बूढ़ा बेबस पिता
बूढ़ा बेबस पिता
झुके हुए कन्धे, हाथों में लाठी, कमजोर होतीं आँखें और गालों पर पड़ी झुर्रियाँ ; बस इतना ही परिचय है उस बेबस बूढ़े पिता का |
एक पिता जिसकी आँखों में सपने कम हैं और आंसू ज्यादा , एक पिता जिसकी आँखों से उसका जीवन भर का त्याग, मेहनत और और उसका अतीत आंसुओं की एक-एक बूँदों में घुलकर बह रहा है | लोग कहते हैं कि आँखें सब कह देतीं हैं , यह बात आज सच लग रही थी उस बूढ़े बेबस पिता को देखकर |
ऐसा नहीं है कि वह पिता अपने बचपन से ही ऐसा था, वह भी कभी ऊर्जावान , हिम्मती और कभी न रोने वाला रहा होगा, कभी वह भी अपने झुके हुए कन्धों वाले पिता का सहारा रहा होगा , कभी वह भी अपने पिता की हाथ की लाठी बना होगा , कभी उसने भी अपने पिता की आँखों को आंसुओं में तब्दील होने से रोका होगा | फिर आज क्या हुआ ,आज तस्वीर क्यों कुछ और है ; आज तो स्वयं उसी की आँखें नम हैं जो कभी अपने पिता की आँखों का तारा रहा होगा | आज उस पिता के गालों पर झुर्रियॉँ हैं जिसने कभी अपने पिता के गालों की झुर्रियों को महसूस किया होगा |
उस पिता ने अपनी सारी ज़िन्दगी, अपनी सारी कमाई और अपनी सारी ख़ुशियाँ इसलिए कुर्बान कीं कि उसके बच्चों के कन्धे कभी न झुकें , उसके बच्चों की आँखें कभी कमज़ोर न हों और उसके बच्चों को कभी लाठी का सहारा न लेना पड़े |
कोई स्वार्थ नहीं था उस पिता का अपने बच्चों से सिवाए इसके कि अपने बच्चों को खुशहाल देखकर उसे संतुष्टि मिलती ; और संतुष्टि मिलना कोई स्वार्थ नहीं क्योंकि संतुष्टि तो परमात्मा को भी मिलती होगी इतनी सुन्दर सृष्टि बनाकर , तो अगर संतुष्टि पाना ही मात्र स्वार्थ है तो फिर तो परमात्मा से बड़ा और कोई स्वार्थी नहीं |
तो अपने बच्चों के लिए अपनी खुशियों की तिलांजलि देने वाले उस बूढ़े पिता की आँखों से बह रहे आंसू कहीं उसके बच्चों के ही कारण तो नहीं थे ? क्योंकि यह तो तय था कि झुके हुए कन्धे और गालों पर पड़ी झुर्रियॉँ उन बच्चों के ही कारण थीं जिन्हे आबाद करने की कोशिश में वो बूढ़ा पिता तिल-तिल कर बर्बाद हुआ था | बस इन आंसुओं का कारण क्या है यह तय नहीं हो पा रहा था | यदि इन आंसुओं का कारण वह बच्चे थे तो शायद इससे ज्यादा डूब मरने वाली बात उन बच्चों के लिए और कुछ नहीं हो सकती |
उन बच्चों को कम से कम एक बार यह विचार अवश्य करना चाहिए था कि ऐसी झुर्रियाँ कभी उनके भी गालों पर पड़ेंगीं ,कभी उनके भी कन्धे ऐसे ही झुकेंगे |
यह पढ़कर आपको शायद बाग़बान की याद आयी होगी , खैर वो याद दिलाना मेरा मकसद नहीं था , मेरा मकसद तो सिर्फ इतना याद दिलाना है कि एक बूढ़े बेबस पिता की आँखों का तारा कहे जाने वाले बच्चों को अपने पिता की आँखों में आंसुओं का कारण तो कत्तई नहीं बनना चाहिए और यदि कोई ऐसा करता है तो कम से कम मेरी नज़रों में तो उससे तुच्छ इंसान और कोई नहीं |
स्वर्गीय कवि श्री ओम व्यास जी ने कहा भी है कि -
पिता है तो संसार के सारे सपने अपने हैं
पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं।