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PRAVIN MAKWANA

Tragedy Inspirational

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PRAVIN MAKWANA

Tragedy Inspirational

शंकर और रघुनाथ की वीरगति

शंकर और रघुनाथ की वीरगति

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शंकर शाह गोंडवाना के राजा थे जिन्हें अंग्रेजों ने अपने पुत्र सहित १८ सितंबर १८५८ को विप्लव भड़काने के अपराध में तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया था। ये दोनों गोंड समाज से हैं। उनके पुत्र का नाम कुंवर रघुनाथ शाह था।


1857 के विद्रोह की ज्वाला सम्पूर्ण भारत में धधक रही थी। अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने युद्ध का आह्वान किया था। इस संग्राम में रघुनाथ शाह ने अपने पिता का बढ़-चढ़कर सहयोग किया था। राजा शंकर शाह, निजाम शाह के प्रपौत्र तथा सुमेर शाह के एकमात्र पुत्र थे। उनके पुत्र का नाम रघुनाथ शाह था। राजा शंकर शाह जमींदारों तथा आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे।


जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेन्ट का कमांडर ले.ज. क्लार्क बड़ा अत्याचारी था। उसने छोटे-छोटे राजाओं और आम जनता को बहुत परेशान कर रखा था। चारों ओर अनाचार और व्यभिचार का बोलबाला था। जनता में हाहाकार मचा हुआ था। राजा शंकर शाह ने जनता और जमींदारों को साथ लेकर क्लार्क के अत्याचारों को खत्म करने के लिए संघर्ष का ऐलान किया। उधर क्लार्क ने अपने गुप्तचरों को साधु वेश में शंकर शाह की तैयारी की खबर लेने गढ़पुरबा महल में भेजा। चूंकि राजा शंकर शाह धर्मप्रेमी थे, इसलिए उन्होंने साधुवेश में आए गुप्तचरों का न केवल स्वागत-सत्कार किया बल्कि उनसे निवेदन किया कि वे स्वतंत्रता संग्राम में योगदान करें। राजा ने युद्ध की योजना भी उन गुप्तचरों के सामने रख दी।


18 सितंबर 1858 के दिन दोनों को अलग-अलग तोप के मुंह पर बांध दिया गया। मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी प्रजा को एकएक छन्द सुनाया। पहला छन्द राजा ने सुनाया और दूसरा उनके पुत्र ने-


मलेच्छों का मर्दन करो, कालिका माई।

मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई,

खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका ।।  


दूसरा छन्द पुत्र ने और भी उच्च स्वर में सुनाया।


कालिका भवानी माय अरज हमारी सुन

डार मुण्डमाल गरे खड्ग कर धर ले ।।


छंद पूरे होते ही जनता में राजा एवं राजकुमार की जय के नारे गूंज उठे। इससे क्लार्क डर गया। उसने तोप में आग लगवा दी। भीषण गर्जना के साथ चारों ओर धुआं भर गया। और महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह वीरगति को प्राप्त हो गए।



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