Rajan Singh

Inspirational Drama

2.5  

Rajan Singh

Inspirational Drama

सिलसिले मुलाकातों का न छोड़िये

सिलसिले मुलाकातों का न छोड़िये

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"हिम के छोटे-छोटे तुहीन गोल-गोल कण कितना मोहक लग रहा है। स्फटिक सा श्वेत शीतल सौम्य बिल्कुल मेरी सगुन जैसी"। - बर्फ से ढ़के वसुधा पर अंगराई लेते मेजर मोहित सूर्यवंशी, अपने जेब से बटुआ निकाल कर सगुन की फोटो को एक टक निहारने लगे। भावों से सजी सुंदर अलंकृत मुखड़ा। गुलाबी पान के पत्ता समान होंठ। ललाट पर छोटी सी काली बिंदी और घुटने तक काले लंबे घने बालों में हुस्न की परी लग रही थी सगुन। मुखमंडल पर सौम्य शांति, जैसे कि भारत माता साक्षात फोटो में उतर आयी हो सगुन के रुप में। "उफ्फ्फ .....! ऐसे न देखो डियर। प्यार हो जाएगा"। - सगुन की बड़ी-बड़ी बिलौरी आँखों में आँखें डाल मेजर साहब ओठों पर हल्की सी मासूम मुस्कान ला बुदबुदाने लगे। सर पर हल्की चपत लगाते हुए पुनः मेजर साहब बुदबुदाये - "पगला गये हो मेजर तुम ....! देश के जवानों को केवल अपने मुल्क से इश्क़ होनी चाहिए। किसी लड़की की इश्क़ के लिए वक्त कहाँ है जवानों के नसीब में। कभी सुने हो किसी सैनिक का प्रेम कथा। उसमें भी इस विपरित परिस्थिति में। जब देश के दुश्मनों ने इतना बड़ा आघांत पहुँचाया है पुलवामा में, फिर भी तुम्हें इश्क़ सूझ रही"। "साहब! आपको कर्नल साहब के अोर से तुरंत खेमे में हाजिर होने का आदेश पारित हुआ है। तत्काल इस टावर पर में रुकता हूँ। आप प्लीज जा कर कर्नल साहब से मुलाकात करें"। - सूबेदार दानिश वजाहत के रौबदार आवाज और सैल्यूट में पटकते जूते के थाप ने मेजर मोहित सूर्यवंशी के ध्यान मुद्रा को तोड़ा। सूबेदार दानिश वजाहत को अचनाक टेकरी पर पा मेजर साहब हड़बड़ाते हुए सगुन का फोटो बटुआ में डाल कर जल्दी से जेब में रख खड़े हो गये। "क्या बात है? सूबेदार साहब। अचानक साहब का यह अॉर्डर क्यों"? - मेजर साहब ने पूछा। - "कोई आइडिया नहीं साहब। मुझे बस इतना ही कहा गया कि तुम तत्काल टेकरी पर पहुँचों व मेजर साहब को खेमे में भेज दो"। - "जो हुक्म मेरे आका"। खिलखिला कर हँसते हुए मेजर मोहित सूर्यवंशी वहाँ से चलने को तैयार हुए। उनकी मोतियों जैसी चमकते दाँत और करीने से कटी पतले मूँछ से शरारत झलक रही थी। हैंडसम और स्मार्ट तो वे थे ही साथ ही उनके मासूम चेहरा में बड़े उम्र के जवानों को हमेशा अपना बेटा नज़र आता। उम्र भी तो उनकी अभी तेइस साल ही हुई थी। अपने शर्ट को ठीक कर, कांधे पर बंदूक उठा, दोनों हाथों से कैप ठीक करते हुए मेजर साहब वहाँ से रवाना हो गये। दानिश वजाहत ने टेकरी सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभाल लिया तब तक के लिए। कर्नल एच.एल गिरी के खेमे में पहुँच, मेजर मोहित सूर्यवंशी जूते को थापते हुए सावधान का मुद्रा लेकर "जय हिंद" कह सैल्यूट किया। - "कम इन माई चाइल्ड! हाऊ इज गोइंग अॉन"? - "एवरीथिंग इज इज अॉल राइट सर ....."! - "डैट्स गुड"। - "आई एम सॉरी माई चाइल्ड। आई एम एक्सट्रीमिली सॉरी, बट योर लिव इज नोट एक्सैप्टेड"। "बट सर .....! नेक्सट मंथ माई मैरिज....."! - बोलते-बोलते बीच में ही रूक गये मेजर साहब। - "मैं जानता हूँ मेरे बच्चे। अगले महीने तुम्हारी शादी है। पर मैं भी क्या करूँ? गृहमंत्रालय से मिली सूचनाओं और काश्मीर संग पूरे देश की बिगड़ती हुई हालात से तुम भलीभाँति परिचित ही हो। ऐसे में किसी भी जवान का छुट्टी एक्सैप्ट करना कहाँ तक उचित होगा? मेरी जगह तुम खुद को रख सोच कर देखना"। मेजर साहब का गला रुँध गया। वह कुछ बोलने के स्थिति में नहीं रह गये थे। आँखें डबडबा गई। पलकों पर अश्कों की झिल्ली पड़ने लगी। कर्नल साहब, मेजर मोहित