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Sheshjee Divyaindu

Drama

3  

Sheshjee Divyaindu

Drama

शाइनिंग इंडिया

शाइनिंग इंडिया

3 mins
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कल शाम टहलते हुए मेरी मुलाकात बुधई काका से हुई। ‘कल्लू चाय’ कि दुकान पर भारत का होने वाला प्रधानमंत्री तय किया जा रहा था। तभी अपने बच्चे को पीठ पर बांधी हुई एक महिला दोनों हाथ पसारकर बुधई काका के सामने खड़ी हो गयी। बुधई काका से उस महिला की मुलाकात उनके दैनिक जीवन का हिस्सा थी। बुधई काका भी रोज खीस निपोरकर कल्लू को एक कप चाय का आर्डर दे दिया करते, पर आज मुझे अपने सामने पाकर व एक पढ़ा लिखा इंसान जानकर उन्होंने भारत के विकास के बारे में प्रश्न किया।


कुछ देर सोचने के बाद मैंने उन्हें अखंड भारत के दो हिस्सों के बारे में बताया। पहला तो शाइनिंग इंडिया व दूसरा सफरिंग इंडिया। शाइनिंग इंडिया जहाँ सूचकांक में उछाल देखने को बेताब रहता है वही सफरिंग इंडिया अपने जीवन स्तर में उछाल का इन्तजार कर रहा है। उसे सोने या चांदी की कीमतों में उछाल या गिरावट से फर्क नही पड़ता उसे फर्क पड़ता है तो महज इस बात से के गेहूं यदि दो रूपए और सस्ता हो जाता तो दूसरे वक़्त की रोटी का भी जुगाड़ हो जाता। खाद्य सुरक्षा बिल पास कर चुका हमारा देश यद्यपि सबको भोजन का अधिकार देता है परन्तु एक सच यह भी है के कुछ वंचित आज भी भुखमरी से परेशान होकर उसी शाइनिंग इंडिया से कर्ज लेते हैं और जीवन भर वह शाइनिंग इंडिया उन्हें ऋण ग्रस्तता क़े चंगुल में फसाये रखता है। शाइनिंग इंडिया व सफरिंग इंडिया में और अंतर समझा पाता इससे पहले ही बुधई काका ने वापस चाय की चुस्की लेते हुए मेरा ध्यान चौराहे पर बैठे उस वृद्ध व्यक्ति की ओर मोड़ा जो रोज सुबह से शाम राहगीरों से कुछ उम्मीद लगाये हुए है। अब जिसे खाद्य पदार्थ ही न मिल पा रहा हो वह क्या जाने क़े खाद्य सुरक्षा कानून क्या है। वहाँ ध्यान पहुंचते ही मुझे अर्थशास्त्र क़े वे सिद्धांत याद आ गये जो आर्थिक संवृद्धि व समावेशी विकास की व्याख्या करते हैं। नई आर्थिक नीति क़े जिन आंकड़ों पे हम इतराते हैं उनमें 1950-51 से 1987-88 तक लगभग 40 वर्षों में जहाँ गरीबी अनुपात में 16 प्रतिशत की गिरावट आयी थी , नई आर्थिक नीति लागू होने क़े बाद 1992-93 से 2010 तक करीब 17 वर्षों में 17 प्रतिशत की गिरावट आयी है। निश्चय ही सुधार तो हुआ है पर ये सुधार इतने नही क़े शाइनिंग इंडिया व सफरिंग इंडिया क़े गैप को भर सकें।


रेडियो से प्रसारित होने वाला भारत सरकार का एक विज्ञापन मुझे सहसा ही स्मरित हो उठा "मीलों हम आ गये मीलों हमें जाना है " सच भी है जो अमीर था और अमीर हो गया और जो गरीब था और गरीब हो गया। हम सच में मीलों आगे आ गये परन्तु अभी मीलों और जाना है, ईश्वर जाने इतना आगे जाकर हम गरीबी हटाएंगे या गरीबों को ही हटा देंगे। बहरहाल चाय की चुस्कियां भी अब ख़त्म हो रही थीं और बुधई काका अपने अखंड भारत क़े दो हिस्सों शाइनिंग इंडिया व सफरिंग इंडिया से वाकिफ भी हो चुके थे। उन्होंने एक चाय तो पिलाई पर उसके बदले बहुत कुछ वसूल लिया पर अफ़सोस वह महिला बिना चाय पिए ही किसी और क़े सामने हाथ पसारने क़े लिए जा चुकी थी।


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