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Ashu Kapoor

Inspirational

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Ashu Kapoor

Inspirational

रिक्शा वाला

रिक्शा वाला

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धूप से संवलाया गोरा रंग, भूरी आंखें और आंखों के नीचे पड़े हल्के, सूखे होंठ, पिचके हुए गाल, सर पर बंधा बड़ा सा साफा--- जिसका एक सिरा आगे की ओर लटका हुआ,

बार-बार माथे पर छलक रही पसीने की बूंदों को साफ करने के लिए वह उसका प्रयोग कर लिया करता।

वो एक गरीब मजलूम रिक्शावाला था, अक्सर स्कूल के बाहर सवारियों के इंतजार में खड़ा मिलता।

छुट्टी के समय बाहर निकलते ही--- आवाज लगाता---

 " आइए मैडम जी!

पर मैं, उसको यह कहकर आगे बढ़ जाती कि,

मैं तो ई रिक्शा में ही जाऊंगी, तुम धीरे-धीरे चलोगे, मुझे देर हो जाएगी। रोज यही बोल कर मैं आगे बढ़ जाती और वह चुपचाप वही खड़ा रहता। एक दिन--- छुट्टी के बाद-- जब मैं स्कूल से बाहर आई तो उसे छोड़कर कोई रिक्शा नहीं था, मरती क्या ना करती?? घर तो जाना ही था,

उसी के पास गई और उसे चलने के लिए बोला!

वह खुशी- खुशी तैयार हो गया, मैं रिक्शा पर बैठी और घर की ओर चल दी। घर प

हुंच कर बैग पटका और फ्रेश होने वॉशरूम में गई ही थी कि घंटी बजी।

दरवाजा खोलते ही देखा--- वही रिक्शावाला गार्ड के साथ खड़ा है--- मेरा लंच- बैग लेकर।

मैडम, आप यह मेरे रिक्शा में ही भूल आई थी। 

बैग देखते ही, मेरे तो होश उड़ गए! अगर आज यह बैग ना मिलता तो क्या होता??इसकी कल्पना से ही-- रुकने लगी, बैग में उसी दिन हुए प्री बोर्ड के पेपर थे, अगर खो जाते तो क्या बनता???

मैंने उसे दिल से धन्यवाद दिया और कुछ रुपए देने चाहे पर उसने साफ इंकार कर दिया और हाथ जोड़ कर चला गया।

और मैं सोचने लगी कि हम लोगों को उनके पहनावे से जांच करते हैं और बिना सोचे समझे उनके बारे में धारणा बना लेते हैं। घटना के बाद मैंने अपने मन में यह निश्चय कर लिया कि बिना सोचे समझे किसी के प्रति कोई गलत धारणा नहीं बनाऊंगी, कोई शख्स गरीब है तो क्या??? वह भी ईमानदार हो सकता है और कपड़ों के आधार पर तो किसी के जमीर का आकलन कभी नहीं किया जा सकता।


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