सीख
सीख
जुलाई, अगस्त में मौसम बहुत ही उमस भरा होता है, खासकर उन लोगो के लिए जो पहाड़ो से मैदान की तरफ निकलते हैं उन्हें ज्ययादा महसूस होता है।
मैं गांव से कोटद्वार में पहुंंचा तो उमस से पसीने पसीने हो रहा था। टैक्सी स्टैंड पर पहुुंचा तो टैक्सी आगे पूूरी भर चुकी थी। पीछे की सीटें खाली थी पर मैं पीछे नहीं बैठ पाता तो दूसरी टैक्सी का इंतजार करने लगा। पहली टैक्सी अभी भरी नहीं थी पर हम बगल वाली टैक्सी में बैठ गये। अभी बैठे कुछ ही देर हुु ई थी कि एक बच्ची कटोरा पकड़े हमारी टैक्सी की तरफ बढ़ी, कहने की जरूरत नहीं कि वह एक भिखारिन थी। हुलिया आप खुद ही समझ सकते हैं। मन तो यही सोचता है कि ये लोग नहाते धोते क्यों नहीं? फिर
सोचता हूं कि यही भेष-भूषा तो इन्हें दीन हीन दिखने में मदद करती है, यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग इन्हें भीख कैसे देंंगे ? इन पर दया कैसे दिखाएंंगे? फिर यह भी सोचता हूं कि इनके पास इतना समय कहां ?
और यह गंदगी इनका एक हथियार भी है। लोग इन्हें अपने आप से दूर ही रखना चाहते हैं इसलिए तुरन्त कुछ देे ही देते हैं।
मैं गर्मी से बेहाल हुआ जा रहा था। कपड़े पसीने से बदन पर चिपके जा रहे थे। जेब में हाथ डालना मुश्किल हो रहा था। फिर न जाने क्ययों मुझे
बच्चों का भीख मांगना अच्छा नहीं लगता। मैं चाहता हूं ये बच्चे भी पढ़ेें पर कभी कुछ कर नहीं पााया। मैंने उसे आगे बढ़ने को कहा,पर वह आसानी से भला कैसे जाती? मेरी बगल में बैठी एक लड़की ने उसे दस रुपए पकड़ा दिए,वह खुश होकर चली गई पर मेरी तरफ हिकारत भरी नजर डालकर आगे बढ़ गई। वह बगल
वाली टैक्सी की फ्रंट सीट की तरफ बढ़ी, मैंने मुड़कर देखा, वहां खिड़की की तरफ़ एक खूबसूरत नवविवाहिता बैठी हुई थी। उसकी बगल में उसका पति बैठा हुआ था जो अपनी पत्नी को बदस्तूर निहार रहा था। दोनों हंसते हंसते बातें कर रहे थे। जाहिर सी बात है कि उस भिखारिन ने उनके प्यार भरी बातों में विघ्न डाल दिया था जो लड़के को बिल्कु्ु ल अच्छा नहीं लगा था। वह उसे भगाने के लिए जोर बोला लेकिन तभी उस नवविवाहिता ने उस लड़की से प्रश्न किया। " तुम्हारा नाम क्या है?" वह अटपटी सी हरकत करती हुई बोली " काली" बिल्कुल नाम के ही अनुरूप थी वह। वह नवविवाहिता बोली " भीख क्यों मांगती हो, अच्छा लगता है तुम्हें? यहां भटकने से तो अच्छा है कि स्कूल जाओ। वहां खाना,कपड़ा, पैसे बहुत कुछ मिलता है। कुछ सीख भी जाओगी।" वह लड़की भला यह सब कहां सुनने वाली थी। वह फिर वही पनीली शक्ल बनाती हुु बोली " दीदी, दे दो ना"
