सफाई

सफाई

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अजीब बात है यार, तुम जब भी किसीसे बहस करते हो, जीतते हमेशा तुम ही हो

इसमें अचरज की कोई बात नही। मैं समय-समय पर परस्परविसंगत वाक्य बोलता रहता हूँ, इससे फायदा ये होता है कि जब भी सामनेवाला अपना तर्क रखता है, मैं अपनी सुविधा के अनुसार वाक्य का चयन करके अपना बचाव कर लेता हूँ।

मगर क्या हर बार सामनेवाला उल्लू बन जाता है?

क्यो नहीं, असल में लोग उल्लू ही होते है, काश उनके पास भी उतनी अकल होती जितनी मेरे पास है।

अच्छा तो लोग सहजता से हार मान लेते है?

नहीं उन्हे भी जीतने की उम्मीद होती ही है। मगर मुझसे जीत पाना उनके बस की बात नहीं है,ये वो जल्द ही जान जाते है। और हां, कई बार तो लोग मेरी बहस सुनकर इतना पक जाते है कि, अपनी और ज्यादा एनर्जी वेस्ट करने की बजाय वे हार मान लेना उचित समझते है|

फिर भी कोई स्पेशल फार्मूला जरूर होगा तुम्हारे पास।

हां भाई! लो अब तुम सुनना ही चाहते हो तो फार्मूला भी सुन लो। जब भी किसी वार्तालाप में सामनेवाला मुझपर हावी होने लगता है, मैं अपनी सफाई इतनी सफाई से देता हूँ कि सामनेवाले को पूरा साफ कर देता हूँ।

जी धन्यवाद इस गुरूमंत्र के लिए।

हां, मगर सावधान! इसका उपयोग मुझपर ही करने की कभी मत सोचना। क्योकि मेरे पास और भी कई तरिके है बहस में जीतने के ।

हां मेरे बाप! मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ? तुमसे बहस में जीतने का सपना ना कभी मैने देखा था ना कभी देखूंगा।


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