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Dhruv Oza

Drama Romance

4.2  

Dhruv Oza

Drama Romance

रिश्ता एक कागज का भाग-1

रिश्ता एक कागज का भाग-1

6 mins
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निशांत :- पोपकोर्न खाओगी ? ये भैया बहोत अच्छे पॉपकॉर्न बनाता है पता है ?

क्यारा :- हम यहा शायद पोपकोर्न खाने नहीं आये निशांत ? एक साल में कुछ कुछ तो में समजती हूँ आपको।

निशांत :- अच्छा ज़रा बताओ तो हम भी जाने ऐसा क्या समजे आप।

क्यारा :- (हल्का मुस्काके) समझ ने वाली बातें बताई नहीं जाती, ये रूह खुद गवाही देती है।

निशांत :- यार ये निशाने पे तीर मारना कब बंध करोगी तुम, ठीक है; तो सुनो मैं ये जानना चाहता हूँ तुमने क्या सोचा है ? हमारा कॉन्ट्रेक्ट अब पूरा होने को आया है।

क्यारा :- तो क्या हूँआ कागज़ तो फिर से बन जाएंगे, एक और साल भी नए कागज़ पे निकल सकता है।

निशांत :- हा निकल तो सकता है,( थोड़ा उदास मुह बनाके ) पर क्या तुम्हें रिश्ता एक कागज पे ही रखना है ?

क्यारा :- हर रिश्ता मुकम्मल तो कागज़ पर ही होता हैना, फिर चाहे वो कोर्ट का हो या मौत का। 

निशांत :- लेकिन एक कागज पे हम जिंदगी लिखते है और दूसरे पे कोई और हमारी मौत,

क्यारा :- बात तो रिश्ते की ही हेना लेकिन; तो क्या फर्क पड़ता है, सबका कागज़, एकदूसरे को जानने के बाद बनता है, हमारा पहले बन गया।

निशांत :- तो क्या तुम अब ज़िन्दगी को पसंद करोगी या फिर कागज़ को।

क्यारा :- (निराश होते हूँए ) मेरी तो ज़िन्दगी ही कागज़ पे शरू हूँई है, मुजे कहा चुनने का मौका दिया किसी ने।

निशांत :- तो अब ?

(एक दूसरे को देखके दोनों चुप हो गए )

क्यारा दो घड़ी निशांत की और देखकर फिर मुह फिरा लेती है और वो दिन याद करती है जब उसे पहली बार फूलो के आंगन में कोई छोड़ गया था।

( 21 साल पहले )

छुटकी तैयार होजा ट्रष्टिजी आते ही होंगे, मारेंगे फिर,

(अंदर के कमरे से आया कि आवाज़ आयी, वेसे तो आया किसी अमीर घर के वारिश के लिए इस सोसाइटी के अमीर लोग किराये पे रखते हैं, पर हमें तो लावारिश होते हूँए भी एक आया मिली )

छुटकी :- नहीं चाची मुजे तैयार नहीं होना है, देखोना कितनी अच्छी बारिश हो रही है, मुजे भीगना है बारिश में।

चाची :- अरे बेटा तेरे अलावा २० बच्चे और हे यहा, तुम बाहर जाओगी तो सब तुम्हारे पीछे आएंगे और मेरी नोकरी खा जाएंगे, इसलिए अच्छा बच्चा बनो और तैयार हो जाओ चलो,

(ज़िन्दगी देने वालो का तो पता नहीं लेकिन ज़िन्दगी के २० साल की साँसे तो हमे इस फूलों के आंगन ने दी थी,

जो हमारा घर भी था और अनाथालय भी,लेकिन यहा बच्चे लेने कोई नहीं आता,क्योकि यहा बिकाऊ पत्निया मिलती थी, बाहरी दुनिया मे जो लोग समाज के छोड़े हूँए होते थे जिनको समाज मे कोई अपनी बेटी नहीं देता था वो यहा पत्नी खरीदने आते थे,हम यहा २० बहेने थी जो बिकाऊ थी, और हमारे ट्रष्टि भी कॉन्ट्रैक्ट के तौर पे हमे देते थे और ग्राहक से उसके पैसे लेते थे फिर उससे हमारा गुजरान चलता था, हम सब ये जानते थे और हमे इससे आपत्ति भी नहीं थी,क्योकि कोई कोई तो इसे भी आते थे जो हमेशा के लिए किसीको चुनको ले जाते थे,और उसका दहेज ट्रष्टि ग्राहक के पास से लेते थे, हमारे कागज़ भी बनते थे, और रिश्ते भी, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट के तौर पे; ताकि जो नहीं रखना चाहे वो वापस भी कर सके।)

