घरोंदा
घरोंदा
आज शाम कुछ खरीदारी करते हुए सूरज की मम्मी से मुलाकात हो गई। मैं उन्हें पहली नजर में पहचान ही नहीं पाई। उन्होंने ही पहल करके मुझसे पूछा - “अरे काजल की मम्मी, कैसी हो ? मैंने मुस्कुराते हुए कहां, “मैं अच्छी हूं। और बताओ, आप सब कैसे हो ?
"सब ठीक-ठाक चल रहा है। बहुत दिनों के बाद मिले हैं ना हम लोग, कभी फुर्सत से घर आना, बैठकर बातें करेंगे। तुम तो कभी आती ही नहीं हो ", उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। दीदी के चेहरे से खुशी छलक रही थी। बहुत दिनों बाद जो मिले थे हम लोग।
"दीदी आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे आप हम सब से मिलने हर रोज आती हैं। सोच कर बताना दीदी क्वार्टर छोड़ने के बाद आप वापस हम सब से मिलने कब आई थी ? पता है दीदी हम सब( सभी पड़ोसन) आपको हर रोज कितना मिस करते हैं ! समय निकालकर किसी रोज आइए ना हम सब से मिलने के लिए।"
उन्हें शायद मेरी बात अच्छी लगी, इसीलिए उन्होंने धीरे से मेरे हाथों को पकड़कर दबाया और मुस्कुराते हुए कहा, " जरूर आऊंगी। मेरा भी बहुत मन है तुम सब से मिलने का।"
मैंने भी बात को आगे बढ़ाते हुए उनसे पूछा, “अच्छा, यह बताइए दीदी, भाई साहब कैसे हैं? सूरज कैसा है और क्या कर रहा है ?”
"सब अच्छे हैं। सूरज अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगा है।"
“अच्छा दीदी एक बात पूछूं, अगर आप बुरा ना माने तो ?"
“अरे हां ! हां ! पूछो ना। क्या पूछना है ? और मैं बुरा क्यों मानूं ?”
मैंने थोड़ा झिझकते हुए कहा - “आप लोगों ने अपना घर बना लिया या उसी किराए के घर में हैं ?” यह सवाल पूछ कर मैं खुद सोच रही थी कि ए मैंने क्या पूछ लिया !
उनके चेहरे का भाव बता रहा था कि उन्हें मेरा यह सवाल अच्छा नहीं लगा। फिर भी उन्होंने अनचाहे तरीके से जवाब दिया - “नहीं। अभी घर बनाए नहीं है। सोच रही हूं बना बनाया घर मिल जाए तो खरीद लूं , पर कोई घर पसंद ही नहीं आता है। और जो घर पसंद आता है, उसकी कीमत बहुत ज्यादा मांगते हैं। तुम्हें तो पता ही है कि गवर्नमेंट जॉब करने वालों का रिटायरमेंट के बाद क्या हाल होता है।”
मैं बातों की गंभीरता और भावुकता को समझते हुए, माहौल को हल्का बनाते हुए कहा - “अरे दीदी ! छोड़िए इन बातों को। आज नहीं तो कल घर बन ही जाएगा। चिंता क्यों करती हैं !” मेरी बातें सुनकर वह हंस पड़ी और हम एक दूसरे को बाय करके अपने अपने घर की तरफ चल पड़े।
सुरेश की मम्मी से जुदा होकर घर जाते हुए रास्ते में पुरानी यादों में मैं जैसे खो सी गई। सूरज की मम्मी सुंदर है। और इसकी वजह है - हमेशा माथे पर एक बड़ी सी लाल बिंदी, मांग भर के सिंदूर, सलीके से पहनी साड़ी, हमेशा मुख में पान का बीड़ा, और होठों पर मुस्कान जो आज भी बरकरार है। सच में, उनकी यही मुस्कान ही थी जो सबको अपना बना लेती थी।
भैया, यानी सूरज के पापा, की तो बात ही निराली है। दीदी जितनी सुंदर और सलीके वाली हैं, भैया उतने ही काले और बदसूरत है। ऊपर से उम्र में भी दुगने लगते हैं दीदी से। सुंदरता की परिभाषा अगर बदल दी जाए तो वह बहुत ही हंसमुख और जिंदादिल इंसान हैं। हमेशा हंसी मजाक करना और दूसरों की मदद करने को तैयार।
भैया भाभी से इतना प्यार करते हैं, की भाभी को तकलीफ ना हो, यह सोचकर ऑफिस जाने से पहले और ऑफिस से वापस आकर घर का आधे से ज्यादा काम को खुद करते थे। इसकी वजह से उनके दोस्त उन्हें चिढ़ाते भी थे, पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। उनका कहना था कि, " अपनी पत्नी के सुख-दुख का ख्याल पति नहीं रखेगा तो क्या पड़ोसी आकर रखेंगे ?" भैया की यही बात हम सब औरतों को अच्छी लगती थी और हमें दीदी के भाग्य पर ईर्ष्या होती थी।
मुझे अभी भी याद है, आस-पड़ोस की औरतें एक नई साड़ी के लिए तरस जाती थी, पर सूरज की मम्मी हर महीने नई साड़ी में दिखती थी। उन्हें खाने में भी दो-तीन तरह की मछली और सब्जी चाहिए होता था
जब कभी हम सब मिलकर घूमने जाते थे, तो खर्च करने में सबसे आगे रहती थी दीदी। पर क्या करें ! उनके इन्हीं आदतों की वजह से उनके घर पर कोई महंगा सामान नहीं था और ना भैया के पास स्कूटर या मोटरसाइकिल था। उन्होंने तो बच्चों को भी किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ाया और ना ही कोई प्रॉपर्टी खरीदी। जो कुछ भी कमाते थे, बस खाने पीने में, या पहनने में खत्म कर देते थे। पर आज उनके बच्चे उनके इन्हीं आदतों की वजह से पीछे रह गए। कोई अच्छी नौकरी के लिए उनके पास डिग्री नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें छोटी-मोटी नौकरी के लिए भी भटकना पड़ता है। दीदी को या भैया को इस बात पर कोई अफसोस नहीं है।
मैं सोचती हूं कि अगर उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी होती तो आज उनके बच्चे भी अच्छे नौकरी कर के अपना जीवन आराम से जी रहे होते। और कुछ सेविंग करके एक छोटा सा ही सही, अपना घर बना लेते तो आज पहले से ज्यादा खुशी और आराम की जिंदगी जी रहे होते।
“क्या सोच रही हो? घर आ गया।” उनके आवाज़ पर मेरी सोच पर ब्रेक लगा और मैंने धीरे से कहा "यह क्वार्टर है। अपना भी घरौंदा अभी बना नहीं है।" इन्होंने मेरी तरफ देखा, मानो कह रहे हो कि “अचानक क्या हो गया ?” मैं नजर झुका कर चुपचाप घर में घुस गई।