अगर गलती से कहीं बच जाए कोई लड़की अपने सपनों को साकार करने के लिए
तो देखा जाता है उन्हें हीनता की दृष्टि से
कहा जाता है उन्हें की लोक लाज से परे है भाई ये लड़की तो
> किस घर जाएंगी कौन करेगा ब्याह
मै पूछना चाहती हूं समाज के ठेकेदारों से
कौन बनाता है ये समाज
क्या एक स्त्री कि कल्पना किए बिना
इस समाज के अस्तित्व की कल्पना की जा सकती है
क्या इनके बिना हमारी आपकी कल्पना की जा सकती है.......
नहीं कभी नहीं ।
फिर क्यों इस समाज में लड़कियों के प्रति दृष्टिकोण को
क्यों परिवर्तित नहीं किया जाता है
क्या महज वो सिर्फ है समाज की इच्छा पूर्ति का साधन
या फिर उन्हें समझा जाना चाहिए इस जीवन का आधार
मै पूछती हूं.... है कोई ऐसा जो मेरे अधर में उठ रहे प्रश्नों को
जो मेरे हृदय को विचलित कर रहे है इनके उत्तर दे सकता है
मुझे इंतजार रहेगा मेरे प्रश्नों के जवाब का...!.