Punam Banerjee

Tragedy

4.9  

Punam Banerjee

Tragedy

श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि

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अजय से अब पापा की बातें सुनी नहीं जा रही थी,या कहो सहन नहीं हो रही थी .पापा कह रहे थे,"क्या कहूँ बड़ी मुश्किल से नौकरी के साथ ही घर बनाया ,बच्चों को पढाया लिखाया और फिर शीला का इलाज करवाया और अब जब थोड़े सुख चैन के दिन आये तो शीला मुझे छोड़कर चली गयी। क्या और कुछ दिन रुक नहीं सकती थी?अजय को तो अब नौकरी लगने ही वाली थी ."

बुआ आंसू बहाते हुए कह रही थी ,"हमने तो देखा है भाई ,तू कितना ख्याल रखता था उसका,अरे मासी ! किस्मत वालों को इतना अच्छा पति मिलता है ."

पापा फूट फूटकर रोते हुए बोल पड़े : "हाँ ,शीला को मै बहुत चाहता था ,मेरी मुमताज थी वो,जी चाहता है एक ताजमहल बना दूँ,शाहजहाँ की तरह।"


अजय का दिल चीख उठा .."झूठ .....झूठ ...झूठ ....पापा ,आप कितना झूठ कहोगे? कब तक ये दिखावा करते रहोगे ?इस झूठ से,दिखावे से, माँ को सबसे ज्यादा नफ़रत थी ,वो तो हमारे लिए,सिर्फ अपने बच्चों के लिए इतने बरसों तक आप के साथ अपनी बोझिल जिंदगी गुजारी, अब तो उन्हें चैन दे दो।"


आँखों का पानी आंसू बनकर गालों पर उतरने लगे थे,जिन्हें छुपाने के लिए अजय माँ के कमरे में चला आया।सामने दीवार पर माँ की बड़ी सी तस्वीर ,पापा ने लगवा दी थी,जिसपर मोटे मोटे गेंदा ,रजनीगंधा की मालाएं। अजय ने नज़र उठाकर माँ की ओर देखा . उसे लगा, कैसी परेशान सी होकर उसे देख रही थी माँ । इतनी सारी मालाएं! माँ को आदत नहीं है न । एक लम्बी सी चोटी और माथे पर एक बड़ी सी बिंदी,यही था माँ का साज -सिंगार । फिर भी कितनी खुबसूरत दिखती थी उसकी माँ! शायद सभी बच्चों को उसकी माँ दुनिया की सबसे खुबसूरत औरत लगती है पर जब पापा के दोस्त पापा से कहते,"यार ,भाभी जी तो बड़ी खुबसूरत है!" तो पापा का चेहरा देखते ही बनता था ,और फिर उसके उपहारस्वरूप माँ को न जाने कितनी बातें सुननी पड़ती थी ! पापा न जाने किस किस चीज़ में मीन मेख निकलते रहते ! किस किस बात का ताना देते माँ को ! जिसे सुनते हुए ख़ामोशी का चादर लपेटे माँ सिर्फ आंसू बहाती रहती थी।


अजय ने कुछ मालाएं माँ के फोटो से निकाल दी ,शायद माँ को थोड़ी राहत मिली! पर अब माँ कैसी शिकायत भरी नजरों से अपने बेटे को देख रही थी ! सच ही तो है ! वो इतना कमजोर बेटा निकला कि माँ की कोई अभिलाषा पूरी ही नहीं कर पाया। कैसा बेटा था वो!माँ ने न जाने कितने सपने देखे होंगे! किसीको खबर भी नहीं थी उसकी ।


अजय ने सुना था ,माँ पढ़ाई में अव्वल थी,डाक्टर बनने का सपना था उनका । बहुत खुबसूरत गाना गाती थी ,बड़ी मीठी आवाज़ थी उनकी ।खुबसूरत पेंटिंग बनाती थी । पापा ने उन्हें एक कल्चरल प्रोग्राम में देखा था और नानाजी से उनका रिश्ता माँगा।

