अनपढ़
अनपढ़
भूपेंद्र का मूूूड सुुबह से ही उखड़़ा़ हुुआ था।
गुनगुनी धूप में कुुर््सी बालकनी पर डाले बैठा हुआ था। उसकी पत्नी चाय स्टूूूल पर रखती हुुई बोली। " क्या हुआ, चेहरा क्यों उतरा हुआ है ?" भूपेंद्र जी बेमन से बि ना पत्नी की तरफ देखे बिना बोले। " कुुछ नहीं, तुुम नहीं समझोगी।" वह भी बिना कोई ताना मारे अंदर चली गई पर हां चेेेहरे पर उलाहना के भाव जरुर थे। भूूपेंद्र जी चाय की चुस्कियां ले रहे थे पर मन और आंंखें कहीीं और थी।
चेहरे पर खिन्नता साफ दिखाई दे रही थी।
नीचे गली की सड़क पर जा रहे रोहित ने भूपेंद्र जी को प्ररणाम करता हुुआ बोला " कैसे हैं अंकल ?" " ठीक हूंं, तुम कैसे हो रोहित ?" " बहुत बढ़िया अंकल. क्या बात है, कुुुछ उदास से नजर आ रहे हो ?" भूपेंद्र जी दिखावे की मुस्कान चेहरे पर लाते हुुुए बोले " अरे,ऐसा कुछ नहीं है बस,,,,,सुनो! इस समय जा किधर रहे हो ?" " बस अंकल, यूं ही राकेश केे घर जा रहा था." भूपेंद्र जी मजाकिया मूड मेें बोले. " अगर ऐसे ही जा रहे हो तो आओ, मेरी एक समस्या सुलझा दो". रोहित कुछ संकित भाव से बोला." मैंं,, मैं,
क्या मदद कर सकता हूूं आपकी ?" " ऊपर आओ तो सही, अरे पैसे नहीं मांगूगा ...." फिर खुद्द ही हंसने लगे. रोहित ठक,,, ठक,,,ठक सीढ़ियाां चढ़ता हुआ ऊपर आया. कुर्सी पर बैठता हुआ बोला. " कहिए अंकल." भूपेेंद्र जी अपनी समस्या बताते हुए
फोन रोहित के हाथ में देते हुए बोले. " मैं कहानी
लिख रहा था, तभी कुछ काम आ गया तो मैैंने कहानी को बैंक करकेे बंद कर दिया. अब देखो मुझे
वह कहानी मिल ही नहीं रही है. ड्राफ्ट मेंं ढूंंढा
वहां भी नहीं है।" रोहिित मुुुस्कराता हुआ बोला " अंंकल, आप कहानियां लिखते हैं ?" " अरे, लिखता
विखता कुछ नहीं बस समय अच्छा कट जाता है। अब तुम्हीं देेेख लो, ले दे के दो जने है हम, महिलाओं
का तो फिर भी ठीक है, वो पड़ोसिियों के यहां या किसी रिश्तेदार के यहां हो आते हैं। परमुझे ठीक नहीं लगता यूं ही कििसी के यहां जााना तो यह
रोग पाल लिया पर पाल कर करना भी क्या है ? यह हम जैैैैसे पुराने लोगों का बस का खेल नहीं है। अरे मेरे छोटे छोटे पोते पोती जब दिल्ली से यहां छुट्टी आते हैं तो उनको देखता हूं, क्या फटाफट उंगलियां चलाते हैं इस फोन पर लैपटॉप पर, देखकर दंग रह जाता हूं मैं। हम तो ठहरे कागज कलम वाले
आज के हिसाब से तो हम लोग अनपढ़ हैं। डिग्रियां
बड़ी-बड़ी है पर नयी तकनीक के सामने फेल है। और वक्त इसी का है। जिसके पास इस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ज्ञान नहीं वह निरा अनपढ़ ही समझो।" इतनी देर में रोहित ने न जाने क्यया-क्या करके उन्हें फोन पर कीी-पैड की सेटिंग करके व
उनकी अधूरी कहानी को ढूंढ कर उन्हें दे दी।
बोला। " अंकल, कोई खास कठिन नहीं है,बस थोड़ा समझना पड़ता है। बाकी सब हो जाता है।" भूपेंद्र
जी मुस्कराते हुए बोले। " सरल होगा तेरे लिए हमारे तो लोहे के चने चबाना जैसा है। सोच रहा हूं। बंंदकर
दूं यह सब, आजकल फोन पर ही न जाने कैैसे कैैसे
कांड हो रहें हैं। डर लगता है। कहीं कोई ग़लत बटन दब गया तो लेने के देेनेे पड़ जाएंगे। इससे अच्छा तो हमारा कागज कलम का ही जमाना था। कोई