ठीक है मेरे कुछ सवालों के जवाब दो तो दूंगी। अच्छा बताओ तुम्हें कितना पैसा चाहिए ?" " दस रुपए।" " तो फिर तुम्हें मेरे दस सवालों के जवाब देने होंगे।" वह लड़की हां मैं सिर हिलातेे हुु बोली। माना कह रही हो पूूूछो। वह सुंदरी प्ररश्न पूूछते हुए बोली " दो और दो कितने होते हैं ?" वह तपाक से बोली " चार" " और चार और चार?" " आठ" " आठ और आठ" लड़़़की कछ रुकी, फिर उंंंगलियो में कुुछ गिनने लगी। अचानक बोली "बारह " " फिर से गिनों" वह फिर भी बारह ही बोली। " तुम स्कूल जाती हो?" " हां" " कौन सी क्लास में पढ़ती हो?" वह उंगली खड़़ी करती हुुई बोली " दो।" " पर सवाल तो तूने दो ही सही बोले, इसलिए दो रुपए दूूंगी।" वह अपनी उंगलियां मरोड़ते हुए बोली।" नहीं दस।" उस नवविवाहिता का पति बोला। " ठीक है अपना नाम लिख।" काली अजीब सी शक्ल बनाती रही। बाहर बारिश गिरने लगी। कााली को तो जैसे इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। उसेदेखकर लगता था कि वह बारिश,धूप, सर्दी सभी कुुछ पर विजय पा चुुुुकी थी। बारिश से हम सबको राहत महसूस हो रही थी हालांकि उमस बढ़ जाती है पर फिर भी मैं राहत महसूस कर रहा था। काली अभी भी वहीं पर टिकी हुई थी। बारिश की मोटी मोटी बूंदें उसके उलझे हुए बालों से रेंगकर उसकी पीठ पर गिर रही थी। बारिश की वजह से अजीब सी गंध आसपास फैल गई थी। वह सुंदरी भी
अब समझ चुकी थी वह बिना कुछ लिए यहां से नहीं जाएगी। दस रुपए का नोट देते हुए बोली " स््क्
स्कूल जाना। ठीक है।" नोट पकड़ कर उसने पीी
पीछे नहीं देखा और उसी टैक्सी के पिछली सीट
की तरफ बढ़ गई। वहां पर फिर वही भीख मांगने की अदा पर आज शायद उसके लिए सीख का दिन था।
पीछे सीट पर बैठी महिला ने उसे अपने से दूर रहने को कहा। साथ ही बोली " भीख क्यों मांगती हो? स्कूल जाओ वहां सबकुछ मिलता है। कुछ पढ़ लिख भी जाओगी" पर मुझे नहीं लगता उसे पढ़ने में कोई रुचि है। वह पढ़ने के नाम से मुंह मोड़ लेती है। पर अपने काम का पूरा ध्यान रख रही थी। वह फिर से हाथ आगे बढ़ा रही थी। पीछे बैठी महिला फिर बोली। " भीख क्यों मांगती है?" " भूख लगी है।"
पीछे बैठी महिला ने कुछ दूरी पर खड़े ठेले वाले को
आवाज दी जो कि दाल,चावल बेच रहा था। " इस लड़की को दस रुपए के दाल चावल दे दे।" ठेले वाले ने एक प्लाास्टिक की थैली में उसे दाल चावल बांधकर दे दिए। काली इस सबसे खुश नहीं लग रही थी । वह थैली पकड़ कर सड़क के दूसरी तरफ भाग गयी। मैं सोचता रह गया कि ये इन लोगों को शिक्षित करने का अच्छा तरीका है। क्यों न इन सेे कुछ ऐसे ही सवाल जवाब किए जाएं बदलाव तो तुरन्त दिखेगा नहीं पर शुरुआत तो कर सकता हूं। हालांकि यह बहुत ही नाकाफी है पर कहते हैं ना कि कितनी भी कठोर वस्तु को अगर बार बार मारो तो उस पर निशान बन ही जाता है। यह मेरे लिए एक बढ़िया सीख थी।
