काला मच्छर
काला मच्छर
अरे, आपने मुझे पहचाना नहीं ? आप कितनी बार कड़वी चाय पी चुके हैं मेरे हाथों से बनी।
हाँ, याद आया?
हाँ हाँ, मैं वही इब्राहीम लोधी चायवाला, प्रसिद्ध ‘उद्योगपति |'
हाँ भाई, सुनाता हूँ तुम्हें अपनी दास्तान... ध्यान से सुनो...
उन दिनों मेरा अक्सर बाहर ही रहना होता था। एक बार भारत लौटते ही मुझे पुराना दोस्त याद आ गया। उस दोस्त से मिलने मैं उसके घर जा पहुँचा। जब मैं चाय बेचकर गुजारा करता था, उन दिनों मेरे इस मित्र ने मेरी बहुत सहायता की थी। बल्कि सच तो ये है कि, उस मित्र के कारण ही मैं अपनी विकट परिस्थिती को झेल पाया था। मुझे देखकर मित्र बहुत खुश हुआ। मेरी बहुत आवभगत होने लगी। उसके सभी परिवारजन मुझे ऐसे निहारने लगे जैसे मैं किसी अजायबघर से भागकर आया था। एक ढ़ीठ छोटे बच्चे ने करीब आकर मेरे कोट पर सिलाई किया हुआ मेरा नाम पढ़ लिया। सब आश्वस्त हो गये कि मैं वही हूँ, जिसका जिक्र मेरा दोस्त अक्सर उनसे करता रहता था।
वैसे कई बार दोस्त ने मुझे बुलाया भी था, मगर तब व्यस्तता इतनी अधिक रहती थी कि संभव ही नहीं हो पाता था, उसका न्योता स्वीकारना। वैसे उन दिनों भी मैं इंडिया में कम ही रह पाता था। खैर मैने दोस्त के सभी परिवारजनों से बातचीत शुरू की। मेरा स्वयं का कोई परिवार तो था नहीं, इसलिये ऐसे किसी परिवार से बात करने में मुझे बड़ा मज़ा आता था। मैं उनसे अपने मन की बात कहने लगा। दोस्त के ज्येष्ठ सुपुत्र ने मेरे चायवाले से बड़े उद्योगपति के बीच का सफर जानना चाहा तो बहूरानी मुझसे जानना चाहती थी कि मैने अपनी बीवी को, अपने परिवार को साथ क्यों नहीं रखा ? मैं अपनी आदत के मुताबिक सच के आभासी आवरण में लपेट-लपेटकर झूठ परोसने लगा, तभी मेरी नज़र दोस्त के गाल पर पड़ी।
एक मोटा काला मच्छर उसके गाल पर बैठकर उसका खून चूस रहा था। मेरा दोस्त मुझसे इतना अभिभूत हो चुका था कि उस मच्छर की ओर उसका बिल्कुल भी ध्यान नहीं था। मेरे सामने मेरे दोस्त का कोई खून चुसे ये मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता था ? आठ बज चुके थे। मैंने सोचा यही सही वक्त है उस मच्छर की वाट लगाने का। मैने दोस्त के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया। मच्छर उड़ गया मगर दोस्त के मुँह से खून बहने लगा। एक दाँत टूट गया था। दो हिलने लगे थे। वह हक्काबक्का सा मेरी ओर देखने लगा। उसके परिवारजन भी इस सर्जिकल स्ट्राईक का अर्थ समझ नहीं पाए। तब मैने समझाया, “भाई, ये मच्छर तुम्हारा खून चूस रहा था। मैं अगर इसे नहीं मारता तो तुम्हे डेंग्यू हो जाता, मलेरिया हो जाता, चिकन गुनिया हो जाता, स्वाईन फ्ल्यू हो जाता, क्योंकि हो सकता है ये मच्छर कोई सामान्य मच्छर न हो, संक्रामक बीमारी फैलानेवाला हो, जरा सोचो, इनमें से कोई बीमारी तुम्हें लग जाती तो धीरे-धीरे वो तुम्हारे इन बाकी परिवारजनों में फैलती।
तुम्हारे परिवार से बाजूवालों तक, बाजूवालों से पूरा मोहल्ला, मोहल्ले से शहर, शहर से प्रदेश और अंत में पूरे भारत में ये महामारी फैल जाती। इसलिये देशहित का विचार करके मैंने ये निर्णय लिया।”
मेरी बात बड़े ध्यान से सुनने वाले दोस्त के सभी परिवारजन भावविभोर हो गये। मेरी जय-जयकार के नारे लगाने लगे। मेरे सूझबूझ भरे निर्णय को मिला समर्थन देखके मेरा सीना सवा सौ इंच का हो गया। ख़ुशी-ख़ुशी दोस्त के घर से निकलकर मैं जापान रवाना हो गया। वहाँ जाकर जब ये बात मैंने जापानियो को बताई, तो इस पराक्रम के लिये मुझे कोई इंटरनॅशनल अवार्ड मिलना चाहिये, इस पर सभी सहमत हो गये।
