पत्थर या प्यार
पत्थर या प्यार
कहानी है एक मुस्लिम परिवार की जो लॉक डॉन के दौरान अपनी शर्मिंदगी और मुसीबत को झेलता है एहसास होता है क्या कर डाला ( फोन की घंटी बजती है) और बहन फोन उठाती हैं।
बहन: वालेकुम अस्सलाम सब खैरियत है?
भाईजान :भाई नहीं आपा कबीर को चोट लग गई है और मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं उसे कहां लेकर जाऊँ ?
बहन :इसमें सोचने वाली क्या बात है भाई जान आप उसे जल्दी से अस्पताल लेकर चाहिए।
भाई :आपा अभी पिछले ही हफ्ते हमारे मोहल्ले के कुछ लोगों ने इलाज कर रहे डॉक्टरों को और उनके अस्पताल पर हमला बोल दिया था यही सोच सोच कर शर्मिंदा हो रहा हूं कि किस मुंह से कबीर को वहां लेकर जाऊँ।
बहन : क्या भाई जान बहुत ही वाहियात हरकत की है आप जैसे चंद लोगों की ऐसी हरकत की वजह से पूरी कौम बदनाम हो जाती है। अरे डॉक्टर तो अल्लाह ताला के भेजे हुए वह फरिश्ते हैं जो इस मुसीबत की घड़ी में हम सब की मदद कर रहे हैं, और हमें तो उन्हें दिल से सलाम करना चाहिए। आप लोगों ने यह सब कर डाला खैर वह अल्लाह ताला के भेजे हुए फरिश्ते हैं उनकी सोच आप सी छोटी नहीं है तभी तो इस वाहियात हरकत के बावजूद भी वह अपने फर्ज़ से पीछे नहीं हट रहे हैं। अब सोचने का टाइम नहीं है आप जल्दी से कबीर को लेकर चाहिए वह आपकी हर मुमकिन मदद करेंगे।
भाई :जी आपा।