रामू
रामू
रामू सबको आवाजें लगा रहा था। आओ नाश्ता कर लो, देर हो जाएगी। जल्दी आकर नाश्ता कर लो।
लेकिन कोई भी, आज ! उसका जवाब का नहीं दे रही थी। कोई किताब पकड़े याद कर रही थी। कोई एक दूसरे को इंर्पोटेंट विषय में पूछ रही थी। कोई इधर-उधर घूम रही थी और कोई चिंता में कि आज पेपर कैसा होगा किसी को भूख नहीं थी।
लेकिन रामू फिर भी सबको आवाजें लगाए जा रहा था। नाश्ता कर लो कुड़ियों नाश्ता कर लो।
रामू सीधा-साधा सा गाँव का लड़का था। हॉस्टल की रसोई घर में खाना बनाता था।
लड़कियों जैसा ही व्यवहार करता था। सबके साथ घुल मिल जाता था। मां के खाने का स्वाद था उसके खाने में बहुत अच्छा खाना बनाता था। और उसी प्यार से सब को खिलाता था। हॉस्टल में सब खाने पर टूट पड़ती थी। लेकिन आज पेपर के डर से किसी को भूख नही थी। डायनिंग हॉल में कोई लड़की नहीं आ रही थी।
प्रिया भी को भी भूख नहीं थी। वह भी सोच रही थी कि पेपर से आकर कर खा लेगी।
पेपर के दिन भी मन का हाल और पहले पेपर होने से पहले तक का जो डर होता है। उसमें भूख प्यास भूल जाती है।
अजीब ही बना रहता है।मन लगता नही।पता नहीं क्या ?
होगा !
वह विद्यार्थी जिनको लगता है कि सब भूल जाएगा उनकी दिशा और भी ज्यादा खराब होती हैं।पेपर की इसी चिंता में किसी को आज भूख नहीं थी।
पहला पेपर पता नहीं क्या होग ? कैसा होगा ! तभी प्रिया अपनी सारी तैयारी करके निकली।नीचे डायनिंग हॉल में सारी लड़कियां एकत्रित हो रही थी अगर खाना नहीं खाना तो चाय पी लो। रामू ने सबसे कहाँ, उसे आज मम्मी की याद आ रही थी। मम्मी कैसे पहले पेपर के दिन तैयारी करके रखती थी। दही की कटोरी, प्रासाद इसी उधेड़बुन में हॉस्टल के कमरे से कॉलेज जाने को निकली। कॉलेज जाने का रास्ता मैस के आगे से होकर निकलता था।
रामू ने एक -एक लड़की को कहा," नाश्ता कर लो गिर जाओगी वरना भूख से चक्कर खाकर"। सबने थोड़ा- बहुत नाश्ता किया और पेपर देने के लिए कॉलेज की तरफ चल पड़ी। रामू आगे दही -चीनी की कटोरी ले कर खड़ा था उसे देख कर ऐसा लगा जैसे हमारी मां खड़ी हो उसने सभी के हाथ पर चम्मच से थोड़ा-थोड़ा दही चीनी का प्रासाद दिया। जाओ अब सबका पेपर अच्छा होगा।उसका वो रूप देख के उसके प्रति मां जैसी श्रद्धा उमड़ आई थी।
