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रीति

रीति

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पैतीसवें जन्मदिन पर पापा के साथ मंदिर से वापस आते ही उसने पापा को चाय का कप पकड़ाया तो पापा थोड़े उदास स्वर में बोल उठे, ”बेटा, अगर तेरी मां जिन्दा होती तो अभी तक मैं शायद दो प्यारे बच्चों का नाना बन गया होता।”
“क्या पापा,आप भी कैसी बातें करते हैं? मां भी होती तो भी मैं आप दोनों को अकेले छोड़कर कहीं नहीं जाती।”
“ऐसा नहीं होता बेटा सबको अपना परिवार बनाना होता है, यही समाज़ की रीति है।”
“पर मेरा परिवार तो आप से ही है पापा। अगर कोई लड़का ऐसा मिलेगा जो मुझे मेरे परिवार के साथ अपनायेगा तो मुझे शादी से कोई प्रोब्लम नहीं हैं।”
“अच्छा, तो कैसे मिलेगा ऐसा लड़का?”
“क्यों ना हम एक एड दें, एक सुयोग्य वर की तलाश है एक सुन्दर कन्या के लिये, जो उसके साथ उसके स्मार्ट हैडंसम पापा को भी अपना सके।”
“कोई तो होगा राजकुमार जो मुझे मेरे पापा के साथ अपना सके और अगर कोई नहीं भी है तो क्या हुआ, आपने मुझे इतना सक्षम बनाया है जो इस समाज रूपी रणभूमी में अकेले ही डटी रह सकती हूँ।”


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