शून्य से आगे
शून्य से आगे


60 वर्षीय मीना अध्यापिका के पद से रिटायर होकर अपने बेटे आदित्य के पास उदयपुर आई थी।
ग्रीन एवेन्यू अपार्टमेंट के नाइंथ फ्लोर की बालकनी में बैठी--- शून्य में निहारती---- कुछ सोच रही थी--- गुजरे हुए जीवन के बारे में सोचते हुए-- कुछ निराश दिखाई दे रही थी--- सुबह 5:00 बजे से उसकी व्यस्त दिनचर्या का आगाज रात 12:00 बजे ही अंजाम तक पहुंचता था---
सेवानिवृत्त होने के पश्चात एक खालीपन उसकी जिंदगी में पसर गया था---- बहुत बड़ा शून्य---
जीवन -मित्र असमय ही उनसे अपना हाथ छुड़ाकर परम तत्व में विलीन हो चुका था और बच्चे बड़े होकर अपनी अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ चुके थे, उनके लाइफस्टाइल में मैं कहीं भी फिट नहीं बैठती थी।
सोचते सोचते उसके दिमाग की नसें फटने लगी थी---- क्या रिटायरमेंट का अर्थ है----चुप- चाप बैठ कर मौत का इंतजार करो???क्या उसे भी यही करना पड़ेगा???
बालकनी में बैठी मीना,यह सोच ही रही थी कि, बहू--- देविका---चाय लेकर आई ,
"&
nbsp; मम्मा! चुपचाप बैठे क्या सोच रहे हो???"
" मीना--- कुछ नहीं बेटा! बस यही--- आगे क्या होगा? लगता है मेरे सारे काम खत्म हो गए--- करने को कुछ नहीं बचा"
देविका---- "मम्मा! आपको तो खुश होना चाहिए--- आपके जीवन की दूसरी पारी की शुरुआत हो रही है--- अब आप वह सभी काम करिए---- जो आप व्यस्तता के चलते नहीं कर पा रही थी।"
देविका ने उन्हें--- एक खूबसूरत सी डायरी और पैन थमाया, उनके फोन पर स्टोरी मिरर डाउनलोड कर उनका अकाउंट बनाया और कहा---" अपनी जिंदगी के खट्टे मीठे अनुभवों को शब्दों में ढालकर अपने विचारों को पंख लगा दीजिए। मन से दुष्चिताओं को निकालकर---- अपने मन को खुले आसमान में परवाज भरने दीजिए--- फिर देखिए जिंदगी कितनी खूबसूरत हो जाएगी।" मीना जी का चेहरा खुशी से दमकने लगा। आसमान में शून्य से आगे सपनों का सतरंगी इंद्रधनुष दिखाई देने लगा था