रोटी
रोटी


पाँच दिनों के सफर के बाद सतीश अपने गाँव वाले दर्जन भर साथियों के साथ गाँव पहुँचा। मुआ कोरोना क्या आया जिंदगी उजाड़ कर रख दी मजदूरों की। दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो गये वे। जिस रोटी के ख़ातिर गाँव से शहर आये थे,आज उसी रोटी के खातिर बड़े दुखी होकर शहर से गाँव लौट रहे हैं।
जाने कितने किलोमीटर पैदल चले, फिर बस का इंतज़ाम हुआ, बस ने भी मुख्य सड़क पर छोड़ दिया। वहाँ से अपने घर तक फिर सात किलोमीटर चलकर आये थे वे लोग....।
पूरे रास्ते भर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए माता के भजन गाते रहे सब मिलकर।
" चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है...."
फिर जब दुखी होने लगते अपने ही सेठ को गाली देने लगते, जिनको लाखों कमाकर दिये पर आज दुख की घड़ी में उन्होंने मुँह फेर लिया। फोन तक उठाना बंद कर दिया करमजलों ने....।
जब पैसे खत्म हो गये तो रोटी के लिये कतार में लगना पड़ता था....वे भिखारी नहीं थे .... पेट की भूख और परिस्थितियों से मजबूर थे ....कई बार रोटी के लिये सुबह से दोपहर तक लाइन में रहना पड़ता तो रोना आ जाता.... कैसे दिन आ गये उनके ......अपना परिवार, अपना घर, अपनी जमीन सब कुछ छोड़कर आने की सजा मिल रही थी शायद....।
माँ तो हमेशा कहती थी - "ना जाओ लल्ला, ज्यादा न सही पर पेट भरने जितना जुगाड़ तो यहाँ भी हो ही जावेगा, रामजी भूखा उठाता जरूर है पर भूखा सुलाता नहीं किसी को.....तब शहर की चकाचौंध में माँ की बातें बेमानी लगती थी और आज....आज आँखों के आँसू सूखते ही नहीं ....।
गमगीन मन नाराजगी के इन क्षणों में वही गीत गाने लगता जिसे बापू अक्सर गाता था। "सुख के सब साथी, दुख में ना कोई.....मेरे राम....मेरे राम... तेरो नाम एक साचो, दूजा न कोई....."। दिल के दर्द ,पाँवों की पीड़ा और भूखे पेट को गा गाकर बहलाता हुआ चला जा रहा था वो।
गाँव पहुँचकर परेशानियों से मुक्ति मिलेगी यही सोचा था उसने पर यहाँ आते ही परिवार से मिलने से पहले ही सबको चौदह दिनों के लिए कोरंटाइन कर दिया गया। जरूरी भी था ....चुपचाप चले आये इस कोरंटाइन सेन्टर में....।
अब आगे की जिंदगी के बारे में सोच रहे थे। क्या लॉकडाउन खुल जाने पर फिर से लौटेंगे शहर या फिर यहीं अपनी जमीन पर करेंगे खेती ....पाल लेंगे गाय, भैस ....पेट तो यहाँ भी भर ही जाएगा....सोचते हुए सतीश के स्मृतिपटल पर पंकज उधास की वो गजल उभर आई "आजा उम्र बहुत है छोटी ,अपने घर में भी है रोटी.....चिट्ठी आई है....।
पता नहीं कल क्या होगा पर आज तो सबसे खूबसूरत लग रहा था अपना गाँव, अपने लोग, बहुत याद आ रही थी माँ की गोदी, बापू की मीठी झिड़कियाँ.... प्यारी लग रही थी सतीश को अपनी घरती माँ। सतीश ने झुक कर माटी को सलाम किया और खुली आँखों से लहलहाते खेत का सपना देखने लगा।