STORYMIRROR

Ashu Kapoor

Others

4.5  

Ashu Kapoor

Others

चलती-फिरती कहानियाँ (लाइव स्टो

चलती-फिरती कहानियाँ (लाइव स्टो

2 mins
320



आधी रात को चेहरे पर पानी की बूंदे महसूस कर,एकाएक सुभागी की आंखें खुल गई---- काले बादलों से भरा आसमान साफ दिखाई दे रहा था--- चौंक कर बिछावन से उठ बैठी----- उसकी छोटी सी झोपड़ी का छप्पर तेज आंधियां उड़ा कर ले जा चुकी थी। 

फटी - फटी आंखों से आसमान को निहारती--- सुभागी स्तब्ध बैठी थी,कि, बेटे के रोने की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई----- जल्दी से बेटे को अपनी छाती से लगाकर बाहर पड़ोसी के पक्के मकान की छत के नीचे शरण ली।

सारी रात मां- बेटे ने आंखों ही आंखों में काट दी।

गत वर्ष, सुभागी का पति राम चरण शहर में मजदूरी करने गया था और एक दिन एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई,तब से सुभागी---- गांव भर में मजदूरी करती हुई, अपना जीवन यापन कर रही थी। कभी किसी के घर में काम कर लिया, किसी का गेहूं पीस दिया, किसी का बच्चा खिला दिया,

किसी के खेत की में निराई गुड़ाई कर ली--- बस

इसी तरह मेहनत करके अपना और अपने बेटे का पेट पाल रही थी और अपना जीवन बिता रही थी--- रोज कोई ना कोई मुसीबत आई ही रहती थी और आज तो उसका एकमात्र सहारा---

उसकी झोपड़ी ही टूट गई थी, उसके सर से छत हट गई थी, भगवान को भी उस पर दया नहीं आई--- सोचते- सोचते सुभागी एकदम से बिलख पड़ी---" हे भगवान! और क्या-क्या देखना बाकी रह गया है जीवन में???

अब क्या होगा????

सोचते सोचते सुभागी के मन में हजारों शंकाएं फन उठा रही थी।गालों पर आंसुओं की लकीरें सूख चुकी थी---अचानक बेटे ने उसके गालों पर प्यार से हाथ फिर कर कहा---" रोती क्यों हो मां ???

 "जब मैं बहुत बड़ा हो जाऊंगा---- तुम्हारे लिए एक बड़ा सा घर बनाऊंगा।"

 बेटे की बात सुनकर--- सुभागी की आंखों में सपने झिलमिलाने लगे--- आशा की किरणों से उसका चेहरा जगमगा गया और दिल में घर की चाह बलवती होने लगी।


  


Rate this content
Log in