Kumar Rahman

Crime Thriller

4  

Kumar Rahman

Crime Thriller

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर

12 mins
821


साजिश


हाल में चारों तरफ अंधेरा था। हर तरफ से सिर्फ चीख पुकार की आवाज सुनाई दे रही थी। लोग भागते वक्त कुर्सियों से टकरा रहे थे। एक दूसरे पर भी गिर रहे थे। अजब सा हंगामा बरपा था।

“न इनवर्टर काम कर रहा है और न ही जनरेटर ही आन हुआ है अब तक। इलेक्ट्रीशियन कहां मर गया।” क्लब के मैनेजर की गुस्से भरी आवाज अंधेरे में गूंजी।

इस हंगामे के बीच विक्रम के खान शांत खड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई मूर्ति हो। उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करे। सब कुछ बहुत तेजी से घटित हुआ था। वह आंखें फाड़-फाड़ कर अंधेरे में देखने की कोशिश कर रहा था। तभी किसी ने उसका हाथ थाम लिया और कान में फुसफुसाते हुए कहा, “आओ मेरे साथ। कुछ देर में पुलिस आती होगी। मुसीबत में पड़ जाओगे।”

विक्रम के खान कुछ समझ नहीं सका। तभी उसके हाथ को खींचने का दबाव बढ़ गया और वह किसी रोबोट की तरह चल पड़ा।

“मेन गेट की तरफ नहीं। उसे बोल्ट कर दिया गया होगा अब तक। अब पुलिस के आने के बाद ही वह खुलेगा। इधर आओ मेरे साथ।” विक्रम को फिर कानों के पास फुसफुसाती सी आवाज सुनाई दी। एक मजबूत हाथ उसकी कलाई को थामे हुए था और विक्रम पीछे-पीछे चला जा रहा था।

कुछ देर बाद उसे एहसास हुआ कि वह ढलान से नीचे उतर रहा है। उसके बाद वह एक पतले गलियारे से गुजरने लगे। यहां उसे सांस लेने में थोड़ा कठिनाई हो रही थी। उसे अंदाजा हुआ कि वह किसी सुरंग से गुजर रहा है। वह काफी देर यूं ही चलते रहे। अचानक उसके चेहरे पर हवा का एक झोंका टकराया। उसने राहत महसूस की। कुछ मिनटों बाद विक्रम ने खुद को पेड़ों के झुरमुट के बीच पाया। उसके करीब ही एक मजबूत जिस्म का आदमी खड़ा हुआ था। विक्रम ने उसकी कद-काठी का तो अंदाजा लगा लिया था, लेकिन पेड़ों से छनकर चांद की इतनी रोशनी नीचे नहीं आ रही थी कि वह उसका चेहरा देख सकता।

“घबराएं नहीं आप सुरक्षित जगह पर हैं।” उसके कानों में फिर उसी आदमी की आवाज टकराई।

“तुम कौन हो?” विक्रम ने मजबूत आवाज में पूछा।

“आप का दोस्त।” उसे तुरंत ही जवाब मिला।

तभी उनके पास एक काले रंग की लंबी कार आकर रुकी। ड्राइवर ने उतर कर दरवाजा खोल दिया। कार एक लड़की ड्राइव कर रही थी। उसके खुले बाल हवा में लहरा रहे थे।

“बैठ जाइए।” उसने विक्रम से कहा। विक्रम के बैठने के बाद दूसरी तरफ के गेट से वह आदमी भी कार के पीछे की सीट पर बैठ गया।

उनके बैठते ही कार झटके के साथ आगे बढ़ गई।

विक्रम ने आसपास नजर डाली तो उसे एहसास हुआ कि यह कोई जंगलाती इलाका था। हर तरफ बस पेड़ ही पेड़ नजर आ रहे थे। रास्ता ऊबड़खाबड़ था। इस वजह से कार स्पीड नहीं पकड़ पा रही थी। लड़की अच्छी ड्राइवर थी। उसे शायद इस रास्ते का अंदाजा भी था। वह बहुत सलीके से कार ड्राइव कर रही थी। कुछ दूर यूं ही चलने के बाद पहाड़ नजर आने लगे। कार की स्पीड अब थोड़ा बढ़ गई थी। जिस तरह से बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था, उसी तरह कार के अंदर भी खामोशी ही थी।

