Dimple Gaur

Inspirational

2.5  

Dimple Gaur

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तकदीर

तकदीर

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मंदिर की सीढ़ी पर बैठा एक भिखारी जिसके तन से लिपटे पैबन्दी वस्त्र उसकी जीवन की परतों को सरलता से उधेड़ रहे थे। समीप रखे एल्युमिनियम के पिचके कटोरे में ज्यूँ ही सिक्के खनकते उसकी पथराई पीली आँखों में जुगनू चमकने लगते। मंदिर के ठीक सामने एक पुरानी मस्जिद,...जिसकी दीवार से सट कर बैठी वह खातून, बुर्के के काले रंग में ज़िंदगी के अंधरे को छुपाए मोगरे के फ़ूल बेच रही थी। तभी एक महिला चमचमाती गाड़ी से उतरी। हाथों में सुनहरा नक्काशीदार पर्स थामे फ़ूल बेचती खातून के सामने आ कर खड़ी हो गयी।

आँखों पर काला चश्मा चढ़ाए जिसे मगरुरियत का चश्मा कहा जाए तो शायद अधिक उपयुक्त होगा।

"फूलों की एक टोकरी देना " अहंकारी बोले फूट पड़े।

" जी मेमसाब " कहते हुए खातून की ख़ुशी छुपाए नहीं छुप रही थी।

बड़ी बेपरवाही से पर्स से पैसे निकाल उस महिला ने खातून के आगे फेंक दिए और फूलों की टोकरी लिए आगे बढ़ गयी...।

जैसे ही वह भिखारी के समीप से गुजरी। चश्मे से छुपी आँखों में तिरस्कार के भाव उत्पन्न हुए।

"भगवान भला करेगा मेमसाब..ग़रीब पर दया करो मेमसाब ।" भिखारी करुण स्वर में बोला।

"उह! मेहनत करो मेहनत.." ऐसा कह वह मंदिर की ओर बढ़ चली।

महिला का ड्राइवर सब कुछ ध्यानपूर्वक देख रहा था। वह मन ही मन विचारने लगा "मेहनत ! मेमसाब ने तो कभी मेहनत नहीं की। बड़े ही आराम से केबिन में बैठ सबको बस आज्ञा ही देती रहती हैं।


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