माँ तब सिर्फ बारहवी में थी, बस शादी हुई और सपने बिखर गए! पापा के सपने पुरे हुए और माँ के सपने कहीं मिटटी की नीचे दब गए!जिसकी किसीको परवाह नहीं थी।

शायद माँ को लगा था कि जीते जी अब उनका कोई सपना पूरा नहीं होगा,जिंदगी के सारे अरमान की चिता जल चुकी थी और उनका धुआं माँ की आखों में समाकर उन्हें रुलाती रहती थी ,इसलिए तो उन्होंने अपनी अंतिम अभिलाषा ऐसी बताई जिसको पूरा करने में किसीको ऐतराज न हो ।

पर उन्हें शायद अब सिर्फ अपने बच्चों पर भरोसा था,"जब वो इस दुनिया से जा रही हो ,उनके सामने सिर्फ उनके बच्चे रहे,और उनका क्रियाकर्म बिलकुल सादगी से किया जाये, क्योंकि उनको पता था,उनके अंतिम क्रिया में भी पापा अपना रुतबा दिखायेंगे, अपना बड़प्पन जाहिर करेंगे और वाहावाही लूटेंगे।"


उन्हें पापा का कोई अहसान नहीं चाहिए था। पापा ने सारी जिंदगी उनपर अहसान ही तो किया था ,जो वो जब तब माँ को जताते रहते थे,"वो मिसेस शर्मा कैसे अपने बच्चों को खुद पढ़ाती ,नौकरी भी करती ,घर - बाहर सब कुछ संभालती,और मै इतना अभागा हूँ कि कमाओ भी,घर भी सम्भालो,पत्नी पढ़ी लिखी होती तो कम से कम बच्चों के टयूटर का खर्चा तो बचता!" मानो ,माँ ने जान बुझकर अपनी पढ़ाई छोड़ी थी ।

और कभी उनका गुस्सा बढ़ता तो इस तरह,"दो पैसे कमा तो नहीं सकती और सपने देखती है आसमान में उड़ने की ! ख़बरदार तुम्हारा कोई भी रिलेटिव मेरे घर आया तो! मैंने कोई धर्मशाला खोलकर नहीं रखा है!"


और माँ कैसे रसोई में दुबक जाती थी ! मानो पापा की जली कटी बातों से उन्हें एक ही जगह बचा सकती है ,रसोईघर !


अजय ने देखा था ,माँ को बात बे बात पर पापा से अपमानित होते हुए,पापा के हाथों से मार खाते हुए । कभी कभी वो सोचता था,"चली क्यों नहीं जाती माँ यहाँ से ! क्यों पड़ी रहती है इस घर से चिपटकर,जहाँ वो न अपनी मर्ज़ी से हंस सकती है,न बोल सकती है ।इतनी बड़ी दुनिया में कहीं तो आसरा मिलेगा,कहीं तो वो अपनी जिंदगी अपनी तरह बिता सकती है !"


किशोर अवस्था तक आते आते वो समझ चुका था ,माँ इस घर को छोड़कर क्यों नहीं जा सकती ।क्योंकि,वो अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद नहीं कर सकती थी । वो जानती थी कि बच्चों की जिम्मेदारी नहीं उठा सकती और कानून यही कहता है कि जो जिम्मेदारी उठा सके,बच्चे उन्हीके पास रहेंगे ।और बच्चे उन्हें छोड़कर पापा के पास नहीं रह पाएंगे,बच्चों के बचपन की कीमत उनके स्वाभिमान से बहुत बड़ी थी।

अजय ने देखा था माँ को रात रात भर सिसकियाँ भरते हुए ,और समझ गया था ,अपने ही बच्चों को अपने साथ रखने के लिए माँ को और एक बड़ी कीमत चुकानी पड़तीहै। और उस दिन से अजय को उस आदमी से नफरत हो गयी थी जो बदकिस्मती से उसका पिता था !

