Suman Sachdeva

Tragedy

1.0  

Suman Sachdeva

Tragedy

श्राद्ध का भोजन

श्राद्ध का भोजन

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बूढ़ी सावित्री अम्मा के सामने खीर पुए, सब्जियां, पूड़ी, रायता, सलाद आदि से सजी हुई थाली पड़ी थी। मगर वह थाली पर नजरें टिकाए किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी।

गत वर्ष छोड कर जा चुके अपने जीवन साथी स्वर्गीय नंद किशोर की याद में उनकी आंखें नम हो चुकी थी।

कभी वह कितने प्यार से इस तरह का खाना बना कर उनकी फरमाइशें पूरी किया करती थी मगर जब से उन्होने साथ छोडा है मानो सारी खुशियां अपने साथ ले गये हों।बेटे और बहू का व्यवहार भी धीरे धीरे उनके प्रति शुष्क सा होता जा रहा है।

कितनी बार मांगने पर भी उनकी कोई इच्छा पूरी नही हो पाती। पसंद का खाना खाने को तो वह जैसे तरस ही गयी थी। अभी कुछ दिन पहले की तो बात है उसने बहू से कुछ मीठा खाने की इच्छा प्रकट की तो कितना कुछ सुनना पडा था उसे।

उसके निठल्ले बैठे फरमाइशें करते रहने का ताना, महंगाई के कारण बढ़ते हुए खर्च व अपनी व्यस्तता को ऐसे बढा चढा कर बताया बहू ने कि वह मन मसोस कर रह गयी थी। उसके बाद कुछ कहने का कभी हौसला ही नहीं कर पाई थी और चुपचाप बहू द्वारा दी गयी दो सूखी रोटियां निगल कर रह जाती थी।

आज पतिदेव के श्राद्ध वाले दिन अपने सामने इन पकवानों को देखकर उसका मन भर आया। वह सोच रही थी कि अगर श्राद्ध के नाम पर मृत पूर्वजों की याद में पंडितों को इतना कुछ खिलाया जा सकता है तो एक जीवित मां को मांगने पर उसकी पसंद का भोजन क्यों नही मिल पाता। 


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