सच्चा न्याय

सच्चा न्याय

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राजा दुःशासन इन दिनो बहुत परेशान था। आए दिन डकैतियो की घटनाओ ने उसके नाक में दम कर रखा था। भ्रष्ट निठल्ले सिपाही चोर-डकैतों को पकड़ने में पूरी तरह से नाकामयाब साबित हो रहे थे। जनता की मुश्किले दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। पहले ही राज्य के अनगिनत करों के कारण सामान्य लोगों के आर्थिक स्तर में भारी गिरावट आई थी, और अब बचीखुची पूंजी भी दिनदहाड़े डकैत लूट कर ले जाते। इस बदहाली से निकलने का कोई रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा था।




एक दिन इसी उधेड़बुन में बैठे राजा को गुप्तचरों के प्रमुख द्वारा पता चला कि डकैतों ने अपनी स्ट्रँटेजी बदल दी है। अब अधिकतर समय वे संन्यासियों के भेष में छिपे रहते है। मौका पाकर लोगों को लूटते है।

इस खबर से राजा का चेहरा खिल उठा। उसने तुरंत गले से मोतियों की माला निकालकर गुप्तचर को दे दी। और नगर में फर्मान जारी कर दिया कि जल्द से जल्द नगर के सभी संन्यासियों को हिरासत में ले लिया जाय।

राजा सनकी है ये बात सारी प्रजा जानती थी। मगर इतना ज्यादा सनकी है इसका अहसास उन्हे अब तक ठीक से नही हो पाया था। पूरे देश में हड़कंप मच गया। जिन साधु -संन्यासियों का लोग पूजन किया करते थे, जिनसे मार्गदर्शन पाते थे, जिनके पदचिह्नों पर चलने का प्रयास करते थे, उन्हे कैद किया जायेगा,ये बात देशवासियों के लिए असहनीय थी। मगर राजा के आदेश से अधिकारी जनता को इस कार्य की अहमियत बताने में जुट गये। भविष्य में होनेवाले लाभ के लिए राजाका ये आदेश कितना ज़रूरी है ये बात वे सबको बताते। मगर फिर भी लोगों ने विरोधप्रदर्शन किया। राजा भी कहा हार माननेवाला था? उसने जनता की एक नहीं चलने दी। अपनी बात को मनवाकर रहना, राजा की बहुत बड़ी खूबी थी।


जंगलों, गुफाओ, मठों से साधु-संन्यासियों को गिरफ्तार किया जाने लगा। राजा के आदेश से सभी साधु-संन्यासियों को तरह-तरह की यातनाए दी जाने लगी। सभी साधु - संतों से शरीर पर धारण किये हुए वस्त्रों को छोड़कर बाकी के सारे वस्त्र, आवश्यक साहित्य तथा दण्ड-कमंडलू भी जब्त कर लिए गये। ध्यान में बाधा उत्पन्न करना, कड़ी धूप में दिन -दिन भर भूखा-प्यासा खड़ा करके रखना, निम्नस्तरीय वाक्यों से निर्भत्स्ना करना ऐसे हर तरह के हथकंडे अपनाए जाने लगे। मुँह खुलवाने के लिए नये-नये जालिम तरिकों का इस्तेमाल होने लगा। व्रृद्ध और अपाहीज संन्यासियों ने दण्ड में कुछ छूट देने का अनुरोध किया तब एक दिन के लिए उन्हे और किसी तरह से प्रताडीत न कर केवल भूखा रहने का ही दण्ड दिया गया। संन्यासियों की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही थी। बालसाधु भी यातनाए भुगत रहे थे। वे चोर- डकैत नहीं है ये बात साबित कर पाना सभी साधु- संन्यासियों के लिए मुश्किल होता जा रहा था। क्योंकि उनके द्वारा दी गयी एक भी दलिल स्वीकार नही की जा रही थी । राजा को पूरा विश्वास था कि यातनाए देने से चोर-डकैत स्वयं सामने आ जाएंगे। दिन-पर-दिन बीतते गये मगर चोर सामने आ ही नहीं रहे थे। न तो चोरी-डकैती का क्रम टूट रहा था और न साधु-संतों पर किये जानेवाले सरकारी अत्याचारों का। क्योंकि लगभग रोज ही नये-नये साधुओं की जेल में भर्ती। की जाती। जब तक चोर पकड़े न जाय तब तक किसी भी संन्यासी को छोड़ने का आँर्डर नहीं था। इससे कुछ साधु -संतों ने जेल में ही दम तोड़ दिया। मगर इस खबर को किसी भी सरकारी मीडिया द्वारा प्रसारित न किये जाने से लोगों को पता ही नहीं चला।


