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BABUBHAI PATEL

Inspirational

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BABUBHAI PATEL

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पंच रत्न

पंच रत्न

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महर्षि कपिल प्रतिदिन पैदल अपने आश्रम से गंगा स्नान के लिए जाया करते थे। मार्ग में एक छोटा सा गाँव पड़ता था। जहाँ पर कई किसान परिवार रहा करते थे। जिस मार्ग से महर्षि गंगा स्नान के लिए जाया करते थे, उसी मार्ग में एक विधवा महिला की कुटिया भी पड़ती थी। महर्षि जब भी उस मार्ग से गुजरते, महिला या तो उन्हें चरखा कातते मिलती या फिर धान कूटते।

एक दिन विचलित होकर महर्षि ने महिला से इसका कारण पूछ ही लिया। पूछने पर पता चला की महिला के घर में उसके पति के अलावा आजीविका चलने वाला कोई न था। अब पति की मृत्यु के बाद पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी।

कपिल मुनि को महिला की इस अवस्था पर दया आ गई और उन्होंने महिला के पास जाकर कहा, “भद्रे ! मैं पास ही के आश्रम का कुलपति कपिल हूँ। मेरे कई शिष्य राज-परिवारों से हैं। अगर तुम चाहो तो में तुम्हारी आजीविका की स्थाई व्यवस्था करवा सकता हूँ, मुझसे तुम्हारी यह असहाय अवस्था देखी नहीं जाती।

महिला ने हाथ जोड़कर महर्षि का आभार व्यक्त किया और कहा, “मुनिवर, आपकी इस दयालुता के लिए में आपकी आभारी हूँ, लेकिन आपने मुझे पहचानने में थोड़ी भूल की है। ना तो में असहाय हूँ और ना ही निर्धन। आपने शायद देखा नहीं, मेरे पास पांच ऐसे रत्न हैं जिनसे अगर में चाहूँ तो खुद राजा जैसा जीवन यापन कर सकती हूँ। लेकिन मैंने अभी तक उसकी आवश्यकता अनुभव नहीं की इसलिए वह पांच रत्न मेरे पास सुरक्षिक रखे हैं। 

कपिल मुनि विधवा महिला की बात सुनकर आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने कहा, “भद्रे ! अगर आप अनुचित न समझे तो आपके वे पांच बहुमूल्य रत्न मुझे भी दिखाएँ। देखूँ तो आपके पास कैसे बहुमूल्य रत्न हैं ?

महिला ने आसन बिछा दिया और कहा, “मुनिवर आप थोड़ी देर बैठें, मैं अभी आपको मेरे रत्न दिखाती हूँ। इतना कहकर महिला फिर से चरखा कातने लगी।

थोड़ी देर में महिला के पांच पुत्र विद्यालय से लौटकर आए। उन्होंने आकर महर्षि और माँ के पैर छुए और कहा, “माँ ! हमने आज भी किसी से झूठ नहीं बोला, किसी को कटु वचन नहीं कहा, गुरुदेव ने जो सिखाया और बताया उसे परिश्रम पूर्वक पूरा किया है।

महर्षि कपिल को और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उन्होंने महिला को प्रणाम कर कहा, “भद्रे ! वाकई में तुम्हारे पास अति बहुमूल्य रत्न है, ऐसे अनुशासित बच्चे जिस घर में हों, जिस देश में, हो उसे चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं है।

सदैव प्रसन्न रहिये।

नित याद करो शिव परमात्मा को


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