चलती -फिरती कहानियां (भाग-2)
चलती -फिरती कहानियां (भाग-2)


" कृष्णा----- ओ कृष्णा--- कहां मर गया ?
अभी तक सो रहा है ?
सूरज सर पर चढ़ आया---और यह ऐसे लंबी तान कर सो रहा है, जैसे बाप कहीं का थानेदार लगा हो---
मालकिन की कर्कश आवाज कान में पड़ते ही---7 वर्षीय कृष्णा---- एकदम से उठा और कांपते हुए मालकिन के सामने आ खड़ा हुआ---" जी,मालकिन---(घिघियाते हुए स्वर में
कृष्णा ने कहा---- आपने बुलाया।"
" मालकिन के बच्चे! अभी तक पड़ा सो रहा है---- भैंस चराने--- तेरी मां जाएगी??? या तेरा बाप ऊपर से उतरकर आएगा ? मालकिन की गालियां सुनते ही कृष्णा थरथर कांपने लगा, यह कंपन मालकिन की गालियों की वजह से नहीं भैंस की वजह से था जिसके बड़े-बड़े सींगो से उसे बहुत डर लगता था--- बेचारा करता ही क्या???
उससे और उसकी मां को मालकिन ने बंधुआ मजदूर बना रखा था--- दो वक्त के रूखे सूखे खाने के बदले-- मां बेटा स
ारा दिन मालकिन की नौकरी बजाते--- और कोई चारा भी नहीं था।
बुझे मनसे कृष्णा भैंस को चराने जंगल की ओर निकल पड़ा---
छोटे से बाल मन में सोच की बड़ी-बड़ी लहरियां उमड़ रही थी--- आखिर ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी कब तक जिएंगे।
जब मैं बड़ा हो जाऊंगा---खूब काम करूंगा--- ढेर सारे पैसे कमाऊंगा,मां को रानी बना कर रखूंगा----
यही बातें दिल में सोचता सोचता वह भैंस के पीछे पीछे चलता जा रहा था कि अचानक नजर जमीन से टकराई--- मिट्टी में कुछ चमक रहा था--- दौड़ कर दोनों हाथों से मिट्टी हटाई--- एक ₹10 का सिक्का चमक रहा था---
सिक्का उठाकर उसने आकाश की ओर देखा, मानों ईश्वर को धन्यवाद दे रहा हो और सिक्का मुट्ठी में दबा लिया।
उस पर उसके चेहरे पर आई,उस खुशी की लहर ने
दिल की सारी मालीनता को धो डाला और वह खुशी-खुशी भैंस के पीछे पीछे चल पड़ा।