अजय ने आंसू पोंछे और माँ की संदूक निकाली,जिसमे माँ की अमानत भरी पड़ी थी| माँ कभी कभी अपने बच्चों को अपनी अमानत बड़े चाह से दिखाती थी, माँ के बचपन की गुड़िया, पैसे रखने का भांड, मामा और उनके बचपन की तस्वीरें,नाना- नानी की तस्वीर,उनके गाने की नोट -बुक ,पेंटिग की कॉपी ,और न जाने क्या क्या! फिर बाद में उसमे जुड़ती गयी,अजय -आभा की तस्वीरें,उनके बचपन के छोटे –छोटे कपड़े,कुछ खिलौने ।यही माँ की धन -दौलत थी ,जिसे अवसर मिलते ही माँ देखने बैठ जाती थी । अजय-आभा कितना हँसते थे उनकी इस बालसुलभ हरकत पर!

आभा कहती,"ममा ,आप बच्चे हो क्या?"

माँ एक प्यारी सी मुस्कराहट के साथ कहती,"अच्छा लगता है,बचपन याद आता है बेटा ।"

अजय ने बड़े प्यार से उनपर हाथ फेरा।आह ! मानो माँ का स्पर्श ! उसकी नज़र संदूक में पड़ी राखियों पर पड़ी और फिर ढेर सारी यादें ताज़ा हो गयी।

उस वर्ष आभा के क्लास में राखी बनाना सिखाया गया तो माँ ने झट से आभा से सीख ली और अपने दोनों भाइयों के लिए दो राखियाँ बनायीं। अजय ने देखा था राखी बनाते वक़्त माँ की आँखों में कैसी चमक थी ! राखी बनाते हुए कहती जा रही थी, “अबकी बार तेरे पापा से कहकर भाइयों को राखी बाँधने जाउंगी ,सब कितने खुश होंगे! पता नहीं कितने दिन हो गए सबको देखे !”

आभा ने लाड़ करते हुए कहा था ," ममा ,हमे नहीं ले जाओगी ? मुझे नानी के बनाये गुझिया बहुत पसंद है।"

माँ ने हंसकर कहा था," मुझे अपनी गुड़िया के बिना वहां दिल लगेगा क्या? आप दोनों मेरे साथ जाओगे बेटे,आपकी माँ आपको छोड़कर कहीं नहीं जाएगी।"

फिर माँ अपने बचपन की बातें बताने लगी थी...अपने भाइयों की शरारतें ,उनके साथ लड़ना-झगड़ना,रूठना -मनाना ...उन्हें बताते हुए माँ की आँखों में कैसे हीरे मोती चमक रहे थे! कितनी खुश थी वो उन यादों को टटोलते हुए!

अजय की आखें में जलन हो रही थी! शायद आंसू सुख गए थे,माँ की तरह ही !माँ भी आजकल नहीं रोती थी,शायद उन्होंने इतने आंसू बहाए थे,आंसुओं का तालाब सुख चूका था,बच्चों को दूर भेजते हुए भी नहीं रोई,नानाजी के मौत की खबर सुनकर भी नहीं । चट्टान बन चुकी थी और उस चट्टान को एकदिन टूटकर बिखरना ही था ।

अजय को अच्छी तरह याद है ,उस साल बड़ी बुआ राखी से पहले ही अपने बच्चों को लेकर आ धमकी थी और माँ का जाना नहीं हो पाया था । माँ ने धीरे से एकबार पापा से मिन्नतें भी की थी ,पर पापा कैसे अपने फैसले पर अडिग थे ! अजय को लगा था शायद बुआ जी एक बार कह दे कि मै यहाँ संभाल लूंगी .पर उन्होंने तो पापा के गुस्से की आग में और घी डाला था,"मैंने देखा है दुल्हन,जब भी हम मैके आती हैं,तुम पीहर भागना चाहती हो,क्या यही सीखकर आई है अपनी माँ से?"

अजय को बिलकुल अच्छा नहीं लगा था बुआ की बातें पर जब छोटी आभा गुस्से में भरकर भाई को चुपके से कहा था ,"भैया,बुआ बहुत बुरी है,बहुत बुरी|”

तो माँ के ही लफ्जों में उसने समझाया था,"ऐसा नहीं कहते,वो बड़े हैं न,और बड़े जैसे भी हो,हमारे आदरणीय होते हैं।"

लेकिन आज भी उसके सामने यह प्रश्न अनुत्तरित है , " क्या बड़े गलती करते हैं तो उन्हें मान लेना चाहिए? सिर्फ बड़े हैं इसलिए?"

