पता नहीं क्यूँ

पता नहीं क्यूँ

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आज 18 मार्च सन 1968 है। मैं 38 साल की हो चुकी हूँ। आज पहली बार सात समुन्द्र पार जा रही हूँ। लंदन ! मेरे बड़े भाई की बेटी की ग्रेजुएशन सेरेमनी है। एयर पोर्ट पर चार घंटे और बिताने हैं। बस युही एक बार फिर पर्स खोल कर कागज़ात देखने लगी और हाथ पहुँच गया अंदर वाली जेब में। न जाने क्यूँ सालों से मेने वो छोटा सा पेज संभाल कर रखा है। अब तो यह पीला भी पड़ गया पर कई यादें कभी पिली नहीं पड़ती।

छोटा सा खूबसूरत सा क़स्बा और हमारी बड़ी सी हवेली। राजपूतानी शान, नौकर, चाकर क्या नहीं था हमारे पास ? आज भी सब कुछ है पर मुझे सब खाली खाली लगता है ! मेरे दादा मेरे पिता आज़ादी चाहते थे पर साथ ही अंग्रेजी एजुकेशन के भी कायल थे। मेरे भाई को पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया गया था और मेरे लिए घर में पढ़ने का इंतज़ाम किया गया था

मिसेज़ जेम्स मुझे इंग्लिश लिटरेचर पढ़ाती थे। शायद कोई ही किताब होगी हमारी लाइब्ररी में जो मैंने ना पढ़ी हो। मै और मिसेज़ जेम्स घंटो बैठे बातें करते। कई बार तो वो मेरे पियानो लेसंस के समय भी मेरे पास ही बैठी रहती। मेरे माँ कि उम्र कि रही होगी पर जब मुझे बाल रूम डांस सिखाती थी तो वो मुझे लगता था मुझसे भी छोटी हो। हम दोनों एक दूसरे के बहुत करीब थे। मेरी कविताएं पढ़ते हुए वह कभी हंसती कभी भावुक हो जाती और कभी मुझे छेड़ने लगती कि मैने वह कविता किसके लिए लिखी ? माँ हम दोनों को देख कर मुस्कुराती रहती।

मिस्टर जेम्स मेरे पिता के बहुत प्यारे दोस्त भी थे और हमारे फैमिली डॉक्टर भी। उनका हमारे यहाँ आना जाना लगा रहता था। बस बार बार एक ही बात लेकर बैठ जाते। भारत को आज़ादी मिलने वाली है फिर उन्हें भी वापिस इंग्लैंड जाना होगा। असल मे वो भारत से वापिस जाना ही नहीं चाहते थे। उनका दिल तो भारत में ही बस्ता था। मिसेज़ जेम्स कई बार मज़ाक मज़ाक में कहती की वो देवयानी यानि मुझे अपने साथ ही इंग्लैंड ले जाएगी नहीं तो उनका दिल वहाँ भी नहीं लगेगा और मेरे दादा उन्हें दिलासा देते हुए कहते की वो मुझे इंग्लैंड हायर स्टडीज के लिए भेजेगे तो उनका मुझसे मिलना मुमकिन हो जायगा। लेकिन कल क्या होगा कोई कैसे जाने ?

मेरी सबसे छोटी बुआ हमारे घर आई थे। उनके पाँव भारी थे। कुछ महीने हमारे यहाँ ही रहना था घर में सब बहुत खुश थे और मेरे ख़ुशी का तो कोई ठीकाना ही नहीं था। सारा दिन बुआ के आगे पीछे घूमती रहती।

होली का महीना था हमारे यहाँ खूब होलीमनाई जाती थी । मेले लगते थे झांकिआ निकलती थी, घर घर पकवान बनते थे। उस दिन बड़ा मेला था सारे नौकरो चाकरों को छुट्टी दे दी गई थी। हम, लॉन मेंबैठे बातें कर रहे थे कि सन्देश आयाकि गाव में रिश्तेदारी में मेरे चाचा के बेटे की मौत हो गई कुछ बात और भी थे जो मुझे और बुआ को नहीं बताई गई। फटाफट तयारी कर ली गई और दादा मेरे पिता ड्राईवर और रमिया काकी गाव के लिए निकल गए। में और बुआ रघु काका के साथ घर पर थे। एक खबर ऐसी और दूसरा घर पर कोई नहीं दिल बहुत घबरा रहा था। दुपहर को रघु काका कि तबियत खराब हो गई।

आखिर किसने कहा था उन्हें तरबूज़ खा कर पानी पीने को ? पहले सर दर्द हुआ फिर उलटिया और फिर बुखार। मैने फ़ोन कर जेम्स अंकल को बुला लिया। उन्होंने रघु काका को दवाई दे कर आराम करने को कहा।

शाम होने को आई थी मौसम भी खराब हो रहा था। पहाड़ी मौसम का कुछ पता नहीं होता। पता नहीं कहाँ से बारिश आ जाती है

