पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं
मेरी पसंदीदा मिठाई (रबड़ी ) को पत्र, जो कभी भेज न सकी।
मेरी प्यारी रबड़ी
आपको यह पत्र मैंने तब लिखा था जब आप पहली बार मेरी पर विराजी थीं किन्तु क्या करूँ बहुत छोटी थी मैं
कहीं लिफाफा ही नहीं मिला तो कभी लैटर बाक्स और इसीलिए मैं अपनी परमप्रिय अर्थात् आपकी यह चिट्ठी साथ ही रखती हूँ आपको पता है ?
आप के दीदार को मेरा मतलब है कि आपके स्वाद को तरसती है जिव्हा।आप से भेंट बहुत कम ही हो पाती है। आजकल आप ज्यादातर मौकों पर और शादी समारोहों में भी आप कम ही पधारती हैं। मुझे तो आप जानती ही हो कितना प्रेम है आप से। आपकी बात करते ही, आपका नाम सुनते ही मुंह में पानी क्या आता है पानी से मुंह भर ही जाता है।
मेरी प्रिया लच्छे दार रबड़ी रानी, आपकी याद में, आपकी विरह वेदना में कई बार तो मेरी ऐसी हालत हो जाती है कि बेचैनी में फड़फड़ाहट बढ़ जाती है कारण आपका कुछ नखरैलाअंदाज, कुछ अलग हटकर मिजाज़ कि– “रबड़ी हर जगह नहीं मिला करती “
परन्तु मेरे जैसा मिठाइयों को मुंह न लगाने वाला नकचढ़ा इंसान आपके लच्छे दार स्वाद के प्रेम जाल में फंस कर आपका ऐसा दीवाना हो गया है कि आपके खूबसूरत लच्छों में उलझ गया मेरा दिल।
हर हलवाई हर मिठाई की दुकान पर आपके दर्शन न हो पाने के कारण मेरा आपके प्रति आकर्षण और अधिक बढ़ जाता है और आखिरकार शहर की गली- गली भटकते हुए आपको ढूंढ ही लेते हैं। फिर तो चट करके ही दम लेते हैं कि पता नहीं दोबारा कब आमना-सामना हो
जैसा कि अभी कुछ दिन पहले हुआ था अपना मिलन एक विवाह समारोह में।
फिर कब मिलोगी ?
मिलो तो तुम्हें यह प्रेम पत्र दूं
अपने पुनर्मिलन की आस लिए।
तुम्हारी चाहने वाली
रंजना माथुर।