सूर्यवंशी का मन: स्थिति भाँप गये थे। - "डोंट पैनिक माई डियर चाइल्ड। ईश्वर पर विश्वास रखो, सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारे मैरिज को लेकर हमारे भी कुछ अरमान है। तुम्हारा फादर हमारा फ्रेंड हुआ करता था। जिन्हें इन दहस्तगर्तों ने हमसे छीन लिया कारगिल युद्ध में। आज तुम्हें मौका मिला है अपने फादर के शहादत पर पुष्प अर्पण करने का। तुम्हारी माँ एक शहीद की वीरांगना है एक बार उनसे पूछ कर देख लो क्या जवाब देती है? विश्वास रखो वे भी यही कहेंगी पहले भारत माता उसके बाद ही जननी"। मेजर साहब के रग-रग में एक वीर सैनिक का लहू उबाल मारने लगा, कर्नल साहब के व्यक्तव्य से। मेजर मोहित सूर्यवंशी के आँखों का पानी जम कर बारूद बन अंगार बरसाने लगा। वह कोई काफ़िर नहीं जो अपना इश्क़ पाने के लिए बगावत को जिहाद का नाम दे। वह भारत माता का वीर पुत्र है। जिस पर पर्वतीगार का नज़र-ए-करम होता वही शहादत पा भारत माँ के आँचल में सोता है। कर्नल साहब मेजर मोहित सूर्यवंशी के नज़र में आक्रोश, विक्षोभ और वीरों वाला आत्मविश्वास देख पुनः बोले - "और .....! और फिर ....." बोलते- बोलते एक बार फिर अटक गये कर्नल साहब। - "और फिर .....! क्या सर"? - "और फिर .....! तुम्हें कैसे बताऊँ कि सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक जैश ए मोहम्मद कमांडर गाजी राशिद उर्फ कामरान के मारे जाने के बाद कश्मीर में नए कमांडर को सक्रिय किया गया है। जो हमारे वतन के लिए घांतक सिद्ध हो सकता है। हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है नहीं तो दूसरी कारगिल छिड़ने में देर न लगेगी। सूत्रों की माने तो आईईडी विस्फोटों का अफगान लड़ाकों के साथ प्रशिक्षण हासिल करने वाले अबू बकर को जैश का नया कमांडर बनाए जाने की खबर है। उसे घाटी में जैश की गतिविधियों को जारी रखने और पाकिस्तान से समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी दी गई है"। कर्नल साहब की बातें सुनकर मेजर मोहित सूर्यवंशी सीनें में 14000 वोल्ट का करेंट दौड़ने लगा। दिल तो किया कि बिना किसी वार्तालाप और बिना किसी दोयम समझौते को माने सीधे पाकिस्तान पर धावा बोल पूरे मुल्क को नेस्तेनाबूत कर खाक में मिला दे। पर फर्ज और संविधान की मर्यादा के मद्दे-नज़र मन मसोस कर रह गये मेजर साहब। कर्नल साहब का फोन बजते ही; मेजर साहब को विदाई दे दी गयी। कर्नल साहब फोन पर बतियाने चले गये। शायद दिल्ली से फोन था। कर्नल साहब के खेमे से जो जवान जोश में निकला था। अपनी टेकरी तक आते-आते उनके चेहरे पर शिकन देखा जा सकता था। पाँव पटकते अपनी टेकरी पर आकर मेजर साहब अस्त-व्यस्त अवस्था में बैठ गये। उनके चेहरे पर उदासी की हल्की सी तुहिन रेखा स्पष्ट नज़र आ रही थी। जिसे भरसक मेजर साहब अपनी मोहक मुस्कान से ढ़ाँपने की कोशिश में लगे थे। पर सूबेदार दानिश वजाहत के अनुभवी नज़रों से छिपा नहीं सके मेजर साहब। - "किस वाकया के मालूमात के लिए कर्नल साहब का बुलाहट था साहब? मामला नाजुक है क्या"? - "अमाँ! चच्चा आप तो तहकीकात करने लगे"। चच्चा शब्द कानों में पड़ते ही सूबेदार दानिश वजाहत का दिल तड़प उठा। इस सुनसान बियावान में रिश्तों का मायने-मतलब भूलने कगार पर जाने कितने ही फौजियों को कुछेक अल्फ़ाज से ही जिंदगी रोमांचित हो उठता। अपने और अपनापन का एहसास आते ही। आँखों के कोर पर पानी डबडबाने लगा सूबेदार साहब का। हिम्मत बटोर कर उन्होंने पूछा - "बेटा जी, आपकी छुट्टी रिजेक्ट कर दी गयी न? कीड़े पड़े उन काफिरों को जिनके कारण हमारे वतन का अमन-चैन सब छीनता जा रहा है। अल्लाह ऐसे फ़िरकापरस्त ज़िहादियों को इस सुंदर वतन में पैदाइश पर पाबंदी लगाए। जो हमारे मुल्क पर बुड़ी नज़र गराये बैठा है"।