आखिर चोरी -डकैती का सिलसिला रुक गया। कई दिनों तक कोई वारदात सामने नहीं आई। अपने प्रधानमंत्री से इस खबर को सुनकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। अब इन संन्यासियों में निश्चित रुप से चोरों को भी पकड़ लिया गया होगा इस बात से राजा पूरी तरह से आश्वस्त हो गया। प्रधानमंत्री ने एक बढ़िया सुझाव राजा को दिया, जिसे सुनकर राजा और भी प्रसन्न हो गया,और एक बड़ा फैसला लिया चोरों का सफाया करने के लिए।



आठ तारीख के शुभ मुहूर्त पर राजा जेल में सभी संन्यासियों से मिलने गया। अपनी धीरगंभिर वाणी में संन्यासियों को संबोधित करते हुए वो बोला, " मेरे प्यारे देशवासियों .......मैं आपसे मन की बात कहना चाहता हूँ। आप मेरी प्रजा हो। आपके हितों की रक्षा करना मेरा परम कर्तव्य है। अब तक आपने चोरो-डकैतों को पकड़ने की मेरी मुहिम में मेरा पूरा साथ दिया है, इसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ। मैं सबसे बड़ा देशभक्त हूँ ये तो आप सभी जानते हो मगर अब एक मौका मैं आपको भी देना चाहता हूँ अपनी देशभक्ती साबित करनेका। ये देश आपसे बलिदान मांग रहा है। मैं ये नही कह रहा हूँ कि सच्चे देशभक्तों की तरह सिमा पर जाकर आप शत्रु का मुकाबला करे। बस थोड़ीसी सहायता आपसे चाहता हूँ राष्ट्रनिर्माण के लिए । मुझे पूरा विश्वास है आपको मेरा प्रस्ताव ज़रूर पसंद आएगा। और इस महान कार्य में आप मेरा साथ दोगे।"


बोलते-बोलते राजा बड़ा भावुक हो उठा। रोने लगा। "मैं तो स्वयं फकीर हूँ। मन में आया तो किसी भी वक्त झोला उठाकर निकल जाऊंगा। मगर जब तक सत्ता में हूँ, मेरा कर्तव्य है कि अपना धर्म निभाऊ। फिलहाल बदले हुए हालात में मुझे ऐसा निर्णय लेना ज़रुरी हो गया है। मैं जानता हूँ चोर-डकैत आप ही लोगों के बिच भेष बदलकर रह रहे है। मेरे बार-बार आवाहन करने पर भी वे सामने नहीं आ रहे है। इस पर मैने एक जबरदस्त उपाय खोज निकाला है, और उसी उपाय को अमल में लाने के लिए मुझे आपकी सहायता चाहिए। आपको जानकर बड़ी खुशी होगी कि मैं आप सभी को फासी पर लटकाना चाहता हूँ। चोर-डकैतों के खिलाफ ये मेरा आज तक का सबसे बड़ा कदम है। ये कदम अनोखा है। ये कदम ऐतिहासिक है। ये कदम बड़ा साहसी है। ये कदम अद्भुत है। आपके साथ चोर-डकैत भी फासी पर लटक जाएंगे और फिर देश भयमुक्त हो जाएगा। मुझे पता है साधु-संतों का तो जीवन ही त्याग और परोपकार के लिए होता है। ये वो स्वर्णिम अवसर है, जब आप सर्वोच्च त्याग की मिसाल बन सकते है। आपको शहीद घोषित किया जाएगा। आपके नाम के सिक्के निकाले जाएगे। एक स्तम्भ बनवाकर उसपर आप सबके नाम स्वर्णाक्षरों से लिखवाए जाएंगे। बाहरदेश के भी कोई चोर-डकैती करने का साहस नहीं जुटा पाएंगे। देश प्रगति की चरम सीमाओं को छूने लगेगा और इसका थोड़ाबहुत श्रेय आपको भी मिलेगा। चोरों के भय से मुक्त हो जाने के कारण देश की जनता पेट भर खाना खा सकेगी। सुरक्षित महसूस करेगी और आपको आशीर्वाद भी देगी। जिससे आपकी बहुत जल्द सद्गति हो जाएगी। इसलिए मैं आपसे पुनः अपील करता हूँ कि आप देश की पुकार सुने। और इस बलिदान के अवसर को पूरी श्रद्धा से, त्यागभावना से स्वीकार करे। बहुत बहुत धन्यवाद।"


