पुनीत कार्य

पुनीत कार्य

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समय बिता तो उनकी संख्या दस बारह हो गई। उन्हें सम्भालना मुश्किल सा लगने लगा।

एक दिन विचार किया कि क्यों न हम इन्हे चिड़ियाघर रख आए। चिड़ियों को चिड़िया घर दे आए। जब उन्हें देकर वापस जाने लगे तो पत्नी ने उन्हें उनके दिए नाम से पुकारा तो वे अपने पंख फड़फड़ाने लगे। ऐसा लग रहा था मानों बच्चे अपनी माँ को पुकार रहे हो। आँखों में आँसू की धारा बह निकली ,मन कह रहा था की वापस घर ले चले।तब महसूस हुआ की अपनों से दूर होने की टीस कैसी होती है।चिड़ियों को छोड़ते समय की उठी टीस से आँखों में आंसू गिरने लगे।

घर  पर आये तो उन रंग बिरंगी चिड़ियों की गौरेया दोस्त बन गई थी वो उन्हें न पाकर शोर करने लगी।गोरेया के लिए दाना -पानी और खोके का घर बनाकार उसका भी नाम रखकर उसे पुकारने लगे मानों वो भी हमारे घर की सदस्य हो।  एक अलग ही प्रकार की अनुभूति महसूस हुई मानो  कोई पुनीत कार्य किया हो। 


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