कुछ देर बाद कार अचानक रुक गई। कोई भी कार से उतरा नहीं था। विक्रम को अंदाजा हुआ कि कार हवा में ऊपर उठ रही है। वह बेचैनी से इधर-उधर देखने लगा।

कुछ देर बाद कार का ऊपर जाना ठहर गया और कार फिर आगे की तरफ बढ़ गई। अब कार एक लंबे-चौड़े गलियारे में रेंगते हुए आगे बढ़ रही थी। एक बड़े से दरवाजे के सामने जाकर कार रुक गई।

लड़की ने तेजी से उतर कर विक्रम की तरफ़ का कार का गेट खोल दिया। विक्रम कार से बाहर निकल आया। दूसरा आदमी भी कार से बाहर आ गया। लड़की ने आगे बढ़ कर कमरे का दरवाजा खोल दिया। वह आदमी उसमें दाखिल हो गया। उसने पलट कर देखा तो विक्रम वहीं खड़े पाया।

“आप वहां क्यों खड़े हैं अंदर आइए न।” उस आदमी ने कहा।

विक्रम भी अंदर आ गया। उसने पहली बार उस आदमी को ध्यान से देखा। यह वही आदमी था, जिसने बाउंसर को गोली मारी थी। यह एक विदेशी था। उसका माथा काफी चौड़ा था। जबड़े भारी थे। चेहरे की खास बात उसकी आंखें थीं। उनमें गजब की चमक थी। उसके सर पर काफी लंबे बाल थे। बाल करली यानी छल्लेदार थे। वह उसके कांधे तक फैले हुए थे।

विक्रम को एहसास होने लगा था कि वह गलत हाथों में पड़ गया है, लेकिन अब काफी देर हो चुकी थी। उसकी बेचैनी काफी बढ़ गई थी। उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं।

विक्रम ने चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा। यह एक बहुत बड़ा सा हाल था। एक तरफ स्टेज बना हुआ था। वहां एक बड़ी सी मेज रखी हुई थी। उसके पीछे एक शानदार कुर्सी पड़ी हुई थी। एक कोने में एक और स्टेज बना हुआ था। उस पर कई सारे म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट रखे हुए थे।

मजबूत कद-काठी वाला आदमी हाल में रखी एक कुर्सी खींच कर बैठ गया। उसने विक्रम को भी बैठने का इशारा किया। विक्रम भी उसके सामने दूसरी कुर्सी पर बैठ गया।

“मुझे यहां क्यों लाए हो?” विक्रम ने अपनी आवाज को भारी बनाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज का खोखलापन उसे खुद महसूस हो गया था।

“आपको परेशानी से बचाने के लिए।” उस आदमी ने कहा।

“कैसी परेशानी?”

“आप ने एक क़त्ल किया है। पुलिस आप को तलाश...।”

“यह झूठ है....।” विक्रम ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए तेज आवाज में कहा, “कत्ल मैंने नहीं तुमने किया है।”

जवाब में उस आदमी ने अपने मोबाइल में एक वीडियो चला कर विक्रम के सामने कर दिया। इस वीडियो में खून से लथपथ बाउंसर नजर आ रहा था। बाउंसर ने अटकती हुई आवाज में कहा, “मुझे... विक्रम खान... ने गोली.... मारी है.... वही मेरा... क़ातिल है।”

“यह साजिश है मेरे खिलाफ!” विक्रम आवेश में आकर बोला और अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया।

“इग्जैक्टली!” विदेशी ने पहली बार अंग्रेजी का कोई शब्द बोला था। वह काफी अच्छी हिंदुस्तानी बोल रहा था।

“जिस पिस्टल से तुम ने कत्ल किया है, वह अब भी तुम्हारे कोट की जेब में मौजूद है।” उस आदमी ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया।

घबराहट में विक्रम ने अपनी जेब में हाथ डाला और पिस्टल उसके हाथों में आ गई। वह जेब से उसे बाहर निकाल कर देखने लगा।

“अब यह तुम्हारे किसी काम की नहीं है, क्योंकि इसका चैंबर खाली है। लाओ इसे मुझे दे दो।” बात पूरी करते ही उस आदमी ने झपट कर पिस्टल विक्रम से छीन ली।

