रिम झिम गिरे सावन
रिम झिम गिरे सावन
सुबह से रह रह कर बरसात हो रही थी, कभी तेज झड़ी तो कभी पानी की बरसती टप टप करती बूँदे, चारों तरफ सुहावना मौसम हो रहा था दोपहर होने को आई ; मैं बालकनी में झूले पर हाथ में भुट्टा लिए बैठी गुनगुनाते हुए शेखर के बाजार से आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। आज हमारी शादी की पहली सालगिरह जो थी, हमने पहले से ही तय कर लिया था की,शेखर और मैं अपनी सालगिरह शहर से बाहर के पहाड़ी झरने हरियाली पॉइंट' पर जाकर ही सेलिब्रेट करेंगे ;
शेखर के आते ही हम दोनों अपनी कार में बैठकर पिकनिक के लिए निकल पड़े।
रास्ते में शेखर ने उसका मनपसंद गाना, "रिम झिम के गीत सावन गाए... भीगी भीगी रातों में"... म्यूजिक सिस्टम पर लगा दिया, हम दोनों ही बड़े रोमेंटिक मूड में गाने और मौसम का आनंद ले रहे थे ,तभी गुनगुनाते हुए शेखर बोले, प्रिया तुम्हें याद है ना अपनी पहली मुलाकात!!
हूँ हूँ... क्यों नहीं; मैं चहकती हुई बोल उठी थी,
मुझे अच्छी तरह याद है, कॉलेज के आखिरी साल में हम सभी क्लासमेट्स ने इसी पहाड़ी झरने पर पिकनिक का प्रोग्राम बनाया था और. ..तब तक मैं तुम्हें कोई भाव नहीं देती थी मैं शरारत से मुस्कुराई थी..
हाँ मैडम ,फिर भी हम आपकी एक नज़र का इंतजार करते थे, लेकिन तुम तो हमें देखती भी नहीं थी, तुम्हारा ध्यान तो उस आकाश पर ही ज्यादा रहता ,क्योंकि उसकी आवाज अच्छी जो थी ,सो सभी लड़कियाँ उसके ही आसपास ही मंडराती रहती थी और वह भी गीतों की महफ़िल सजा कर सबका ध्यान अपनी और खींच लेता था, हँसते हुए शेखर ने कहा !
तुम्हें जलन नहीं होती थी ? मैंने पूछा, अरे क्यों नहीं होती थी! खासकर जब तुम उसे ज्यादा अटेंशन देती थी..तब होती थी... शेखर हँसते हुए बोले !!
मैं अब उन बीते हुए लम्हों में खोने लगी, जब हम सभी काॅलेज से पिकनिक के लिए इसी पहाड़ी झरने पर आए थे, माँ पापा ने जाने की अनुमति तो दी, लेकिन इस शर्त पर की शाम होने से पहले घर पर आ जाऊंगी ,
क्लास के सभी स्टूडेंट्स झरने पर पहुँच कर बहुत ही खुश थे सुहावना मौसम भी साथ दे रहा था, सावन की झड़ी कभी बरस जाती तो कभी हल्की सी बूंदा बांदी, सभी सहेलियाँ और दूसरे स्टूडेंट्स हरियाली पॉइंट पर बने छतरीनुमा शेड में बैठे गरमा गरम भुट्टे के साथ आकाश के सुरीले गीतों का मजा ले रहे थे, और मैं तो मंत्रमुग्ध सी उसके गानों में खो सी गई थी..
तभी सबने झरने के पास जाकर घूमने का तय किया; आसपास हरियाली के कारण काफी फिसलन भी हो रही थी, हम बड़े सम्हल सम्हल कर झरने के पास घूमने लगे ! हम सभी प्रकृति के सुंदर नजारों के साथ ऊँचाई से गिरते झरने से निकली ध्वनि को सुनकर रोमांचित हो उठे,तभी चलते चलते पैरों के नीचे का पत्थर फिसलने से मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं झरने की और फिसलने लगी, लेकिन पलक झपकते ही किसी मजबूत हाथ ने मेरा हाथ थाम लिया था, और किसी तरह मुझे गिरते झरने की और जाने से बचा लिया ; मैं मौत को सामने देख कर बुरी तरह डर गई थी, सबका मूड ऑफ हो गया था, शेखर मुझे सम्हाल कर हमारी बस तक लेकर आए ; दूसरे दिन काॅलेज में सभी शेखर की हिम्मत की तारीफ़ कर रहे थे, मैं भी घबराहट में कल शेखर को थैंक्यू कहना भूल गई थी। आज जब मैंने उसे कल की घटना के लिए थैंक्यू कहा तो बड़ी ही चित्ताकर्षक मुस्कान के साथ उसने कहा, अरे मैं तुम्हारे किसी काम आ सका ये तो मेरी खुशनसीबी है, मैंने पहली बार शेखर को ध्यान से देखा था;
आकर्षक व्यक्तित्व, बोलती सी आँखें, साँवले चेहरे को और भी सलोना बना रही थी, वह झेंप ही तो गई थी और फिर तो बातों मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा!
कॉलेज से एम बी ए की डिग्री लेकर जब दोनों निकले थे तब दोनों ने एक दूसरे से वादा लिया जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं हो जाए तब तक विवाह नहीं करेंगे।
हमारी प्रीत भरी मुलाकातें होती रही ; इसी बीच शेखर को एक कंपनी से बहुत ही अच्छा ऑफर मिल गया, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था ,कुछ ही समय बाद वह अपने पापा-मम्मी और छोटी बहन राशि के साथ हमारे घर आए थे और मेरा हाथ मांग लिया ; मैं भी अपने माँ पापा की अकेली ही सन्तान थी सो मेरी खुशी में ही उनकी खुशी थी और शेखर के सम्भ्रांत परिवार और शेखर को देख कर उन्हें मेरी पसंद पर कोई संदेह नहीं था सो अपनी रजामंदी दे दी थी।
शादी के पवित्र बंधन में बंधने के बाद मेरी भी अच्छी जॉब लग गई थी और आज हमारी पहली सालगिरह थी , हम उसी प्यारी सी जगह पर जा रहे थे जहाँ हमारे प्रेम के प्रथम अंकुर फूटे थे और हमें प्रणय बंधन में बांध दिया।
रिम झिम गिरे सावन...शेखर गुनगुनाते हुए मस्ती में कार चला रहे थे और मैं शेखर पर से अपनी नजरें हटा ही नहीं पा रही थी|