राजा की इस अपील से सभी साधु-संत-संन्यासी भावविभोर हो उठे। इस ऐतिहासिक महान कार्य के लिए उन्हे चुनने के लिए राजा को बार-बार धन्यवाद देने लगे। राजा की जयजयकार करने लगे। पूरे हर्षोल्लास के साथ राजा की अपील को सभी साधु-संतो ने स्वीकार कर लिया।

उसी दिन रात के बारह बजे भव्य आयोजन में सभी संन्यासियों को फासी पर लटका दिया। राजा ने अत्यंत प्रसन्नचित्त होकर संन्यासियों के बलिदान की ये खुशखबरी देशवासियों को सुनाई और अच्छे दिन जल्द आने की बधाई भी दी। मगर ये खबर सुनकर लोग बदहवास से हो गये। सभी तरफ उदासी और मायूसी छा गई। मगर राजा के आदेश से सरकारी अधिकारी लोगों को समझाने में जी जान से जुट गये कि संन्यासियों का बलिदान देश के लिए कितना आवश्यक था और दीर्घ समय पश्चात इसके कितने शुभ परिणाम आएंगे। इस बात को समझने में कुछ अधपगले लोगों को ज्यादा देर नही लगी। वे खुश होकर नाचने लगे। वे समझ नही पा रहे थे कि जब हम जैसे अधपगले लोगों की समझ में बात आ गयी तो समझदार लोग क्यो नहीं समझते? खैर वे सारे अधपगले सरकारी अधिकारियों के साथ लोगों को समझाने की मुहिम में जुट गये। दिनभर चहुओर घूम-घूम कर राजा की दूरदृष्टीवाली विकासनीति का वे प्रचार करने लगे। अपने मिशन में थोड़ाबहुत कामयाब भी हुए। दूसरे दिन पूरे उत्साह से प्रचारमुहिम चलाने का संकल्प कर रात को अधिकारी और अधपगले अपने-अपने घर लौट गये।


अगले दिन सुबह से ही देश में हाहाकार मच गया। सारे देशवासी सोचने लगे संन्यासियों का बलिदान व्यर्थ हो गया। सबकी चर्चा का एक ही विषय,"ये कैसे हो गया?"

हुआ यूं कि रात में धन्नासेठ के यहाँ डाका पड़ गया। सभी सक्ते में आ गये। राजा को भी चिंता होने लगी कि अब लोगों को क्या मुँह दिखाएंगे? आखिर इतने सारे संन्यासियों को मौत के घाट उतारने के बावजूद ये चोर बच कैसे गये? ये लोग आठ तारीख से पहले कुछ दिनों तक इतने शांत कैसे हो गये थे? अपने गुप्तचरों पर कैसे विश्वास करे? इन जैसे प्रश्नों से राजा का दिमाग चकराने लगा। प्रधानमंत्री हमेशा की तरह दूसरे देश गया हुआ था। कुछ कदम उठाना बेहद ज़रूरी हो गया। मगर बिना प्रधानमंत्री से सलाह मश्विरा किये कैसे निर्णय ले, राजा समझ नहीं पा रहा था।

देशभर में अफरातफरी मची हुई थी| सारी जनता एकदूसरे को शक की निगाह से देखने लगी| कुछ लोग राजा से जवाब हासिल करने के लिए संगठन बनाने की योजना बनाने लगे| कुछ लोग मोर्चे निकालने लगे| राजा के विरोध में नारे देने लगे| लोगों का आक्रोश निरंतर बढ़ने लगा|

आखिर राजा ने अकेले ही फैसला लेना उचित समझा| उसने सारे सिपाहियों के प्रमुखों को बुलाकर उनसे बातचित की और उनकी कार्यपद्धति पर असंतोष जताते हुए चोरों को जल्द से जल्द पकड़ कर लाने का हुक्म दिया| इस हुक्म ने सिपाहियों को मुसिबत में डाल दिया| अपनी प्रिय गॉसिप्स, दोपहर की मिठी नींद, और बाकी मनोरंजन के साधनो को त्यागकर वे जी जान से चोरों को पकड़ने के लिए निकल पड़े | रास्ते पर सिपाहियों को देखकर लोग हैरत में पड़ गये| मगर राजा के हुक्म की वजह से सिपाही काम में जुटे हुए है, ये जानकर उनकी हैरत तो काम हुई ही क्रोध भी थोड़ा कम होने लगा| सैकडो लोगों की गिरफ्तारी के बाद उनमें से जैसे-तैसे, दो-तीन चोर ही मिल पाए| फिर भी सिपाहियों के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि थी| गुप्तचरोंने उन चोरों को अपने कब्जे में ले लिया और उन्हे थर्ड डिग्री दी गई| तब गुप्तचरों को जो गुप्त जानकारी उनसे हासील हुई उसे सुनकर वे आश्चर्यचकित हो गये|

गुप्तचर प्रमुख से राजा ने जब ये बात सुनी तो वो भी दंग रह गया| फौरन विदेश से प्रधानमंत्री को बुला लिया| राजा प्रधानमंत्री से बोला, “ प्रधानजी, मैं नहीं जानता था कि आप इतने बड़े खिलाडी है| अरे आपके पास धन की कमी थी तो मुझसे मांग लेते|”

प्रधानमंत्री बोला, “ महाराज, मेरी समझ में नहीं आ रहा, आप कहना क्या चाहते है?”