सूबेदार साहब के आवाज में विक्षोभ स्पष्ट झलक रहा था। थोड़ा रुक कर पुनः बोले - " .....साहब अगले महीने तो आपकी शादी का दिन मुक्करर हुआ है। फिर क्या ....."? बोलते-बोलते रुक गये सूबेदार साहब। - "चच्चा, दिल तो हमारा भी करता है कि एक ही झटके में इस्लामाबाद के छाती पर तिरंगा गाड़ , सभी वाहियात मुद्दों पर विराम लगा दूँ। पर हमारे राजनीतिक दलों की दोगली नीति और पवित्र संविधान ने हम सैनाओं का हाथ बेड़ियों में जकड़ रखा है। क्या करें? अपने देश से प्यार जो करते है हम भारतवासी"। - "कयामत आयेगी बेटा जी एक दिन। बस उसी वक्त का बेसब्री इंतज़ार है"। चिंताग्रस्त होने के कारण मेजर साहब का गला सूखने लगा। वह सूबेदार साहब से पानी के जमें हुए बॉटल से पिघलाकर लाने को कहते है। सूबेदार दानिश वजाहत केरोसीन स्टॉव जला कर जमें हुए पानी के टुकड़े को पिघलाने लगते है। मेजर साहब वहीं बैठे मोबाइल हाथों में लेकर बार-बार फोन लगाने की कोशिश करने लगते है। बर्फबारी होने के कारनब नेटवर्क काम नहीं करता। हताश हो मेजर साहब मन मसोस कर रह जाते। थोड़ी देर गुमसुम रहने के बाद खामोशी तोड़ते हुए बोले - "जानते हैं चच्चा सगुन क्या कहती थी? वह कहती थी नेक इंसान और वीर शहीद जवान का खून पाँव का महावर नहीं बल्कि सिर का सिंदूर बनता है। कितना सही कहती थी न। लगता है उसके नसीब में भी यही लिखा है"। "या ...अल्लाह! ऐसी नापाक बातें लब़ पर मत लाओ बेटा जी। खुदा सब देख रहा है। जहन्नुम भी नसीब न हो उन आतंकवादियों को और पाकिस्तान के फ़िरकाप्रस्त सल्तनत को, जिसके कारण आपके ज़ेहन में यह ख़्याल आये"। - पानी में रम मिलाते हुए सूबेदार साहब बोले। सूबेदार दानिश वजाहत तत्काल टेकरी छोड़ जाना चाहते थे लेकिन मेजर मोहित सूर्यवंशी का उखड़ा हुआ मूड देख, वहीं रूके रहे। यह सोच कर कि थोड़ी देर उनसे इधर-उधर की बातें कर लिया जाए ताकि उनका दिल बहल जाएगा। उच्च पद पर होने से क्या होता है आखिर है तो बच्चा ही। - "साहब, दुल्हन बेगम बहुत खूबसूरत है क्या"? - "पता नहीं चच्चा सुंदर है कि नहीं ......! पर बातें बड़ी प्यारी-प्यारी करती है। माँ और सब रिश्तेदार कहते है सगुन बहुत खूबसूरत है पर मुझे तो उसकी बातें ही लुभाती है"। - "आपकी लव मैरिज है क्या साहब"? - "ना ...ना! चच्चा। मैंने तो सगुन को सगाई के दिन ही पहली बार देखा था। उसके बाद दो-चार मुलाकातें भी हुई। पिछली छुट्टी में माँ के फ़ैसला के आगे माथा टेकना पड़ा था। उनकी ज़िद थी कि मैं अब शादी कर लूँ। पर सगुन से मिलने के बाद लगा माँ का फैसला सही ही था"। - "माता-पिता का निर्णय हमेशा ही अपने बच्चों के हित में ही होता है साहब। ज़रूर हमारी दुल्हन बेगम खास होगी, तभी माता जी फैसला ली होगी"। - "खास तो है चच्चा, मेरी सगुन। उसकी बातें, उसकी अदाएं, उसका सौंदर्य सब कुछ ही खास है। मानों ईश्वर ने फ़ुर्सत में सगुन को रचा है। तभी तो तन से नाज़ुक होते हुए भी मन से हमेशा वीरों जैसा बातें करती है। जानते हैं चच्चा सगुन को 'सिलसिले मुलाकातों का न छोड़िएगा' गीत बहुत पसंद है। जब भी हम मिले है तो वह ये वाला गीत जरूर सुनाती थी मुझे। अब तो मुझे भी यह गीत प्रिय लगने लगी है। कितना कशिश है न इस गीत में"। थोड़ी देर रुक कर मेजर साहब पुनः बताना शुरू किए - "उसमें सभी गुण है जो एक संपूर्ण नारी में होनी चाहिए। फिर भी उसने मुझे ही स्वीकारा यह मेरे लिए बड़ी बात है। जबकि उससे शादी लिए तो कोई भी लड़का तैयार मिल जाता। वह केमेस्ट्री से पी.एच.डी. कर रही है फिर भी गुरूर लैश मात्र नहीं उसमें। जानते है चच्चा सगुन क्या कहती है? वह कहती है कि 'एक फौजी की सुहागन हो या विधवा' उसी के आँचल को अपने दामन से लपेटना पसंद करती भारत माता तिरंगा के रुप में........."!