जापान में दो महीने बिताने के बाद जब मैं इंडिया लौटा, तो मेरे दोस्त की अगुआई में पूरा देश मेरी जय-जयकार कर रहा था। चहुँओर मेरी समझदारी की चर्चा होने लगी थी क्योंकि इस दौरान दोस्त को अपने दो दाँत निकलवाने और तीन नये लगवाने पड़े थे। दाँत टूटने के दर्द से कराहते हुए भी मेरा दोस्त हर बार अस्पताल की लाइन में लगे लोगों को मेरे इस महान कार्य से अवगत कराता। जो भी सुनता, श्रद्धा से उसका सर झुक जाता। लोगों में इस खबर से जुनून इतना बढ़ गया कि वो जब भी अस्पताल जाता लोग बड़ी- बड़ी लंबी लाइनें लगाकर उस घटना की जानकारी पाने के लिए पहुँच जाते इसलिए दोस्त के सभी परिवारजन भी सक्रिय हो गये।
वे किसी न किसी बहाने लोगों को अलग-अलग भीड़भाड़ वाली जगहों पर मिलते और उन्हें मेरे पराक्रम की जानकारी देते जिसे सुनकर कई जगहों पर लोग नाचने लगते, जयजयकार करने लगते|
एक सब्जी वाले को इस घटना का पता चलने पर सब्जी की टोकरी रास्ते पर फेंककर वो नाचने लगा। छोटे-बड़े, दिमाग का उपयोग करने से कतराने वाले, स्वयं निर्णय में अक्षम लोग मेरे देशहित में लिए गये इस अद्भुत निर्णय से इतने अधिक प्रभावित होने लगे कि उन दिनों देश में जन्में बहुत से बच्चों का नाम भी मेरे ही नाम से रखा गया।
चहुँओर मेरा सम्मान किया जाने लगा। फूलों के बड़े-बड़े बुके मुझे भेंट स्वरूप मिलने लगे। सबसे बड़ा बुके मुझे उस दाँतों के डॉक्टर से प्राप्त हुआ, क्योंकि उसे मेरे दोस्त के तीन दाँतों के इलाज से अच्छी-खासी कमाई हुई ही थी साथ ही उसके कस्टमर्स की संख्या में भी इज़ाफा हो गया था क्योंकि अगर लाइन में लगा कोई भी मेरे निर्णय के खिलाफ कुछ भी बोलता तो मेरे भक्त उसका मुँहतोड जवाब देते। डॉक्टर द्वारा उनका तुरंत इलाज किया जाता इसलिये वो डॉक्टर मेरे इस ऐतिहासिक निर्णय से, मेरे द्वारा लिये गये ऐक्शन से बहुत ही प्रसन्न था। उसने भी मेरे प्रचार में अपना विशेष सहयोग दिया।
अंत मे नये देश की यात्रा पर निकलने से पहले एयरपोर्ट पर सभी देशवासियों की ओर से मेरा बड़ा भव्य सत्कार समारंभ आयोजित किया गया। जानी-मानी हस्तियाँ उस कार्यक्रम में शामिल हुई। मेरा बड़ा लंबा-चौड़ा परिचय दिया गया। लोग बार-बार तालियाँ बजा–बजा कर खुश हो रहे थे। बीच-बीच में मेरे नाम के नारे लगा रहे थे। मुझे भारत-रत्न दिया जाना चाहिए इस पर लगभग सभी सहमत हो चुके थे। मैंने सत्कार के जवाब में बोलना आरंभ किया, “मेरे प्यारे देशवासियों...” तभी किसी ने मेरे बायें गाल पर अपने मजबूत पंजे से एक जोरदार तमाचा लगाया। मैं लड़खड़ा गया। मेरा चश्मा भी टूटकर नीचे गिर गया। मैंने अपने आपको थोडा सवारा, मगर फिर से किसी के मजबूत पंजे से एक जोरदार तमाचा मेरे दाहिने गाल पर पड़ा। मुँह से खून बहने लगा। मैं थोड़ा संभला और तीसरा तमाचा पड़ने से पहले ही मारने वाले का हाथ पकड़ लिया।
बड़ी ही विनम्रता के साथ वो बोला, “लोधीजी, आप नाराज मत होइये, दरअसल आपके बायें गाल पर एक मोटा काला मच्छर बैठा था, उसे मारना था। वो उड़ गया और आपके दाहिने गाल पर जा बैठा। वो देखिये फिर से बायें गाल पर आकर बैठ गया।” इतना कहकर उसने इतना कसकर झापड़ रसिद किया कि मेरे दो दाँतों ने अपना स्थान छोड़ दिया।
मैं सम्भलकर कुछ कह पाता इससे पहले ही मेरे दाहिने गाल पर फिर से जोरदार तमाचा पड़ा और ये तमाचा भी मेरे चेहरे का नक्शा बिगाड़ने में कामयाब रहा। इसीलिये आप आज तुरंत पहचान नहीं पाए। हाँ, मगर इसका मुझे जरा भी अफसोस नहीं है। खैर, करीब छः महिने बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिली और साथ में नकली दाँतों की ये बत्तिसी। आज भी अगर दूर से भी कोई काला मच्छर दिख जाए तो मैं तुरंत रास्ता बदल लेता हूँ। चलिये फिर मिलते हैं बाय बाय...........