झंझट नहीं बस आराम से लिखो जहां पर कुछ गलत हुुआ काटकर लिख लो। हमेशा के लिए सुरक्षित
भी।" " ये सब तो इस पर भी हो सकता है अंकल। इसमें तो और भी अच्छा है। कोई कागज का खर्च नहीं पेन का झंझट नहीं। ऊपर से तुम्हारी रचना बहुत सारे
लोगों तक घर बैठे ही पहुंच जाती है। जबकि कागज कलम के जमाने में तो यह संभव ही नहीं था कि हर कोई अपनी रचना लोगों तक पहूचा सके। वहाां पर तो सिर्फ़ नामि गिरामी लोग ही नजर आते थे।"
" हां यह तो है पर यह सिर्फ नये बच्चों व अच्छे आपरेटरों के लिए ठीक है। बल्कि ठगी के मामलों में तो अच्छे खासे हुनरबाज भी गच््चा खा जाते हैं।
अरे अब तो पुरानी ठगी का तरीका भी बदल गया है। परसो ही किसी ने एक वीीडियो डाला था जिसमेंं बता रहा था कि साइबर ठग अब पहले की तरह पिन, नंबर, या ओटीपी नहीं मांंग रहे हैं बल्कि धड़ल्ले से सामने वाले को दावे से कह रहे हैं कि हमने
तुम्हारा एकांाउंट खाली कर दिया है और मैसेेज भी आजाता है कि बैलेंंस शून्य हो गया है। बेचारा घबरा कर ठग से पैसे वापस करने की गुहार लगाता है और इसी का वह ओटीपी मांंंगता है और जो एकाउंट टेेम््पररी सस््प्पेंड हुआ था वह उससे
सारा पैसा निकाल देता है।,,,,, बाप रे बाप बहुत मुश्किल है ऐसे शातिर चोरों से। अरे क्यया करना
ऐसी टेक्नोलॉजी का जिसमें इतने झोल हों। शातिरोंके लिए दुनिया भर के रास्ते हो, बेेचारा सीधा आदमी मारा जाता है। पहले भी चोर होतेे थे
कम से कम उनसे दो दो हाथ करने का मौका तो
मिलता था। यहां लड़े भी तो किससेे ?
जो जीवन भर की जमा पूंजी ले उड़ा उसका कही
कोई पता ही नहीं। अभी कुछ दिन पहले बेचाारे
दिगम्बर के दो लाख रुपए चलें गये। गरीब आदमी है बेेेचारा मेेेहनत मजदूरी करता है,एक गाय है
उसका दूध बेचकर थोड़ा-बहुुत इक््क्कठा किया
था,सब ले उड़ा। गरीब आदमी है उसके झांसे
में आ गया। लाटरीका निवााला पकड़ा कर सारी
जानकारी ले ली और वो बेवकूफ ऐसा कि जब मैैैसेज आए तो किसी को नहीं बताया और न ही बैंंंक को फोन किया। बाद में बता रहा था,। माथा पकड़ कर। इसलिए तो कह रहा हूं। हम जैसे लोग तो अनपढ़ हैं इसके सामने।
अरे भूल से कुछ ऐसा वैसा गूगल पर ढूंढ लिया तो आफत आ जाती है, एड में वही सब दिखाने लगता है।" रोहित अंकल को छेड़ते हुए बोला। " अंंकल, क््या आप भी देखते हैं ?" भूपेंद्र जी का चेेहरा लाल हो गया। " अरे नहीं, मैं उदाहरण बता रहा हूं, और वैसे भी आज के बच्चे तो न जाने क्या क्या देख रहे हैं। इसलिए इतने सारे रेप केेेेेसेज हो रहे हैं। हम तो अब बूढ़े हो गए हैं देखकर करेंगे भी क्या ? कुल मिलाकर वैज्ञञानिकोंंंं को कुछ इस तरह का सोफ्टवेेयर
विकसित करना चाहिए जिससेेेे इस तरह की साइबर क्राइम को खत्म किया जा सके।"
रोहित वहां से उठता हुआ बोला। " अच्छा अंकल मैं चलता हूं।" " ठीक है बेटा आते रहना।"
भूपेंद्र अपने जमाने को याद करते हैं तो मन ही मन सोचते हैं, कितना अच्छा वक्त था वह जब इस तरह के झंझट नहीं थे। जिस कहानी को मैं आधे घंटे में पूरी कर सकता था उसे कम्पोज करने में तीन घंटे लग गए। फिर सोचते हैं कि विकास का ये अच्छा पैमाना भी तो है। आपको बैग भर कर कागज
पत्र नहीं ले जाने पड़ते बस एक मोबाइल या लैपटॉप
आपकी सारी जानकारी का पिटारा है।
