शक्ति का सम्मान
शक्ति का सम्मान
शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र ! शक्ति के विविध रूपों बल पराक्रम सामर्थ्य व ऊर्जा का पर्व, आज भी शक्ति का महत्व निर्विवाद है।
सभ्यता के आदि काल से लेकर आज तक अपनी विद्वता, गुण, शील और सौंदर्य से नारी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बना कर रखी है।
हमारे यहां अर्धनारीश्वर का आदर्श रहा है जब स्त्री अपनी संतान को संस्कार देती है तो वह सरस्वती रूप में होती है, ग्रह प्रबंधन के समय लक्ष्मी स्वरूपा है और दुष्ट के अन्याय का प्रतिकार करते समय दुर्गा के रूप में प्रकट होती।
नवरात्र भी नारी के इन्हीं स्वरूपों का प्रतीक है।
बस नारी को अपने इन्हीं स्वरूपों को अपने चित में ढालना है, आपदा पड़ने पर अबला नहीं आ-बला बनके
हर मुश्किल का सामना करना है, आज नित नई जो समस्याएं और जीवन यापन की मुश्किल सामने आ रही है, उनका डटकर मुकाबला करना है। बलात्कार, हत्या, छेड़छाड़, घरेलू या यौन हिंसा आदि को चुपचाप सहना नहीं बल्कि काली बनकर उसका पुरजोर विरोध करना ही सही मायनों में नवरात्र पूजा अर्थात शक्ति को सार्थक कर पाएगा।
वीरांगनाओं के अद्वितीय शौर्य से भारत का इतिहास भरा पड़ा है, प्राचीन भारत की नारी समाज में अपना स्थान मांगने नहीं गई, मंच पर खड़े होकर अपने अभावों की मांग पेश करने की आवश्यकता उसे कभी प्रतीत नहीं हुई और ना ही विभिन्न संस्थाएं स्थापित कर उसने नारी के अधिकारों पर वाद-विवाद करने की जरूरत महसूस की उसने अपने महत्वपूर्ण क्षेत्र को पहचाना और वहां खड़ी होकर वह संपूर्ण संसार को अपनी तेजस्विता, निस्वार्थ सेवा और त्याग के अमृत प्रभाव से आप्लावित कर सकी।
सम्मान प्यार की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति में से एक है। एक वास्तविक पुरुष कभी भी एक महिला को चोट नहीं पहुंचाता है। वह सिर्फ एक गृहिणी नहीं है जो आपके भोजन बनाती है और आपके कपड़े धोती है। वह एक सेतू है, जो प्रत्येक किनारे को जोड़े रखती है, नारी के लिए सम्मान सबसे बड़ा उपहार व शक्ति है।
आज भी शक्ति का महत्व निर्विवाद है, नारी हर मायनों में स्वयं सशक्त है, बस आवश्यकता है खुद को पहचानने की, बड़ी बातें करने से सशक्तिकरण नहीं होगा जब तक स्वय के स्व को नहीं पहचानेगी....
