रिश्तों की डोर
रिश्तों की डोर
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रात के 1:00 बज रहे थे और अदिति की आँखों से नींद कोसों दूर थे। उसने बच्चों और पति की तरफ देखा जो गहरी नींद में सो रहे थे। वह धीरे से पलंग से उतर गई और फ्रिज से ठंडे पानी का बोतल लेकर बालकनी में जा बैठी। बाहर चांदनी रात थी। दूर-दूर तक साफ साफ दिखाई दे रहा था। पेड़ों की सरसराहट की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी। उसने बोतल से दो घूँट ठंडा पानी पिया और आँखें बंद करके चेयर पर लेट सी गई, क्योंकि आज उसे चांदनी भी शीतलता नहीं दे पा रही थी।
हर लड़की की तरह उसने भी तो एक छोटा सा परिवार ही मांगा था, जहां वह अपने पति और बच्चों के साथ बिना रोक टोक के खुशी-खुशी जीना चाहती थी। आज 15 साल बाद जब उसे यह सब मिल रहा था, तो फिर उसे वो खुशी महसूस क्यों नहीं हो रही थी ? उसका मन उदास क्यों था ? किसी भी काम में उसका मन क्यो नहीं लग रहा था ? एक अकेलापन सा महसूस क्यों हो रहा था ? शायद वह भी इतने सालों में संयुक्त परिवार में रहने की आदी हो चुकी थी। सबके साथ हँसते बोलते, रूठते मनाते, वक्त कैसे बीत गए पता ही नहीं चला, और जब वह आदी हो चुकी थी सबके साथ रहने की तो अचानक से विकास ( अदिति का पति ) के ट्रांसफर की खबर ने चारों तरफ उदासी बिखेर दी थी।
महीने भर पहले की ही बात थी, कैसे हंगामा खड़ा कर दिया था दीदी (ननद) ने जब विकास ने मां को अपने ट्रांसफर की खबर सुनाई थी। बिना कुछ सोचे दीदी ने उसकी तरफ उंगली उठाते हुए कहा, '' यही बोली होगी ट्रांसफर के लिए। वरना ये क्यों लेता ट्रांसफर ? " कितनी आसानी से उन्होंने उसे दोषी करार दे दिया था। वो अपनी सफाई में कुछ कहती, इससे पहले उसकी सास बोल पड़ी, ''बे वजह तू इसे दोष क्यों दे रही है ? इसमें यह क्या कर सकती है ? सरकारी नौकरी है, कभी भी दूसरी जगह ट्रांसफर हो सकता है ! और यह साथ जाएगी, तो मुझे यह तसल्ली रहेगी कि मेरे बेटे की देखभाल अच्छे से हो रही है। वरना बाहर का खाना खाकर बीमार न पड़ जाए !" मां ने कितनी आसानी से बेटे के भलाई के लिए मुस्कुराते हुए अपने दर्द को छिपा लिया था। उसने मां की तरफ देखा। उनके चेहरे का भाव बता रहा था की उनके अंदर कितना दर्द भर गया था। हो भी क्यों ना ७० साल की उम्र में, बेटे और पोते के साथ अलग होना कौन बर्दाश्त कर पाएगा ?
उसने सास की तरफ देखते हुए कहा, " मैं अकेली क्यों जाऊँ ? आप दोनों भी साथ चल रही हैं। पूरा परिवार साथ में ही रहेंगे। यहां घर में चाचा-चाची और भाई ( देवर ) हैं ही। हम महीने 2 महीने में आते जाते रहेंगे।“ मां ने गहरी सांस लेते हुए कहा, " मैं पैदा भी इसी गांव में हुई थी और मरूंगी भी इसी गांव में। इस गांव से आज तक कहीं बाहर नहीं गई। अंतिम समय में मैं कहीं नहीं जाऊंगी। तुम सब समय पर आते रहना और पैसे भेज दिया करना, हर महीने। इस गांव में सब मेरे अपने ही तो हैं ! तू चिंता मत कर, जाने की तैयारी कर।“ वो चुपचाप अपने कमरे में चली गई। उसका मन एकदम से भारी हो गया था, पर वह यह भी जानती थी कि उनकी सास को मनाना इतना आसान नहीं था, क्योंकि वह बहुत कड़क मिज़ाज की थी, और इस उम्र में भी गांव में उनका एक रूतबा था। आज भी गांव में कुछ भी होता, तो हर कोई उनसे सलाह लेने आते थे। वह मन ही मन यह सोच रही थी कि इस उम्र में मां को कैसे छोड़कर जाएं ? क्या यह सही रहेगा ? शादी के बाद से वह मां की हर बात का ख्याल रखती आई थी। उसकी अपनी मां के गुजरने के 1 साल बाद ही उसकी शादी हो गई थी। शायद इसी वजह से वो सास में अपनी मां की ममता ढूंढा करतीं। इसी वजह से वो उनसे ज्यादा जुड़ चुकी थी। हालांकि घर में और भी लोग थे, पर सास की हर छोटी-बड़ी बातों का ध्यान, वह कोशिश करती थी की खुद रखे।