राजा बोला, “अरे कोई ऍक्टिंग करना तो आपसे सीखे, अब ज्यादा भोले मत बनिये| क्या आप नहीं जानते थे कि जिन चोरो ने सारे देशवासियों की नाक में दम कर रखा है उनका मुखिया आपका बेटा है? और अगर जानते थे तो इतने लंबे समय तक आपने ये बात हमे बताई क्यू नहीं? क्या ये देशद्रोह नहीं है?”

प्रधानमंत्री ने कहा, “अरे छोड़िये भी महाराज, आप भी कौनसे जमाने की बात लेकर बैठ गये? ये पुराने जमाने के पैमाने नये जमाने पर फिट नहीं बैठते| अब इन बातों की संज्ञाए बदल गयी है| अगर मेरा बेटा चोर हैं, तो हम सब भी क्या अलग करते है? सिर्फ माध्यम अलग हैं| आपको इस तऱह मेरे बेटे का अपमान करने का हक़ नहीं हैं| ये मुझसे कतई बर्दाश्त नहीं होगा| मेरा बेटा उन लोगों को सज़ा दे रहा है, जिनके पास काला धन हैं| मेरे सपूत पर मुझे गर्व हैं| एक धोबी की तरह वो काला धन सफेद करता हैं| अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चालू रखता हैं| बाजार में पैसों की कमी नहीं आने देता| और हां आप सच माने या न माने अगर मेरा बेटा इस महान राष्ट्रीय कार्य को अंजाम न देता तो ये देश कबका दिवालिया हो जाता|”


बड़े आश्चर्य से राजा ने पूछा, “ये क्या कह रहे हैं आप, प्रधानजी?”


प्रधानमंत्री बोला, “शतप्रतिशत सच कह रहा हूँ| महाराज ये हमारी जनता हमे बेवकूफ बनाती हैं| कामाती लाखों हैं, और दिखाती हजारों हैं| टैक्स देने से जी चुराती हैं| काला धन जमा करती रहती हैं| आप किसी वड़ापाववाले या चायवाले के घरकी भी तलाशी ले लीजिये| आपको ५०० और १००० के नोटों की ढ़ेर सारी गड्डियाँ मिल जाएगी| ये बात मेरा बेटा जानता हैं| इसलिए वो अपने साथियों के साथ काला धन रखनेवालों को लूटता हैं, और सारा पैसा लाकर अपनी टीएमबी अर्थात तेरा मेरा भला बैंक में जमा करता हैं| आप तो जानते है, टीएमबी वहीं बैंक है, जहासे देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों को और हमें भी निरंतर कर्जा मिलता हैं| हमारे देश की सारी अर्थव्यवस्था इसी बैंक पर टिकी हुई हैं| अब आप ही बताइये, सबसे बड़ा देशभक्त कौन हैं| मेरा बेटा या आप? और ये जो चोरियों का सिलसिला कुछ समय के लिए थम गया था न वो मेरे ही आदेश पर, ताकि बिनावजह देश की जनता की बौध्दिक क्षमता में वृद्धि करनेवाले और देश की समस्याओं को बढ़ानेवाले निकम्मे साधुओं को रास्ते से हटाया जा सके|”

राजा बोला, “क्या कह रहे हैं आप?....लेकीन.. मुझे लगता हैं इन साधु-संतों से आपका कोई पुराना हिसाब-किताब होगा|”

प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, “ठीक कहा आपने, आप तो जानते ही हो मेरा इकलौता बेटा कितना होनहार हैं| मिट्टी से सोना निकाल सकता हैं| उसने आज तक जो भी कार्य किया उसमें सफल रहा हैं| आज देशभर में उसके सैकड़ो अनुयायी हैं, जो उसके एक इशारे पर जान तक न्योछावर कर दे| बात उस समय की हैं, जब वो गुरुकुल में पढ़ रहा था| वहाँ भी मेरा बेटा सारे विद्यार्थियों के लिए आदर्श था| तब भी उसके आगे-पिछे बहुत सहपाठी हुआ करते थे| गुरुकुल में चाहे कोई भी वारदात हो, मेरे बेटे का उसमें नाम न आए ऐसा कभी होता ही नहीं था| अपनी जड़े मजबूत करने के लिए एक-एक कक्षा से कम से कम दो-तीन सालों का अनुभव लेकर ही आगे बढ़ता| अन्याय- अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाता था मेरा बेटा| उसके किसी भी अनुयायी को कोई तकलीफ दे तो उसे नानी याद दिला देता था-"

