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श्रद्धा का मोल..

श्रद्धा का मोल..

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कमला जल्दी चलो दशर्न के लिए बहुत लंबी लाइन लगती हैं, जितनी सुबह जायेंगे उतनी ही जल्दी भगवान के दर्शन कर लेंगे।

जी चलिए, मैंने पूजा का सारा सामान ले लिया है। पाँच बजे सुबह से लाइन में खड़े हुए शाम के सात बज गए लेकिन हमारा नंबर नहीं आया। सुनिए चलिए ना उस लाइन में लग जाते हैं वहाँ मुश्किल से दस लोग हैं और पुजारी जी भी उन लोगों को अच्छे से दर्शन करवा रहे हैं।

हम उस लाइन में नहीं लग सकते। इस पर कमला ने पूछा- क्यों ?

उस तख्ती पर देखों क्या लिखा है, "वी॰ आई पी°" कमला ने पढ़ते हुए कहा।

अब समझी रामदयाल ने हँसते हुए कहा। पुजारी जी ऐसे ही उन्हें अंदर नहीं ले जा रहे हैं, इसके लिए उन्हें मोटी रकम मिल रही हैं जो हम आम इंसान नहीं दे सकते और ना ही उनके जितना चढ़ावा चढ़ा सकते हैं।

भगवान के घर में भी भेदभाव हो रहा है, भगवान के नजर में तो सब मनुष्य एक समान होते हैं लेकिन आज पता चला की श्रद्धा का भी मोल होता हैं - कमला ने कहा।

ये आम और खास का अंतर तो सदियों से चलता आया हैं और आगे भी चलता ही रहेगा...


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