विकास कमरे में कपड़े बदल रहा था। अदिति का उदास चेहरा देख पूछ बैठा, " क्या हुआ ? क्या सोच रही हो ? " पलंग पर बैठते हुए वो बोली, " क्या सच मे हम मां को छोड़कर जाएंगे ? आप एक बार बात करके देखिए ना, शायद आपका कहना मान ले। मां के बगैर हम कैसे जा सकते हैं “ ? विकास ने कपड़े बदलते हुए ही कहा, " मां इतने सालों से कभी कहीं नहीं गई। हमारे साथ जाना मां का मुश्किल है, फिर भी मैं मनाने की कोशिश करता हूं। तुम चिंता मत करो कुछ ना कुछ कर लेंगे।“ उसे थोड़ी तसल्ली सी हुई, शायद बेटे के ज़िद करने पर मां साथ चलने को मान जाए !
खाना खाते वक्त उन्होंने मां और दीदी से कहा, "आप दोनों भी चल रही है हमारे साथ। अभी जरूरी सामान ले लेना, बाद में जरूरत के हिसाब से कुछ दिनों बाद और सामान ले जाएंगे। " मां कुछ कहती, उससे पहले दीदी बोल पड़ी, " मां अपना घर छोड़ कर कहां जाएगी ? तू अपने परिवार को ले जा, हम यही रहेंगे।" विकास ने मां की तरफ देखा। मां ने बेटी का समर्थन करते हुए कहा, " इस उम्र में दूसरी जगह नहीं रह पाऊंगी। सारे रिश्तेदार यही है, अपना घर है यहां, इसे छोड़कर नहीं जा पाऊंगी मैं। तुम लोग आते रहना हर महीने। ६-७ घंटे का ही रास्ता है, ज्यादा दूर थोड़े ही है ! मां की बात सुनकर विकास चुप हो गया और वह 15 दिन बाद दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए। 2 हफ्ते तो सामान मिलाते हुए और बच्चों की स्कूल की एडमिशन
में गुजर गए, पर उसके बाद समय काटना मुश्किल हो रहा था। जहां वह दिन भर घर के कामों में बिजी रहती थी, वही यहां दिन भर अकेले बैठे रहना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। रह रह कर घर की बहुत याद आ रही थी।
अपनों से अलग होकर ही शायद रिश्तों की अहमियत का पता चलता है। कितना मुश्किल होता है अपनों से अलग रहना। किसी को भी अच्छा नहीं लग रहा था। यहां वैसे तो ऊपर से नॉर्मल दिखने की बहुत कोशिश कर रहा था विकास पर उसकी आंखों में एक सूनापन और स्वभाव में कुछ चिड़चिड़ापन महसूस कर रही थी अदिति। वो अंदर से बेचैन था और हो भी क्यों ना, मां से इतना प्यार जो करते थे। इस उम्र में बूढ़ी मां को छोड़ कर रहना उन्हें अंदर ही अंदर बहुत दर्द दे रहा था, पर उन्हें मालूम था कि मां ने एक बार ना कह दी तो आने वाली नहीं है। नौकरी भी नहीं छोड़ सकता था, तो उसने हालात को समय के भरोसे छोड़ना ही सही समझा।
3:00 बज चुके थे। वो उठी, और धीरे से जाकर बेटे के बगल में लेट गई। उसके लेटते ही छोटा बेटा उससे लिपट गया। उसने भी कसकर अपने बेटे को सीने से लगा लिया और धीरे से उसका माथा चुमा। उसकी आंखों में आँसू भर आए। वो मन ही मन बोल पड़ी, " जब मैं अपने दोनों बेटों के बिना एक पल नहीं रह सकती, तो इस उम्र में मां अपने बेटे के बगैर कैसे जी पाएगी ? " उसने मन में दृढ़ निश्चय लिया कि वह किसी भी हाल में मां को ले के ही आएगी। अचानक उसे खुशी महसूस होने लगी। मन भी हल्का हो गया, और उससे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
