STORYMIRROR

शक्ति

शक्ति

2 mins
1.0K


कठोर खुरदरे हाथों से पत्थर तोड़ रही थी वह। कितने ही समय से पहनी, मैली कुचैली बैंगनी साड़ी, काले रंग में परिवर्तित हो चुकी थी। ठोड़ी का वो खूबसूरत सा काला तिल, चेहरे के गहरे सांवले रंग में कहीं छुप सा गया था। पीली गड्ढे में धँसी आँखें जिन में कहीं कोई गुलाबी डोरे नहीं तैरते थे अब ! हाँ ! ऐसी ही तो थी चन्दा..आकर्षण के नाम पर एकदम शून्य !

माँ-बापू ने कम उमर में ब्याह दिया। कुछ समय गाँव में रहने के बाद पति हरिया के साथ शहर आ बसी।

तब से तेज धूप में जलना ही उसका नसीब बन गया। पत्थर तोड़ते-तोड़ते अचानक तेज हवा से उसका मैला आँचल नीचे गिर पड़ा। उठाने को जैसे ही झुकी सामने सुरेश को खड़ा पाया। उसे मजदूरों पर नज़र रखने के लिए नियुक्त किया गया था। वह आँचल को सम्भालने लगी तभी सुगना ने दूर से आवाज़ लगाई।

"ओ री चन्दा आ जा टिफिन ले आ, खाने का वखत हो चला है।"

वह मुड़ी, पास रखा डब्बा हाथ में लिए, नीम के पेड़ की छाँव में चल दी, जहाँ से सुगना ने उसे पुकारा था।

दोनों ने जैसे ही अपना डब्बा खोलना शुरू किया, सुरेश वहीं आ कर खड़ा हो गया।

"क्या लाई चन्दा, वही सूखी रोटी और चटनी !" कहते हुए सुरेश की वहशी नज़रें उसी के तन को घूरे जा रही थीं।

"बाऊजी, वो का है ! सूखी रोटी और चटनी तो हम लावत ही हैं ! ऊके साथ डब्बा भर लाल मिर्च भी लावत है।जाने कब जरूरत पड़ जाए इनकी !" यह कहते हुए पीले निस्तेज नयन लाल मिर्च की तरह सुर्ख हो चले थे।


Rate this content
Log in

More hindi story from Dimple Gaur

Similar hindi story from Inspirational