दयानंद :- देखो निशांत तुम पत्नी ले जा सकते हो, और रख भी सकते हो, लेकिन कानूनी तौर पे तुम और तुम्हारी पत्नी तभी एक हो पाओगे जब दोनों आपसमें समजूति से कबुल करो, और इसलीये पहले तुम्हे सिर्फ एक साल के कॉन्ट्रेक्ट के तौर पे हम दे सकते है।

निशांत :- ठीक है, लेकिन लड़की कोन है,कहा कि हे,कुछ जानकारी आपके पास भी तो होगी।

दयानंद :- नहीं यहा जो भि लड़कियां है वो बचपन से है और अनाथ है, हम ऐसी बच्चीओ को इंडिया के हर शहर से यहां लाते है परवरिश करते है और शादी करके उसे एक जीवन देते है,

(ये रहे सरकारी पेपर, जिससे ये कानूनी मान्यता के अनुसार सही है।)

निशांत :- और इसके लिए आपको क्या देना पड़ेगा ?

दयानंद :- वो जो तुम लड़की पसंद करोगे उस पर है।

निशांत :- ठीक है तो फिर कहिये क्या करना है।

(दयानंद एक फ़ाइल निशांत को देते हुए)

दयानंद :- इसमे सभी बच्चियो का डेटा है, पसंद करलो।

निशांत :- क्या में इसे घर पे माँ को भी दिखा सकता हूँ ? में कल आपको बताता हूं और ये फ़ाइल भी वापस कर दूंगा।

दयानंद :- ठीक है, और सबकी कीमत भी उसीके डेटा के साथ लिखी है, जो भी चुनो मुजे बता देना।

निशांत :- ठीक है दयानंदजी मे चलता हूं,

निशांत :- माँ तुम्हारी बात में समज रहा हूँ, लेकिन इसके अलावा और कोई रास्ता भी तो नहीं हमारेपास।

माँ :- बेटा लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं के हम पैसे देकर बहूँ ले आये।

निशांत :- माँ लेकिन आप ही बताओ कोन बाप होगा जो मुज जैसे छतीश वर्षीय लड़के के साथ अपनी बेटी देगा, अरे मुजे तो कोई अपनी डिवोर्शी बेटी भी नहीं दे रहा आप तो जानते हो।

और वेसे भी आप अब सत्तर की होने को आई कब तक काम करोगी, ये सभी चीजो पर गौर करने के बाद ही ये फैसला लिया है मैंने।

माँ :- ठीक है बेटा फिर तू ही चुन लें देख के रहना तो आखिर तुजे ही है।

(माँ खड़े होकर रूम में चली जाती है)

निशांत होल में बैठे फाइल को देखने लगता है, और सोच में गुम वही देर तक बैठा रहता है।

(निशांत के सरल आदमी जो अपनी माँ की खुशियों को पूरा करने इतनी जल्दी बड़ा हो गया था कि आज जब उम्र का तकाजा मिला तो ऐसा मिला कि जैसे फूल बिना माली के बड़ा हूँआ हो,

पापा के बहोत जल्द देहांत हो जानेके बाद 13 साल के निशांत के पास बस एक माँ थी जो उसके जीने का सहारा थी, घर परिवार में ज्यादा लोग थे नहीं और नाही निशांत की कोइ बहन थी, बिन बाप के साये में बड़ा हूँआ निशांत समाज से अपनी ही समझ से लड़ा )

समाज के कई लोगो ने कहा माँ को वृद्धआश्रम में छोड़ ने के लिए लेकिन निशांत नहीं माना और यही कारण था कि बिन बाप के इस घर के सदशयो को समाज ने इतनी इज्जत नहीं दी, मा भी एक गाव की पालने वालू औरत थी जो ज्यादा समाज के बीच कभी रही नहीं)

(निशांत अपने घर को चलाने के लिए पढ़ने के साथ साथ काम भी करने लगा और समाज से ये घर दूर होता गया,

अपनी पढ़ाई खत्म करके निशांत जब एक इंटरनेशनल कंपनी में 40000 /- के पगार पर काम मिला तो घर अब फिर से चार पहियो पे दौड़ने लगा, लेकिन अब निशांत की उम्र 27 की हो चली थी,

और माँ को उसकी शादी की चिंता थी, उसके निवारन के लिए जब समाज की तरफ नज़र गयी तो समाज ने वो नज़र फेर ली, और लड़की ढूंढते ढूढते 8 साल निकल गए)

आज निशांत का 35 साल खत्म हूँआ था और वो अब 36 साल का हो चला था, 

तभी निशांत के दोस्त से जानकारी मिली के हैदराबाद के एक गाँव मे एक ऐसी संस्था है जो शादी के लिए सुकन्या देती है, बस वह फॉर्म और फीस जमा करनी है अपनी पसंदकी लड़की चुननी है और फिर बस शादी मुबारक हो)

 अगली कहानी आगे के दृष्टांत में...


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