विक्रम ने देखा कि उस आदमी ने अपने हाथों पर दस्ताने पहन रखे थे। इसके साथ ही विक्रम को अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आने लगा। अगले ही क्षण उस विदेशी ने उसकी बेवकूफी भी उसे बता दी।

“मिस्टर विक्रम के खान। आपने बहुत आसानी से पिस्टल पर अपनी उंगलियों के निशान छोड़ दिए हैं। उस बाउंसर के बयान के अलावा अब यह दूसरा मजबूत सबूत आपके खिलाफ है।”

“क्या.... चाहते.... हो....?” विक्रम के गले से फंसी-फंसी सी आवाज निकली।

“गुड! जल्दी ही मुद्दे पर आ गए। पहले बैठ तो जाओ।” विदेशी ने विक्रम के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा।

विक्रम कुर्सी पर बैठ गया। तभी एक खूबसूरत लड़की विक्रम और उस विदेशी के लिए कॉफी ले आई। यह लड़की भी विदेशी ही थी। लड़की काफी दे कर चली गई।

“सॉरी, वाइन नहीं पिला सकता इस वक्त, क्योंकि अभी तुम्हें वापस भी जाना है।” विदेशी ने गंभीरता से कहा।

उसकी इस बात से विक्रम को थोड़ी राहत मिली।

“मैंने पूछा था क्या चाहते हैं आप?” विक्रम ने काफी का सिप लेते हुए पूछा। उसका आत्मविश्वास लौट आया था।

“पेंटिंग।”

“कैसी पेंटिंग?”

“वही जो हाशना ने तुम्हें दी थी।”

“ओह तो यह उस कुतिया का रचा खेल है।” विक्रम ने गुस्से से कहा।

“मिस्टर विक्रम के खान! तुम एक बदतमीज आदमी हो। यह बात मशहूर है, लेकिन मेरे सामने लड़कियों के लिए तमीज भरे शब्दों का इस्तेमाल करो। बदतमीजी मुझे बर्दाश्त नहीं।” विदेशी ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा। उसने पहली बार विक्रम को तुम कह कर संबोधित किया था। 

विक्रम ने उसकी तरफ घूर कर देखा, लेकिन खामोश ही रहा। इसके बाद दोनों काफी पीने लगे।

काफी खत्म होने के बाद विदेशी ने खड़े होते हुए कहा, “अब आप जा सकते हैं। कल पहली फुरसत में पेंटिंग हमारे हवाले कर दीजिएगा। मेरा आदमी कल शाम सात बजे आपके स्टूडियो पहुंच जाएगा।”

“अगर न दूं तो।” विक्रम ने खड़े होते हुए कहा। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। जैसे वह चिढ़ाना चाहता हो।

“ऐसा मुमकिन नहीं है।” विदेशी ने पूरी गंभीरता से कहा।

उसकी बात पूरी होते ही दो लड़कियां हाल में दाखिल हुईं। इन में एक वही ड्राइवर थी। दूसरी वाली लड़की ने आते ही बड़ी फुर्ती से विक्रम के हाथों को टेप से पीछे की तरफ जकड़ दिया। ड्राइवर लड़की ने उसकी आंखों में पट्टी बांध दी। दोनों लड़कियों ने यह सब कुछ इतनी फुर्ती से किया था कि विक्रम कुछ समझ ही नहीं सका।

“इसकी जरूरत क्यों है भला!” विक्रम ने पूछा।

“आते वक्त तुम कांशेस नहीं थे। अब जाते वक्त तुम हर बात पर गौर करोगे। रास्ता समझने की कोशिश करोगे। इसलिए इसकी जरूरत है मिस्टर विक्रम खान। दूसरी बात, यह दोनों लड़कियां तुम्हारे साथ जाएंगी। तुम कोई हंगामा न कर सको, इसलिए हाथ बांध दिए गए हैं।” विदेशी ने कुर्सी पर बैठे हुए ही कहा, “इन्हें इनके घर तक छोड़ देना वरना रात को कुत्ते परेशान करेंगे।”