सगुन की बातें अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सूबा जोरदार धमाके से दहल उठा। समीपस्थ टेकरी से धुँ-धुँ करके आग की लपटें उठने लगी। गोलियों की ठाँय-ठाँय आवाज वादी के हिमखण्ड दरकने लगे। मेजर मोहित सूर्यवंशी फूर्ती से उठ बंदूक उठा लिए। सूबेदार दानिश वजाहत साहब को कह - "आप जल्दी से आला अफ़सरों को वायरलेस से सूचित करके मुझे कवर दें। आज इन काफिर मुजाहिदों का खैर नहीं"। मेजर साहब गोला-बारूदों का बैग काँधे पर लादते हुए टावर से उतर कर मैदान में पहुँच गये थे। सूबेदार दानिश वजाहत जल्दी-जल्दी हेड क्वार्टर को घटना स्थल का सूचना दे, मेजर साहब के पीछे-पीछे दौड़ कर कवर देने लग गये। दोनों तरफ से गोलियों की बौछारें होने लगी। बारूद के धुएं से आसमान काला पड़ने लगा। चील, कौआ के कर्कश स्वर से सरांध की बू आने लगी। तीन-चार मिनट में हेड क्वार्टर से आये जवानों की टुकड़ी अपनी-अपनी पोजीशन लेकर तोप, बंदूक, राइफल्स से हर एक वार का जवाब देने लगे। तब तक मेजर साहब व सूबेदार साहब दो ही जवान पर दुश्मनों को एहसास न होने दिए यहाँ कितने जवानों का काफिला है। बहादुरी से दोनों वीर लड़ते हुए दुश्मनों का छक्के छुड़ाते रहे। तभी एक बम का गोला मेजर साहब के पाले में आ कर गिरा। जब तक दोनों वीर खुद को सँभालते, इतने में ही बम फट गया। दोनों जवान दूर जाकर फेंकाते हुए गिरे। झुलसे हुए काले आधी-अधूरे बदन से लाल-लाल खून के फव्वारें उठ धरती माता की पाँव को पखारने लगा। अपने बहादूर पुत्र के रक्त से रक्तरंजित महावर लगा भारत माता आँखों में अश्क़ भर अपनी गोद में समेटने लगी। अर्धममूर्छित अवस्था में भी मेजर मोहित सूर्यवंशी के ओष्ठ पर मोहक मुसकान था। आँखों से रिसते आँसू की रेखा और धुंधलाते नज़र में सगुन की अंतिम विदाई वाली छवि। जब उनके ड्यूटी पर आते समय वह काँधे पर काँधा डाले रेल के पटरियों से होते हुए 'सिलसिले मुलाकातों का न छोड़िएगा' गाना सुनाते हुए मेजर साहब के संग-संग आयी थी स्टेशन तक। और फिर धीरे-धीरे पीछे छूटती चली गयी थी। मेजर मोहित सूर्यवंशी संग सूबेदार दानिश वजाहत के प्राण-पखेरू उड़ चुके थे। मासूम चेहरे पर भारत माता के चरणों में प्राण अर्पण करके शहीद होने का सुकून लिए शहादत को गले लगाने का।


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