आज सुबह से ही उसे अपने अंदर एक स्फूर्ति और खुशी महसूस हो रही थी, मन में एक नया उमंग था, यूं ही मुस्कुरा रही थी। उसने मन में एक दृढ़ निश्चय जो कर लिया था। उसकी खुशी उसके चेहरे से झलक रही थी। विकास से पूछे बिना रहा नहीं गया, "हमें भी तो बताओ भाई, सुबह-सुबह इतनी खुशी का कारण ! "
मुस्कुराते हुए पूरी दृढ़ता से अदिति ने कहा, "इस वीकेंड मैं गांव जा रही हूं मां को लेने। "
विकास -" तुम्हारा जाना बेकार है। मां नहीं आएगी। "
कहने को तो कह दिया पर रोका भी तो नहीं था उसे जाने से।
पहली बार विकास पर बच्चों और घर की जिम्मेदारी डाल कर वह मां को लेने गांव चल पड़ी। गाड़ी में बैठने के बाद भी विकास ने उससे कहा, " तुम ज़िद कर रही हो इस वजह से मैं मना नहीं कर रहा, पर इस उम्र में मां अपना घर छोड़कर नहीं आएगी। " अदिति ने मुस्कुराते हुए दृढ़ता से कहा, " कैसे नहीं आएगी ? मैं उन्हें लेकर ही लौटूंगी !! "
वो जब घर पहुंची, तो हमेशा की तरह गांव के और भी रिश्तेदार उनके घर में बैठे बातें कर रहे थे। अचानक से उसे देख कर सब कोई हैरान हो गए। बुआ ( सास ) ने पूछ ही लिया, "तू क्या अकेले आई है ? विकास और बच्चे कहां है ? " उसने सब के पाँव छुए और मुस्कुराकर मां की तरफ देखते हुए कहां, " मैं आप दोनों को लेने आई हूं और परसों वापस जाना है। " उसकी बात सुनकर हर कोई अपनी सलाह देने लगे। दीदी ने साफ शब्दों में कह दिया, "हम नहीं जाएंगे। " पर मानो अदिति को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। वो बस मां की तरफ देखे जा रही थी। मां बिना कुछ कहे चुपचाप अंदर चली गई, थोड़ी देर सबके साथ बैठने के बाद जो अदिति अंदर गई तो देखा की मां अपने कपड़े समेट रही थी। उसे देखकर मां ने कहा, " मेरे कुछ कपड़े गंदे हैं। कल धो देना सुबह। शाम तक सूख जाएंगे, फिर किस बैग में डालेगी तू ही जान। " अदिति कि आंखों से खुशी के आँसू बह निकले। मां ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "तू इतनी दूर से अकेले आई है, इस लिए जा रही हूं। " वो चुपचाप मुस्कुरा कर रसोई में चली गई।
वो जब चलने लगे तो किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था। बुआ सास ने तो कह ही दिया, " हफ्ते भर में भाभी वापस आ जाएंगी। मामी अपने आदत से मजबूर बोल पड़ी, " हफ्ते भर की क्या बात, देखना आधे रास्ते से ही वापस आ जायेगी दीदी। "
मां ने सब से विदा लेते हुए हाथ जोड़कर कहा, " इसे मना नहीं कर पाई। विकास आता तो शायद नहीं जाती। ये (दीदी) नहीं जा रही है हमारे साथ, इसका ध्यान रखना तुम सब। "
विकास को सुबह ही उनके आने की खबर हो चुकी थी। वो स्टेशन में पहले ही पहुंच गया। गाड़ी रुकी तो दरवाज़े के पास आ गया उसने उत्सुकता बस गाड़ी में देखा तो अदिति के पीछे -पीछे मां को उतरते देख उसके आंखों से खुशी के आँसू छलक आए। चुपके से झुक कर, आंसूओं को पोछते हुए, मां को प्रणाम किया और सामान उठाकर कार की तरफ चल पड़ा। विकास बच्चों को घर में अकेले छोड़ने के बजाय अपने साथ स्टेशन ले आया था। दादी को देख बच्चे बहुत खुश हुए। मां बच्चों के साथ पिछली सीट पर बैठ गई। वह दोनों हैरान थे कि बच्चों के पास कितनी सारी कहानियां बन गई थी दादी को सुनाने के लिए, और मां भी बच्चों की बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी। सब के चेहरे में एक सुकून और मुस्कुराहट थी।
विकास ने अदिति की तरफ बड़े प्यार से देखा, मानो कह रहा हो, " थैंक्स। " और अदिति की आंखों में एक सुकून था। आज अगर उसके पास पंख होते तो वह आसमान में उड़ जाती, क्योंकि आज सारा आसमान उसका था।