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Ritu asooja

Drama Inspirational

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Ritu asooja

Drama Inspirational

रूपाली

रूपाली

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उसके भी कुछ सपने थे, वो हंसना चाहती थी खुल कर जीना चाहती थी।

क्या सपने सिर्फ महलों वाले ही देख सकते है? नहीं ना? सपनों पर तो सबका अधिकार है, फिर चाहे वो महलों में रहे या अपने छोटे मकानों में या फिर झोपड़ी में...

वो ख्वाब देखती थी तो लोग हंसते थे! कहते थे खुली आंखों से सपने देखना बंद कर! भरी दोपहरी में सपने नहीं देखा करते!


रूपाली जो एक मेहनती लड़की थी, दिन भर लोगों के घर बर्तन, सफाई करती फिर जो पैसे मिलते उससे अपनी मां की जरूरतें पूरी करती।

रूपाली की मां हमेशा कहती, इतनी मेहनत मत किया कर, मैं कोई अच्छा सा लड़का अपनी बिरादरी में देखकर तेरा ब्याह कर देती हूं और मेरा क्या मैं किसी भी वृद्धाश्रम में रह लूंगी।


रूपाली अपनी मां को हमेशा यह कहकर चुप करा देती, अभी तीन -चार साल रुक जा फिर करूंगी ब्याह... मां हमेशा कहती, कब तक यूं लोगों के घर का काम करती रहेगी? ब्याह के बाद भी तुझे यही सब करना है अभी थोड़ा आराम कर।


रूपाली, मां तुझे तो पता है कम्प्यूटर का कोर्स कर रही हूं। कुछ समय में कोर्स पूरा हो जाएगा, फिर कोई नौकरी मिल ही जाएगी और तुझे पता है कोर्स की फीस भी तो भरनी पड़ती है। बस कुछ महीने की बात है फिर तुम और मैं अपने घर में रहेंगे इज्जत की दो रोटी खाएंगे।


मां को डर लगता था रूपाली के सपनों से! वह हमेशा अपनी बेटी से कहती, तू ज्यादा सपने मत देखा कर, हम लोग शुरू से ही झोपड़ी में रहे है और ठीक है हम यहां। और मुझे डर लगता है, बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बाते होती है और बहुत होशियार होते है ये पैसे वाले लोग।


रूपाली अपनी मां को समझाते हुए, मां तेरी बेटी कोई बुद्धू थोड़े है? बारहवीं पास की है, अब कम्प्यूटर कोर्स भी कर लूंगी। मैं भी बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आ जाऊंगी।


रूपाली को लोगों के घर काम करने पर बहुत ही भेदभाव व दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता, वह सब कुछ ख़ामोश होकर सह लेती थी। एक दिन मालती बहुत उदास थी, बस चुपचाप अपने काम में लगी हुई थी।

एक घर की मालकिन थोड़ी दयावान थी, ठंड का मौसम था उसने मालती को चाय-नाश्ता खाने को दिया। रूपाली चुपचाप बैठी चाय पी रही थी। मालिकन ने रूपाली की उदासी देखकर पूछा, क्या बात है रूपाली आज उदास क्यो हो।


रूपाली, कुछ नहीं कहते हुए बोली, मालकिन क्या सपने देखने का हक सिर्फ पैसे वालों को होता है? क्या गरीब के कोई सपने नहीं होते? क्या गरीब कभी आगे नहीं बढ सकता? क्या उसको हक नहीं की वो भी समाज में अपनी पहचान बना सके? आज पास वाली मकान मालकिन ने मेरा बहुत दिल दुखाया। कहती है जितनी हो इतनी रहो! मैं कम्प्यूटर कोर्स सीख रही हूं ना तो वो कहने लगी, तुम लोग तो सिर्फ इसी काम के लिए बने, ये कम्प्यूटर की पढाई तुम्हारी औकात नहीं इसके लायक...!


दयावान मालकिन बोली, बोलने दे जिसको जो बोलना है, ये बताओ अब तुम्हारा कितने महीने का कोर्स बचा है?

रूपाली मालकिन से, दो महीने। मालकिन और मैं बहुत अच्छे से सीख रही हूं।


दयावान मालकिन, तुम्हारा कोर्स पूरा होते ही मैं तुम्हे एक अच्छी नौकरी दिलवाऊंगी।


दो महीने बीते। रूपाली को नौकरी मिली।?आज रूपाली स्वाभिमान से अपनी जिन्दगी जी रही थी। अब उसे किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि अब शिक्षा उसके साथ थी और धीरे-धीरे रूपाली अपने सपने पूरे करने लगी।


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