मुर्गों की लड़ाई


सार्जेंट सलीम दोबारा उसी पत्थर पर बैठ गया। वह चिंता में पड़ गया था। वह शेयाली के बारे में सोचने लगा। शेयाली जिंदा थी और शहर में सारा ड्रामा उसी को लेकर मचा हुआ था। टीवी चैनल रो-गा रहे थे। खुफिया विभाग जान लड़ाए दे रहा था। इसी शेयाली के चक्कर में वह यहां जंगलियों में आ फंसा। जाने यह जंगली क्या करेंगे उसका। यह सोचते-सोचते उसके दिमाग की धारा बहक गई। ठीक है निजात मिली रोज की भागदौड़ और खुफियागिरी से। शेयाली से शादी कर के इसी जंगल में बस जाऊंगा। शेयाली खूबसूरत भी है जंगल की रानी भी। मैं खुद राजा रहूंगा। खाना और घूमना।

“लेकिन इनके चावल का स्वाद बहुत बुरा है।” सार्जेंट सलीम बुदबुदाया, “जब मैं राजा हो जाऊंगा तब रोटी पकवाया करूंगा।”

अचानक उसे श्रेया का ख्याल हो आया। वह अब तक उसे कहीं नजर नहीं आई थी। आज रात वह उसे तलाशेगा। उसने फैसला किया। इसके साथ ही वह वहां उठ खड़ा हुआ।

जब सलीम वापस जंगलियों की बस्ती के करीब पहुंचा तो वहां अजब गुलगपाड़ा मचा हुआ था। सारे जंगली घेरा बनाए बैठे थे। एक मंच पर शेयाली बड़े आराम से बैठी घेरे की तरफ देख रही थी। बीच-बीच में जंगली शोर मचा रहे थे। सलीम नजदीक पहुंचा तो देखा कि दो मुर्गों की लड़ाई चल ही थी। दोनों ही मुर्गे एक दूसरे पर जबरदस्त हमला कर रहे थे। गोल घेरे में मुर्गों के पंख बिखरे पड़े थे। खून की बूंदें भी गिरी हुई थीं। यानी लड़ाई देर से जारी थी। दोनों ही असील नस्ल के मुर्गे थे।

असील नस्ल भारत में अरब से आई है। दरअसल यह नस्ल कबायली है। इन मुर्गों को लड़वाने का शौक भी कबीलों से होते हुए सभ्य समाज तक पहुंची है। बाद में यह शौक नवाबों के दौर में खूब फला फूला। फैजाबाद के नवाब शुजाउद्दौला के दौर में यह काफी परवान चढ़ा। आसुफुद्दौला को भी मुर्गों की लड़ाई का शौक था। असील मुर्ग की सबसे ज्यादा नस्लें हैदराबाद में पाई जाती हैं।

असील नस्ल के मुर्गे पैदायशी लड़ाका होते हैं। इन्हें लड़ाई की ट्रेनिंग की जरूरत नहीं पड़ती। हां इन्हें हिंसक और जुझारू बनाने के लिए बड़े जतन किए जाते हैं। इन्हें बायसन का पित्ता खिलाया जाता है। कुछ लोग स्टेरॉयड भी देते हैं। असील मुर्गे जरा लंबोतरे होते हैं। इनकी गर्दन भी दूसरी नस्ल के मुर्गों से लंबी होती है। लड़ते वक्त वह गर्दन को तीर की तरह सीधी तान लेते हैं। गर्दन के बाल खड़े कर के यह सामने वाले मुर्गे को चेतावनी देते हैं। असील मुर्ग की टांगे काफी लंबी ऐर मजबूत होती हैं। इनकी कलगी बहुत छोटी होती है। एक-एक मुर्ग दस-दस हजार रुपये तक में बिक जाते हैं।

सार्जेंट सलीम भी चुपचाप आ कर सबसे पीछे खड़ा हो गया। उसकी निगाहें हर चेहरे को बड़े ध्यान से देख रही थीं। वह उनमें श्रेया को तलाश रहा था। उसने खामोशी के साथ पूरे घेरे का एक चक्कर लगा लिया। हर चेहरे को बड़े गौर से देखा। उसे श्रेया कहीं नजर नहीं आई। उसे अंदाजा था कि इस वक्त सारे जंगली यहां मौजूद थे।

उसकी इस हरकत को शेयाली बड़े ध्यान से देख रही थी, लेकिन इस बात का अंदाजा सलीम को बिल्कुल भी नहीं हुआ। सार्जेंट सलीम एक जगह खड़े होकर मुर्गों की लड़ाई देखने लगा। दोनों मुर्गे एक दूसरे पर कभी पंजों से वार करते तो कभी चोंच से। जब मुर्गे लड़ते-लड़ते थक जाते तो एक दूसरे से गर्दन जोड़ कर खड़े हो जाते। ऐसा होते ही जंगली उन्हें फिर से पकड़ कर एक दूसरे के सामने कर देते।

