Kumar Rahman

Crime Thriller

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Kumar Rahman

Crime Thriller

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर भाग-8

शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर भाग-8

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न्यूड पेंटिंग


शाम के पांच बजे थे। धूप की तपिश थोड़ा कम हो गई थी। 7, डार्क स्ट्रीट स्थित कोठी गुलमोहर विला के बड़े से दरनुमा गेट से डायमंड ब्लैक कलर की घोस्ट बाहर निकल रही थी। उसे इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ड्राइव कर रहा था।

आज तीसरे दिन भी एक कार उसके इंतजार में खड़ी थी। सोहराब की कार के आगे बढ़ते ही पीछे वाली कार भी स्टार्ट हो गई। कुछ देर बाद उसने एक मुनासिब दूरी बनाकर घोस्ट का पीछा शुरू कर दिया। घोस्ट का पीछा करने वाली आज एक नई कार थी।

सोहराब को कुछ देर बाद ही अंदाजा हो गया था कि उसका पीछा किया जा रहा है। सोहराब ने कार को सिसली रोड की तरफ मोड़ दिया। पूरी सड़क पर सन्नाटा छाया हुआ था। इस रोड पर कम ही लोग आते थे। इसकी वजह यह थी की तकरीबन पचास किलोमीटर आगे जंगलात शुरू हो जाते थे। शिकार के शौकीन या घूमने-फिरने के लिए ही लोग उधर आते थे। गर्मी का मौसम होने की वजह से अभी लोग घरों में ही दुबके हुए थे।

घोस्ट की स्पीड 50-55 किलोमीटर प्रति घंटे के आसपास थी। घोस्ट का पीछा अभी भी जारी था। कुछ दूर जाने के बाद पहाड़ों का सिलसिला शुरू हो गया। सोहराब ने कार की स्पीड बढ़ा दी। पीछे वाली कार की स्पीड भी बढ़ गई थी।

दोनों ही कारें शहर से काफी दूर निकल आईं थीं। अचानक सोहराब की कार के ब्रेक चीखे और कार रुक गई। इसके साथ ही सोहराब ने बड़ी तेजी से कार को टर्न किया और वापस शहर की तरफ जाने लगा। पीछे वाली कार अभी भी आगे बढ़ी आ रही थी। सोहराब ने अपनी लंबी सी कार आने वाली कार के सामने आड़ी-तिरछी करके रोक दी।

दूसरी कार के तेजी से ब्रेक लगे और वह रुक गई। कार से एक लड़की उतर कर बाहर आ गई। वह टॉम ब्वाय नजर आ रही थी। उसने ग्रे पैंट के ऊपर काही रंग का टॉप पहन रखा था। सर पर हंटिंग हैट लगा रखा था।

“इस तरह से पीछा करने का मतलब!” सोहराब ने नाराजगी भरे लहजे में पूछा।

“ऐसे मत डांटिए मैं डर जाऊंगी।” लड़की ने बिसूरते हुए कहा।

उसकी इस बात पर सोहराब को बेसाख्ता हंसी आ गई।

“आप मेरा तीन दिन से क्यों पीछा कर रही हैं?” सोहराब ने नर्म लहजे में पूछा। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट अब भी बरकरार थी।

“मुझे आपसे मिलना था।” लड़की ने कहा।

“यह मिलने का कौन सा तरीका है भला।”

“आपसे डर लगता है। वह आपकी आंखें न खतरनाक हैं।” लड़की ने कहा।

“कोई काम है आपको हम से।” सोहराब ने पूछा।

“जी मेरा नाम हाशना है। क्या हम कहीं बैठ कर बात कर सकते हैं।” लड़की ने कहा।

“हम शहर चल कर बात करते हैं। मेरे पीछे आ जाओ।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

इसके बाद आगे सोहराब की कार चल रही थी और उसके पीछे हाशना की।

तकरीबन आधे घंटे बाद दोनों शेक्सपियर कैफे पहुंच गए।

“क्या लेंगी आप।”

