साधु की संगति
साधु की संगति
एक चोर को कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला उसके खाने के लाले पड़ गए मरता क्या न करता मध्य रात्रि गांव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में ही घुस गया
वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं अपने पास कुछ संचय करते तो नहीं रखते फिर भी खाने पीने को तो कुछ मिल ही जायेगा आज का गुजारा हो जाएगा फिर आगे की सोची जाएगी
चोर कुटिया में घुसा ही था कि संयोगवश साधु बाबा लघुशंका के निमित्त बाहर निकले चोर से उनका सामना हो गया साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था पर उन्हें यह नहीं पता था कि वह चोर है
उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया ! साधु ने बड़े प्रेम से पूछा- कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ? चोर बोला- महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूं
साधु बोले- ठीक है, आओ बैठो मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूं तुम्हारा पेट भर जायेगा शाम को आये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते
पेट का क्या है बेटा ! अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है यथा लाभ संतोष’ यही तो है साधु ने दीपक जलाया, चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिए
साधु बाबा ने चोर को अपने पास में बैठा कर उसे इस तरह प्रेम से खिलाया, जैसे कोई माँ भूख से बिलखतेर् अपने बच्चे को खिलाती है उनके व्यवहार से चोर निहाल हो गया
सोचने लगा- एक मैं हूं और एक ये बाबा है मैं चोरी करने आया और ये प्यार से खिला रहे हैं ! मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूं यह भी सच कहा है- आदमी-आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूं।
मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं जो समय पाकर जाग उठती हैं जैसे उचित खाद-पानी पाकर बीज पनप जाता है, वैसे ही संत का संग पाकर मनुष्य की सदवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गए।
उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृत वर्षा सी दृष्टि का लाभ मिला तुलसी दास जी ने कहा है।
एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।।
साधु की संगति पाकर आधे घंटे के संत समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा
फिर उसे लगा कि ‘साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नियत से आया था तो उनकी नजर में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी ! क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है, जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया !
लेकिन फिर सोचा, ‘साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित करूँगा दयालु महापुरुष हैं, ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे
संत के सामने प्रायश्चित करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं।
भोजन पूरा होने के बाद साधु ने कहा- बेटा ! अब इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे मेरे पास एक चटाई है इसे ले लो और आराम से यहीं कहीं डालकर सो जाओ सुबह चले जाना
नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर 00 रोने लगा साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया, प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- बेटा ! क्या हुआ ?
रोते-रोते चोर का गला रूँध गया उसने बड़ी कठिनाई से अपने को संभालकर कहा-महाराज ! मैं बड़ा अपराधी हूं साधु बोले- भगवान सबके अपराध क्षमा करने वाले हैं शरण में आने से बड़े-से-बड़ा अपराध क्षमा कर देते हैं उन्हीं की शरण में जा।
चोर बोला-मैंने बड़ी चोरियां की हैं आज भी मैं भूख से व्याकुल आपके यहां चोरी करने आया था पर आपके प्रेम ने मेरा जीवन ही पलट दिया आज मैं कसम खाता हूँ कि आगे कभी चोरी नहीं करूँगा मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।
साधु के प्रेम के जादू ने चोर को साधु बना दिया उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के समर्पित करके जीवन को परमात्मा को पाने के रास्ते लगा दिया
महापुरुषों की सीख है, सबसे आत्मवत व्यवहार करें क्योंकि सुखी जीवन के लिए निःस्वार्थ प्रेम ही असली खुराक है संसार इसी की भूख से मर रहा है अपने हृदय के आत्मिक प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखो।
प्रेम और स्नेह को उदारता से खर्च करो जगत का बहुत-सा दुःख दूर हो जाएगा भटके हुए व्यक्ति को अपनाकर ही मार्ग पर लाया जा सकता है, दुत्कार कर नहीं।