और उसके कुछ दिनों बाद ही नानाजी का देहांत हो गया था। शायद राखी में माँ वहां जाती तो नानाजी के साथ कुछ पल बिता पाती और वही पल उनकी वीरान जिंदगी को कुछ ऊर्जा प्रदान करती!


समाज नियम बनाता है मनुष्य को संयम सिखाने के लिए,उन्हें जंजीरों में जकड़ने के लिए तो नहीं ,फिर ये कैसा नियम है कि एक लड़की जब शादी करके ससुराल आती है तो उसका अस्तित्व ही छीन लिया जाता है। पति जैसा कहे,उसे उसी राह पर चलना पड़ता है एक कठपुतली की तरह ,मानो उसके जीवन की डोर पति की उँगलियों में बांध दी गयी हो,वो चाहे जैसे रखे,चाहे जैसे नचाये। मानो जिस्म के साथ साथ उसके वजूद पर सिर्फ पति का हक़ हो!

अजय ने माँ को सिर्फ एक बार पापा के विरुद्ध आवाज़ उठाते देखा था जब आभा को मेडिकल एंट्रांस में चांस मिला था और पापा ने दाखिला दिलवाने से मना कर दिया था । माँ ने तीन दिन तक खाना नहीं खाया था । शायद आभा में वे अपने सपनो को साकार होते हुए देखना चाहती थीं! वो चाहती थी उनकी बेटी को वो जिंदगी न मिले जो उन्हें मिला है। वो चाहती थी कि उनकी बेटी के अपने सुनहरे पंख हों, जिसके सहारे वो अपने सपनों की दुनिया बना सके!

आभा नहीं आई थी । परीक्षा का बहाना देकर मना कर दिया था । माँ ने उसे मजबूत बनाया था ,अपने फैसले खुद लेने और उसपर अडिग रहना सिखाया था ,जभी तो उसने कहा था,"भैया,ममा हमे छोड़कर जा चुकी है । माँ की कोई भी अभिलाषा हम पूरी नहीं कर पाए,ये गम मैं कभी नहीं भूल सकती । माँ के मौत पर मै टूटी नहीं हूँ, पर शायद वहां का तमाशा देखकर टूट जाऊं । मै जानती हूँ पापा ने उनका ध्यान नहीं रखा । माँ ने पापा से डरकर बरसों अपनी बीमारी छुपाई जो जानलेवा बन गयी ।पहले इलाज़ होता तो शायद माँ इतनी जल्दी नहीं जाती ।अब मैं उन लोगों का सामना कैसे करुँगी जिन्होंने जीते जी माँ को मार डाला और आज उनकी मौत पर टेसुए बहायेंगे । माँ का सपना पूरा करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी और मै वही करुँगी।

बाहर से बुआ के जोर जोर से रोने की आवाज़ सुनाई दे रही थी| अपने विलाप को वो इन शब्दों में व्यक्त कर रही थी,"शीला ,ये तुमने कैसा अन्याय किया? मेरे भाई को अकेला छोड़कर चली गयी,अब वो तुम्हारे बिना कैसे जियेगा ?"

अजय ने माँ के सामान समेटे और घर से निकल पड़ा,"हाँ,यही माँ को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी कि उनके बच्चे इस ढकोसले में शामिल न हों । उसे पता है पापा बड़ी खूबसूरती से इस मामले को संभाल लेंगे क्योंकि घर से निकलते वक़्त उसे पापा की आवाज़ सुनाई दी,"मेरी बेटी तो बिलकुल मुझपर गयी है,उसके लिए पढ़ाई सबसे आवश्यक है । पता है शर्मा जी,जब मेरी माँ की मौत हुई थी,मेरे बारहवीं के एग्जाम चल रहे थे और मैंने माँ के अंतिम क्रिया में शामिल होने से ज्यादा महत्व अपनी पढ़ाई को दी थी,इसलिए तो आज इतनी ऊंचाई तक पहुँच पाया हूँ !



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