“जो आप चाहें मंगा लीजिए।” हाशना ने कहा।

“मैं तो एस्प्रेसो लूंगा। शायद आपको पसंद न आए।” सोहराब ने कहा।

“जी वह बहुत हार्ड होती है। मेरे लिए एस्प्रेसो मैक्‍कीआटो ठीक रहेगी।” हाशना ने कहा।

सोहराब ने वेटर को कॉफी के साथ कुकीज लाने को कह दिया।

एस्प्रेसो यानी ब्लैक कॉफी। यह कॉफी का सबसे शुद्ध रूप है। यह हार्ड कॉफी होती है। इसे बनाने के लिए गर्म पानी में एस्प्रेसो पाउडर घोल कर, उसमें चीनी मिला ली जाती है। एस्प्रेसो मैक्‍कीआटो में गर्म दूध मिलाया जाता है। यह एस्प्रेसो की ही एक वैरायटी है। इसमें दूध मिला कर इसका टेस्ट बदल देते हैं। जिन्हें डार्क काफी पसंद नहीं है, यह उनके लिए है।

“आपने बिल्ली को मारकर गलत किया।” सोहराब ने नर्म लहजे में कहा।

सोहराब की इस बात पर हाशना की आंखें फैल गईं।

“आपको... किसने... बबताया।” हाशना ने हकलाते हुए कहा।

“आपने विक्रम को परेशान करने के लिए बिल्ली को मारने के बाद जानबूझ कर उसका रुमाल वहां प्लांट किया था।”

“यह झूठ है।” उसने यह बात तेज लहजे में कही। हाशना ने अब तक खुद को संभाल लिया था।

“रुमाल पर येलो कलर का एक बाल मिला है। आपने भी अपने बाल येलो कलर से रंग रखे हैं।”

“यह तो कोई सुबूत नहीं हुआ। जाने कितने लोगों के बाल येलो होंगे।” हाशना ने दलील दी।

“होटल में जब आपकी विक्रम खान से तकरार हुई थी तो आप दोबारा लौट कर आईं थीं। उसी वक्त आपने उसका रुमाल चुरा लिया था।” सोहराब का लहजा अब भी नर्म था।

“आप गलत इलजाम लगा रहे हैं।” हाशना ने ढिठाई से कहा।

“मिस हाशना! सीसीटीवी फुटेज में सारा मंज़र मौजूद है।” सोहराब के चेहरे की मुस्कुराहट थोड़ा सख्त हो गई थी, “आपने नाहक एक जानवर की जान ले ली। वेरी बैड।”

“मैं विक्रम को सबक सिखाना चाहती थी।” हाशना ढीली पड़ गई थी।

"साफ-साफ बताइये पूरी बात।" कुमार सोहराब ने कहा।

“दरअसल मुझे विक्रम के खान की पेंटिंग्स बहुत पसंद हैं। उसकी पेंटिंग की हर लाइन जिंदगी से भरी हुई है। मैंने शहर में लगने वाली उसकी हर पेंटिंग प्रदर्शनी देखी हैं। उसकी कई पेटिंग्स खरीदी भी हैं मैंने।” तभी वेटर काफी लेकर आ गया। इसकी वजह से हाशना खामोश हो गई।

वेटर के जाने के बाद हाशना ने फिर से बताना शुरू किया, “धीरे-धीरे हमारी दोस्ती हो गई। यह सिर्फ दोस्ती ही थी। मुझे मालूम था कि वह शेयाली के साथ लीव इन में है। वैसे भी मुझे विक्रम की कुछ आदतें सख्त नापसंद हैं।”

“मेरे बाबा यानी दादा ने पेरिस की एक मॉडल से शादी की थी। वह मॉडल कुछ दिन बाद उनसे अलग हो गई और बाबा पेरिस से लौट आए।” हाशना ने काफी बनाते हुए कहा।