राजा बोला, “ प्रधानजी, आप मुख्य बात बताइये ना...... --”

प्रधानमंत्री बोला, “हां वहीं तो कह रहा हूँ| एक दिन मेरे बेटे को अपने प्रिय अनुयायी सहपाठी को दण्डित किये जानेकी बात पता चली तो उसे क्रोध आ गया और उसने गुरुकुल के प्रधानाचार्य की अकल ठिकाने लगा दी| गुरुकुल व्यवस्थापन ने इस मामूली सी बात के लिए मेरे होनहार सपूत को गुरुकुल से निकाल दिया| इससे वो निराश हो गया और उसकी स्कुली शिक्षा वहीं छूट गई|”

राजा ने पूछा, “मगर मैने तो सुना हैं कि आपका बेटा पोस्ट ग्रॅज्युएट है और हावर्ड युनिवर्सिटी का पी एच डी होल्डर भी हैं|”

प्रधानमंत्री हसते-मुस्कुराते हुए बोला, “महाराज, अगर आपके बच्चों के लिए भी ये डिग्रिया चाहिए तो बेझिझक बताइये| खुद मुझे ही ले लिजिये| बचपन में चाय बेचा करता था| घोर दरिद्रता के कारण सातवी कक्षा तक भी ठीक से पढ़-लिख नहीं पाया| मगर आपके चुनाव अधिकारियों को थोड़ा सा लक्ष्मीदर्शन करवाने से उन्होने मेरे फर्जी दस्तावेज ओरिजनल मानकर मेरा उच्चशिक्षित होना स्वीकार कर लिया, और आपकी सेवा का अवसर मुझे मिल गया| मेरा और मेरे बेटे का तो हर कार्य राष्ट्रहित के लिए ही हैं| हमारी रगों में देशभक्ती खून बनकर दौड़ रही हैं|”


राजा शर्म से पानी-पानी हो गया| बहुत हिम्मत जुटाकर वो प्रधानमंत्री से बोला, “ अरे प्रधानजी, आपने तो मेरी आंखे खोल दी| मुझे क्षमा करे| आप और आपका सुपुत्र दोनो महान हैं| आप दोनो को देश का सर्वोच्च सम्मान दिया जाना चाहिए| मगर इस बेवकूफ जनता को ये बात समझा पाना मेरे बस की बात नहीं हैं| लोग इन्साफ की मांग कर रहे हैं| उन्हे कुछ तो जवाब देना ही होगा| मेरा तो दिमाग काम नहीं कर रहा, अब आप ही कोई रास्ता बताइये|”

प्रधानमंत्री झट से बोला, “ महाराज, आप बिल्कुल फिकर ना करे| मेरे पास एक आयडिया हैं, जिससे साप भी मर जाए, और लाठी भी ना टूटे|”

अगले दिन देश में ऐलान करा दिया गया, जो भी चोर-डाकू स्वेच्छा से आगे आकर अपना गुनाह कबूल कर लेगा, उसे बहुत मामूली सी सज़ा दी जाएगी और उसका पुनर्वास भी किया जायेगा| इस घोषणा के बहुत सकारात्मक परिणाम सामने आए| मुखिया को छोड़के चोर-डाकूओ के पूरे गिरोह ने आत्मसमर्पण कर दिया| जनता में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी| पूरे देश में उत्सव मनाए जाने लगे| राजा की जयजयकार से सारा देश गुंजायमान हो उठा|

राजा ने भी अपना वचन निभाया| थोड़ा समय सरकारी मेहमाननवाज़ी में गुज़ारने के पश्चात सभी चोर- डाकूओं को सरकारी नौकरिया दे दी गयी| उनके अनुभव से लाभ उठाने के लिए लगभग सभी को इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट के अधिकारी बना दिया गया| रामराज्य भले न आया हो मगर कमिश्नर राज आने से सारी प्रजा खुश हो गयी| प्रधानमंत्री के होनहार बेटे को टीएमबी बैंक के साथ ही देश की सभी सरकारी बैंकों का प्रमुख पद सम्मान के साथ दे दिया गया|



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