सहेली
सहेली
आज दस साल बाद तेरी बहुत याद आ रही है।मगर अब तुम कभी लौटकर नही आओगी, क्योंकी दस साल पहले वो दिवाली का दिन खुशिया लेकर नही आया था, वो दिन मुझसे मेरी सबसे प्यारी सहेली को मुझसे छीनकर ले जाने आया था। मुझे अपनी बहेन की तरह प्यार करने वाली मेरी सहेली निशा।
हमारी पडौसी लता आंटी, जिनको बच्चे नही थे। और मुझे अपनी बेटी की तरह रखती थी। तब शायद मै दो या तीन साल की थी।वो प्यार से मुझे चकी बुलाती थी। उनकी बहन की बेटी थी निशा। वैसे हम बचपन से तो एक दूसरे को नही जानते थे पर स्कूल के आखरी तीन साल मे हमारी दोस्ती हुई। हररोज आखिरी लेक्चर मे बुक ना होने का बहाना बनाकर क्लास रूम से बहार बैठना और बाते करते हुए पकडा जाना और टीचर की डांट के साथ बैंच पर खडे रेहना। वैसे वो दो साल मुझसे बडी थी इसलिए मेरा ख्याल भी अपनी छोटी बहन की तरह रखती थी। कोई अगर कुछ कह दे मुझे तो सबसे लड जाती थी, अरे, टिचर से भी।वैसे मैं तब भी उससे ज्यादा बात नही करती थी क्योंकी, में किसी से घुलती मिलती नही थी, मैं अकेले बैंठे रहती थी पर उसे मेरे साथ ही बैंठना अच्छा लगता था और अगर कोई गलती से मेरे पास हमारी बैंच पर बैठा तो उसे लडाई करके उठा देती थी।
स्कूल की अनगिनत यादें आज फिर नजर के सामने छा गयी। अब एक साल बाद स्कूल की एक लडकी से निशा ने कहेलवाया की मैं उससे मिलने जाउं, पर कुछ काम की वजह से हम मिल नही पाये और मैने स्कूल भी छोड दिया था। फिर बार बार वो किसी न किसी से कहेलाती थी की मैं उससे मिलने जाउ पर शायद हमारा आखरी बार मिलना किस्मत को मंजूर नही था। और आखिरी बार उसने कहेलवाया की अब मेरे मरने की खबर सुनकर ही आना। मैं उससे मिलने जाने ही वाली थी और उसी दिन खबर मिली की निशा को ब्रेन स्टो्क हुआ है और उसी दिन वो कोमा मे चली गयी। दूसरे दिन खबर आई की दिवाली के दिन उसे अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली है और हालात काफी ठिक है। दिवाली के दिन उसके घर आने की खबर मिलते ही मैं सबसे पहले उससे मिलने जाउंगी यही सोचकर मैं इंतजार कर रही थी। खबर तो आई मगर घर लौटने की नही, उसकी ये दुनिया छोडकर जाने की। मेरे हाथ पैर कांपने लगे और एक सन्नाटे के साथ आंख में आंसू की धारा बह रही थी और उसकी कही बात सच हुई। मैं आखिरी बार उससे नही मिल पाई।
अब कुछ महिने बाद एक सहेली से उसकी मां ने कहलाया की मैं आखिरी बार उनकी बेटी से मिलने क्यु नही गयी। रात दिन वो बस मुझे ही याद करती थी। अस्पताल जाने से पहले तक वो यही कह रही थी की मैं कब मिलूंगी उससे। मैने कभी सोचा ही नही था की ऐसा कुछ होगा। मैं असकी मम्मी को देखकर नजरे चुराने लगी थी। दूर से उन्हें देखकर रास्ता बदल लेती थी। मगर दो ढाई साल बाद अचानक से वो मुझे मिल गये और अब मेरा भागना नामुमकीन था। उनके पास एक ही सवाल था की आखिरी बार मैं निशा से मिलने क्यु नही आई? और मैं वही आंखो में आंसु और नि:शब्द जुबान लिये खडी रही।
आज फिर इतने सालों बाद तेरी हर बात याद आ रही है निशा। पता है लता आंटी अपनी बेटी को क्या कहकर बुलाती है? चकी!! याद है मुझे वो एक ही नोटबुक में हम दोंनो एक साथ लिखते थे। मेरे बांये हाथ से लिखने का बडा फायदा उठाती थी तुम। और जब मुझे राइटिंग कोम्पीटीशन मे पहला नंबर मिला था और जो पैन मिला था, तुम हंमेशा कहती थी की इसे संभालकर रखना। तुम बडी होगी तो याद रहेगा की पूरी स्कूल मे पहला इनाम तुम्है मिला था।
आज ना वो स्कूल है, ना पैन, बस तुम्हारी प्यार भरी यादें है जिन्हैं मैं लिख रही हूं। शायद तुम मुझे देख रही होगी। क्या तुम दोगी मुझे पहला नंबर.....