वह कुछ देर के लिए खामोश होकर कुछ सोचने लगी। सोहराब ने भी उसे नहीं टोका।

“बाबा उस मॉडल की एक न्यूड पेंटिंग अपने साथ लाए थे। उसे इंग्लैंड के एक चर्चित पेंटर ने बनाया था।” यह बात बताते हुए हाशना की नजरें झुकी हुई थीं।

“यह कब की बात है?” इंस्पेक्टर सोहराब ने पूछा।

“यह पचपन साल पहले की बात है। तब बाबा 24-25 साल के थे। बाबा उस पेंटिंग को सबकी नजरों से छुपा कर एक बक्से में बंद करके रखते थे। इत्तेफाक से एक बार मेरी नजर उस पर पड़ गई। बहुत शानदार पेंटिंग थी। बक्से में एक डायरी भी थी। मैं उसे चुपचाप निकाल लाई। उसी में बाबा ने सारा किस्सा लिखा था।”

“अब वह पेंटिंग कहां है?”

“वह पेटिंग ही तो सारी परेशानी की जड़ बन गई है।” हाशना ने कहा, “एक बार मैंने विक्रम से उस पेंटिंग का जिक्र किया। उसने देखने की ख्वाहिश जाहिर की। बाबा एक बार शहर गए हुए थे। मैं मुनासिब मौका देख कर वह पेंटिंग उठा लाई और विक्रम को दे दी। कुछ दिन बाद ही बाबा को पेंटिंग गायब होने के बारे में पता चल गया। तब से घर में कोहराम बरपा है। बाबा किसी से खुल कर कुछ कह भी नहीं पा रहे हैं।”

“विक्रम से पेंटिंग वापस लेकर चुपचाप पहुंचा दीजिए। किस्सा खत्म हो जाएगा।” इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने कहा।

“विक्रम किसी भी कीमत पर पेंटिंग वापस करने को राजी नहीं है। कह रहा है अभी उसकी स्टडी पूरी नहीं हुई है।”

“इसमें मैं भला आपकी क्या मदद कर सकता हूं?” सोहराब ने पूछा।

“आपको मैंने एक दिन विक्रम के घर से निकलते देखा था। गार्ड ने बताया कि आप जासूस हैं। आपकी काफी तारीफ भी सुनी है। इसलिए मैं तब से आप से मिलने के लिए पीछा कर रही थी। यह बात किसी से कह भी नहीं सकती हूं। बाबा भी किसी जासूस से मिलने की बात कर रहे थे।”

“ओके मैं देखता हूं कि आपकी किस तरह से मदद की जा सकती है।” सोहराब ने सिगार का कोना तोड़ते हुए कहा।

“लेकिन देखिए यह बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। इससे हमारे खानदान की बहुत बदनामी होगी।” हाशना ने सोहराब की तरफ देखते हुए कहा, लेकिन सोहराब की आंखों की ताब न लाकर नजरें झुका लीं।

“आप बेफिक्र रहिए।” इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे दिलासा देते हुए कहा, “लेकिन अब विक्रम को डराने के लिए ही सही किसी बिल्ली का कत्ल मत करना।”

“मुझे खुद बहुत अफसोस है उस बेजुबान जानवर के लिए। वह शेयाली को सबसे प्यारी बिल्ली थी। उसे मैंने मारा है, यह बात विक्रम को मत बताइएगा।” हाशना ने गुजारिश की।

जहन्नम


सार्जेंट सलीम की आंख खुली तो खुद को बिस्तर पर पाया। उसका सर अभी भी दुख रहा था। काफी जोर की लगी थी। वह उठ कर बैठ गया।

यह घासफूस वाला बिस्तर था। जमीन पर घासफूस डालकर उस पर जानवर की खाल बिछा दी गई थी। यह बिस्तर एक झोपड़ी के बीचोबीच था। झोपड़ी काफी बुरी बनाई गई थी। धूप छनकर अंदर आ रही थी। शायद इसी धूप की तपिश की वजह से सार्जेंट सलीम की आंख खुल गई थी।

