शापित नहीं है विधवा
शापित नहीं है विधवा
अरे भाभी तुमने सुमन को मना क्यों नहीं किया कि अपनी विधवा जेठानी से दूर रहे नहीं तो विधवा की छूत लग जाती है, बुआजी चिल्लाते हुए बोली....क्या अपने छोटे बेटे को भी खोना चाहती हो भाभी, मना करो अपनी छोटी बहू को थोड़ा पढ़ लिख क्या गयी तो क्या समाज के नियम कानून नहीं मानेगी। अभी तो तेरह दिन भी पूरे नहीं हुए है और सुमन तो अपनी जेठानी के साथ ही चिपकी रहती है उसके साथ ही खाना, सोना सब कर रही है कम से कम तेरह दिन तो दूरी रखनी चाहिए उसको, कल को कुछ अनर्थ हो जाए तो मत बोलना की जीजी तो बड़ी थी क्यों नहीं समझाया बाकी तुम देख लो भई तुम्हारा घर संसार है मेरा तो काम है रीति रिवाज़ बताने का अब तुम न मानो तो बात अलग है।
शांती देवी बहुत देर से अपना दुःख दबाते हुए अपनी ननद की जली कटी सुन रही थी पर अब उनसे सहन नहीं हो रहा था कि उनके परिवार को बुआजी रीति रिवाज़ की आड़ में बिखेरना चाह रही थी मन में बहुत उथल पुथल ही रही थी कैसे अपनी बात कहें, घर का माहौल ऐसे ही गमगीन है पर नहीं बोला तो बड़ी बहू अकेली पड़ जायेगी इसलिए धीरे से बोली,
"जीजी सुमन जो कर रही है एकदम सही है, बड़ी बहू का दुःख बड़ा है ऐसे समय में रीति रिवाज़ों को पालना जरूरी है या जो दुनिया में है उसे संभालना, जीजी आप और मैं दोनों इस दुःख से गुजर चुके है, ऐसे समय किसी अपने का सहारा बहुत जरूरी होता है, जब आपके भाई इस दुनिया से चले गए तब आपके निर्देश की वजह से बड़ी बहू मुझसे दूर ही रहती थी।"
"आप बताइए जीजी एक माँ क्या अपने बेटे का बुरा चाहेगी, अगर बड़ी बहू मेरे पास आती तो क्या मैं उसके दुख का कारण बन जाती पर सबने और आपने भी मुझसे दूरी रखी जीजी मुझे बहुत कष्ट हुआ की मेरे अपने लोग पास हो कर भी दूर हैं, आप तो सारे रिवाज़ पालन करती हैं फिर भी ननदोई जी का जब समय आया तो वो भी ईश्वर के पास चले गए। जीजी आप खुद भुक्त भोगी हैं फिर भी उन रिवाज़ों को बढ़ावा दे रही हैं जिनका कोई मतलब नहीं, पर मैं ऐसे किसी रिवाज़ को नहीं मानूंगी जो अपनों में दूरी बढ़ा दे इसलिए मैं सुमन के साथ हूँ वो एक पढ़ी लिखी समझदार लड़की है उसने ही मुझे समझाया कि वो जो कर रही है अपनी जेठानी के दुःख को कम करने के लिए वो सही है। बड़ी बहू का दुःख तो समय के साथ ही कम होगा पर जितनी जल्दी वो सम्भल जाएगी तो अपने बच्चों की तरफ ध्यान दे पाएगी, बेचारे बच्चे कितने सहमे सहमे रहते हैं। और जीजी जब जो होना है वो हो कर रहता है इसके लिए मानवता को छोड़ रिवाज़ों को पालना जरूरी नहीं है ....जरूरी है तो बस ये कि जो पीछे रह गया है उसे हौसला दें और जीवन के प्रति चाह जगाएं।"
बुआजी समझी या नहीं पर वो कुछ बोली नहीं शायद नई पीढ़ी जो कर रही थी उसको समझने में उन्हें समय लगे पर यह भी सच है कि रीति रिवाज़ मानने चाहिए पर तभी जब वो इंसानियत के हित में हों और किसी को हानि न पहुँचायें।