मुर्गों की यह लड़ाई काफी देर चलती रही। आखिरकार एक मुर्गा बुरी तरह से जख्मी होने के बाद मैदान छोड़ कर भाग निकला। भगोड़े मुर्गे के पीछे कई जंगली भागे और उसे पकड़ लिया।

सलीम चौंक पड़ा। दो जंगली महिलाएं उसके अगल-बगल आ कर खड़ी हो गईं थीं। उसे इसका एहसास तब हुआ जब वह दोनों खिलखिलाकर हंसने लगीं। उन दोनों ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे झील की तरफ लेकर चल दीं। वहां ले जाकर सलीम को नहलाया जाने लगा। आज उसे बड़ा अजीब लगा, लेकिन उसने खुद को हालात के हवाले कर दिया था। उसने अभी तक भागने की भी कोशिश नहीं की थी। उसे श्रेया को तलाश करना था।

जब सलीम नहा कर लौटा तो उसने पाया कि शेयाली भी नहा चुकी थी। उसने अपने गीले बाल खोल रखे थे। उसने सलीम की तरफ देखा और मुस्कुरा दी। सलीम को यूं लगा जैसे चारों तरफ साज बजने लगे हों।

सलीम के आते ही नाच-गाना शुरू हो गया था। एक दिन पहले तक सलीम सर की चोट, थकान और बदहवासी की वजह से कुछ भी समझ नहीं सका था। आज वह डांस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहा था। वह मर्दों के बीच नाच रहा था और शेयाली औरतों के बीच। सार्जेंट सलीम मुंह में उंगली डाल कर अजीब सी आवाज भी निकाल रहा था। वह पूरा जंगली लग रहा था।

धीरे-धीरे रात घिरने लगी। जंगलियों ने मशालें जला ली थीं। कुछ देर बाद सभी को खाना परोसा जाने लगा। सार्जेंट सलीम के आगे भी एक बड़ा सा पत्ता बिछा दिया गया। उसके ठीक सामने शेयाली बैठी थी। वह उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। सार्जेंट सलीम के आगे भी वही बेजायका वाला चावल और भुना हुआ गोश्त परोस दिया गया। उसे जोरों की भूक लगी थी। उसने चावल के स्वाद को इग्नोर किया और खाना खाने लगा।

खाना खाने के बाद सभी अपनी-अपनी कुटिया में चले गए। सार्जेंट सलीम जो कि अब शहजादा सलीम था, उसे दो जंगली औरतें उसकी कुटिया तक छोड़ कर चली गईं।

सलीम ने आंखें बंद कीं और सोने की कोशिश करने लगा। उसने तय किया था कि आधी रात के बाद उठ कर वह श्रेया को तलाशेगा, इसलिए अभी सो जाना चाहता था। कुछ देर बाद ही उसके खर्राटे गूंजने लगे।

अभी चांद ने आसमान पर आधे से कुछ ज्यादा सफर ही तय किया था कि सलीम की आंख खुल गई। वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। उसने अपनी झोंपड़ी से जैसे ही बाहर कदम निकाला कि तुरंत ही उसे पैर अंदर खींच लेने पड़े। दो पहरेदार उसकी झोंपड़ी के सामने तैनात थे। यानी उसे छुट्टा नहीं छोड़ा गया था। वह लौट आया और दोबारा बिस्तर पर लेट गया। कुछ देर यूं ही पड़ा रहा उसके बाद उठ कर सेंठे और फूस से बनी दीवार को धीरे-धीरे तोड़ने लगा। जल्द ही उसने एक बड़ा सूराख बना लिया और आसानी से बाहर आ गया।

उसने आसमान की तरफ देखा। उसने अंदाजा लगाया कि आधी रात से कुछ ज्यादा ही गुजर चुकी थी। तभी उसने कुछ दूरी पर एक साये को जाते हुए देखा।

*** * ***


विक्रम खान किस मुसीबत में घिर गया था? सार्जेंट सलीम क्या जंगल में ही बस गया?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...


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