ताश के खराब पत्ते
ताश के खराब पत्ते
बाबूजी आज आपकी लता ने जीवन में सफलता हासिल कर ली है और मुझे यूनिवर्सिटी में लेक्चरर चुन लिया गया है। आज जिंदगी से मिले उन खराब पत्तों से मैंने सम्भल कर खेला और मैं जीत गई, बाबूजी यह सब आपके मार्गदर्शन से ही हुआ है आपने मुझे टूटने नहीं दिया।
बाबूजी को तो चार साल पहले की घटनाएं याद आ रही थीं जब रोते-रोते लता की सिसकियों की आवाज मन्द हो गई थी। उसी दिन ही तो उसने अपना सब कुछ एक कार एक्सीडेंट में गवां दिया था। उसका मन यकीन करने को राजी नहीं था कि सुबह जिस परिवार के साथ वो हंसी-ख़ुशी पिकनिक मना रही थी, उनके साथ खेल रही थी, गुनगुना रही थी उसका वही प्यारा परिवार वापसी के समय एक झटके में सड़क दुर्घटना में छिन्न भिन्न हो गया। रोहन, उसका पति ड्राइविंग कर रहा था था और वो खुद सफर का आनंद ले रही थी पीछे सीट में मिनी और माही उसकी बेटियां अंताक्षरी खेल रहीं थीं और अचानक से एक ट्रक ड्राइवर की लापरवाही के चलते रोहन और मिनी दोनों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई पर लता और माही को ज्यादा चोटें नहीं आई थी। पांच साल की माही भी समझ रही थी शायद लता और अपना दर्द।
सारे सगे सम्बन्धी क्रिया कर्म होने के बाद चले गए रह गए रोहन और लता के माता पिता।
लता को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था और अपने पिता से गले लग कर रोये ही जा रही थी, बाबूजी अब मैं क्या करूंगी कैसे रहूंगी माही को कैसे पालूंगी।लता के सवालों से बाबूजी का हृदय व्यथित हो गया उसका रुदन देख कर उसको कांता, उसकी माँ, के पास छोड़ कर रोहन के माता पिता के कमरे में गए की आगे क्या करना चाहिये पर लता के सास ससुर का बर्ताव उनकी समझ से बाहर ही था।
लता की सास बोली आप चाहें तो लता को तेरहवीं के बाद वापस ले जा सकते हैं। हमारा तो बेटा चला गया लता और माही की देखभाल हम बूढ़े कैसे करेंगे हम नहीं चाहते की हमारे छोटे बेटे को उनकी जिम्मेदारी लेनी पड़े। हम दोनों बूढ़े भी उस पर ही आश्रित हैं। आप लता का बुरा नहीं होने देंगे इसलिए उसे आप आत्मनिर्भर बनाइये हमारा आशीर्वाद हमेशा उनके साथ है।
तेरहवीं के बाद लता अपने मायके आ गई माही के साथ...उसके देवर ने व्यापार में जो रोहन का बनता था वो भी देने से इंकार कर दिया साझे में क्या किसका ये कभी लता ने पूछा ही नहीं और सास ससुर की लाचारी थी की वो भी अपने छोटे बेटे का साथ दे रहे थे। रोहन के बीमे से जो भी राशि मिली वही लता को प्राप्त हुई। पूरी तरह से टूटी हुई लता को बाबूजी की बातों और अनुभव ने संभाला। लता बिटिया चल अपने बाबूजी के साथ और ये मत सोच की तुम्हारा नाम लता है तो तुम किसी सहारे के बिना जीवन में आगे नहीं बढ़ सकती हो, बस बिटिया मैं तो ये चाहता हूँ की जीवन के इस खेल में ईश्वर ने जो पत्ते तुम्हें दिए वो बहुत अच्छे नहीं हैं पर उन्हीं खराब पत्तों से तुम्हें ये खेल खेलना भी होगा और जीतना भी होगा। बिटिया अच्छे पत्तों के साथ कोई भी खेल जीत सकता है पर खराब पत्तों के साथ जो खेल में जीत जाए उसे अच्छा खिलाड़ी कहते हैं।
बस अब तुम दृढ निश्चय के साथ अपनी पढ़ाई करो और माही के साथ साथ अपना भी भविष्य सँवारो। जो रिसर्च तुमने अधूरी छोड़ दी थी उसे पूरा करो और ऐसी लता बनो जिसको ऊपर चढ़ने के लिए किसी सहारे की जरूरत नहीं होती। बाबूजी ने जीवन की पाठशाला में अपने अनुभव से जो भी सीखा आज लता को वही ज्ञान दिया और उनकी हिम्मत और हौसले की वजह से ही लता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी डॉक्टरेट पूरी की और विश्वविद्यालय में लेक्चरर बन पाई। माही भी खुश थी और माँ की आँखों में सन्तुष्टि थी अपनी लता को अतीत के दर्द से उबरते हुए देख कर।
सही मायनों में आज उसने खराब पत्तों के साथ जीवन का खेल जीत लिया। अब वो पूरी तरह से तैयार थी हर मुश्किल का सामना करने के लिए।