सार्जेंट सलीम बिस्तर पर बैठा हवन्नकों की तरह चारों तरफ देख रहा था। क्या वह मर गया है और सीधे जहन्नम भेज दिया गया है। फिर तो अभी गर्म तेल के कढ़ाव में उबाला भी जाएगा। उसके दिमाग में ख्याल आया। सर अभी भी दुख रहा था। उसे चक्कर आने लगा। वह आंख बंद करके फिर से लेट गया।

काफी देर यूं ही लेटा रहा। इसके बाद वह फिर से उठ कर बैठ गया। कुछ देर चारों तरफ ध्यान से देखता रहा। इसके बाद वह उठ कर खड़ा हो गया और झोंपड़ी से बाहर आ गया।

बाहर का नजारा देख कर उसे यकीन हो गया था कि वह मर कर नर्क में आ गया है। बाहर ढेर सारे लोग नंग-धड़ंग इधर-उधर आ-जा रहे थे। कोई जानवर आग पर भूना जा रहा था। अजीब बात यह थी कि सभी पुरुष ऊपर से नंगे थे। सिर्फ नीचे का हिस्सा जानवर की खाल से ढका हुआ था। अलबत्ता महिलाओं के तन सलीके से ढके हुए थे। यह देख कर सलीम को थोड़ा सुकून मिला। जहन्नम के नियम भी शालीन हैं। उसने सोचा।

सार्जेंट सलीम को एहसास हुआ कि उसने भी नीचे का हिस्सा किसी जानवर की खाल से ढक रखा है। बाकी शरीर खुला हुआ है। उसे बड़ी शर्म आई। वह भाग कर फिर से झोंपड़ी में आ गया।

उसके पीछे-पीछे दो जवान महिलाएं भी अंदर आ गईं। वह उसे पकड़कर जबरदस्ती बाहर ले आईं। सलीम ने बाहर न निकलने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानीं। महिला होने के नाते वह उन पर हाथ भी नहीं उठा सकता था।

उसके बाहर आते ही सभी महिलाएं और पुरुष उसके चारों तरफ नाचने लगे। कुछ महिलाएं उसका हाथ पकड़ कर उसे भी नचाने की कोशिश करने लगीं। वह सभी बहुत खुश नजर आ रहे थे।

कुछ देर तक इसी तरह से नाच-गाना होता रहा। उसके बाद वही दोनों महिलाएं उसे जबरदस्ती एक झील के किनारे ले गईं। वहां एक पत्थर पर उसे बिठा दिया गया।

पहले उन्होंने कई सारी पत्तियां उसे चबाने के लिए दीं। पत्तियों से खुश्बू आ रही थी, लेकिन उसका स्वाद कसैला था। सार्जेंट सलीम ने उन्हें कुछ देर चबा कर थूक दिया।

इसके बाद दोनों महिलाओं ने उसके सारे शरीर पर कोई लेप लगा दिया। यह काफी खुश्बूदार लेप था। लेप छुड़ाने के बाद उसे झील के पानी से नहलाया गया था। काफी देर तक उस पर लकड़ी के एक खोल से पानी डाला जाता रहा।

नहा चुकने के बाद उसे शेर की एक खाल दी गई। खाल देने के बाद महिलाएं उसकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गईं।  

सार्जेंट सलीम का मन हुआ कि मौका गनीमत है, वह यहां से भाग निकले, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका। उसे तो यह भी नहीं पता था कि वह किस दुनिया में है। उसने एक झाड़ी के पीछे जाकर नीचे पहनी खाल बदल ली।

नहाने के बाद उसका मन थोड़ा साफ हुआ था। उसे अपने साथ घटी हर बात याद आने लगी। शेक्सपियर कैफे से लेकर वहां से लांग ड्राइव पर आने तक और फिर हमले तक की सारी बात याद हो आई। अचानक उसे श्रेया का भी ख्याल आ गया। उसे वह अब तक कहीं भी नजर नहीं आई थी। क्या उसने ही उसे जहन्नम तक पहुंचाया है?

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सार्जेंट सलीम कहां आ फंसा था?

क्या श्रेया ने ही साजिश रची थी?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...


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