इतने में फ़ोन बजा पिता जी का फ़ोन था। काफी परेशांन थे। चाचा के बेटे का कतल हुआ था। पिता जी ने कहा हो सकता है वो रात को बहुत देर से आयें या शायद अगले दिन ही पहुँच पाये। उन्हें मेरी और बुआ कि बहुत चिंता थे। मेने उन्हें रघु काका के बारे में कुछ नहीं बताया। मैं उन्हें और परेशान नहीं करना चाहती थी। मैंने उन्हें कह दिया कि घर पर सब ठीक ठाक है पिता जी ने कहा था कि हो सके तो रघु काका को भेज कर कुलसुम और मेहरू को हवेली बुला ले उन्हें किसी और दिन छुट्टी दे दी जाएगी।

इतने में बारिश और तेज़ हो गई और बिजली कड़कने लगी। पिताजी ने कहा धयान रखना और फ़ोन रख दिया।

मौसम और खराब होने लगया। अब तो हवा भी बहुत तेज़ चलने लगी थी । ऐसे मौसम में अँधेरा भी जल्दी हो जाताहै । रघु काका को फिर बुखार चढ़ गया। उनको दवाई दे कर मैंने सोने को कह दिया और खुद बुआ के कमरे में बुआ के पास चली गई। हवा बहुत तेज़ चल रही थी और फिर किसी पेड़ के गिरने कि आवाज़ आयी और साथ ही लाइट चली गई। बुआ एक दम घबरा कर चीख उठी में भी डर गई। पर हिम्मत कर मैने लालटेन जला दी और फिर सभी कमरो में रखी लालटेने और मोबत्तीय जलाने चल पड़ी. अंधेरे से मुझे बहुत डर लगता था। जब में वापिस बुआ के पास आई तो वो बहुत घबराई हुई थी उन्होंने मुझे कहा कि फ़ोन करके जेम्स अंकल को बुला लो। उन्हें अपनी तबियत ठीक नहीं लग रही थी। मैंने फ़ोन घुमाया पर कोई आवाज़ नहीं आई। शायद जब पेड़ गिरा तभी बिजली कि तारो के साथ फ़ोन कि तारे भी टूट गई।

बुआ और घबरा गई। रात के दस बज चुके थे और पहाड़ी बारिश कि राते बहुत अँधेरी होतीं है। हमारी हवेली के आस पास कई किलोमीटर्स तक बागीचे और लॉन्स ही थे। मैं आवाज़ देकर किसी को बुला भी नहीं सकती थी रघु काका तो खुद बुखार में तड़फ रहे थे। उन्हें भी मैं क्या कहती ?

बुआ रोने लगी उनके पेट में दर्द हो रहा था, वह कहने लगी अब वो नहीं बचेगी । मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था, सिवाए इसके कि मैं खुद जाकर जेम्स अंकल को बुला लाउँ। मैंने दादा जी का ओवरकोट पहना उनकी पगड़ी पहनी वाकिंग स्टिक उठाई और छोटे रस्ते से जाने कि सोच ली। लड़के के भेष ने कुछ हिम्मत तो बँधाई पर दिल तो लड़की का ही था ना। मुझे डर लग रहा था पर बुआ को कुछ न कहा बस यही कहा अंकल जेम्स को बुलाने जा रही हूँ।

पक्के रस्ते से जाती तो समय बहुत लगता इसीलिए तालाब वाले रास्ते से निकल पड़ी। ऊँचा नीचाँ रास्ता, बांसो के झुरमुटे, हवा की अजीब सी आवाज़े, मेरी तो बस जान निकलती जा रही थी पर बस बुआ का ख्याल हिम्मत बढ़ा रहा था। भूत पिचाश जादू टोना यह सब कहानिया भी मुझे तभी याद आनी थी। हर पत्थर हर पेड़ मुझे मेरे तरफ आता भूत पिचाश ही नज़र आ रहा था। भगवान् का नाम लेते हुए किसी तरह अंकल जेम्स के घर पहुँच गई। वहाँ भी अँधेरा ही अँधेरा। अंकल जेम्स कि जीप भी नज़र नहीं आ रही थी मेरा तो दिल ही डूब गया। खिड़की से छन कर आती रौशनी ने कुछ हिम्मत बंधाई। कोल्बेल बजाई पर लाइट तो थी ही नहीं तो कैसे बजती ? मैंने दवाजा खटखटाया और फिर ज़ोर से धक्का दे दिया। दरवाज़ा खुल गया और साथ ही उनके बड़े से डरावने तिब्बितीयन मैस्टिफ के भोंकने कि आवाज़े आने लगी। उसको तो मैं भूल ही गई थी ! मेरा सबसे बड़ा दुश्मन ! हमेशा कि तरह वोह मेरी तरफ दौड़ता हुआ आया और डर के मारे भागते हुए मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी वाल्किंग स्टिक मेरे पगड़ी को उछालित हुई कहाँ गिरी ? हाँ मै गिरी या शायद सम्भली दो बाहों में जिन्होंने मुझे गिरने से पहले थाम लिया। मैंने घबराई आँखों से जब उसका चेहरा देखा तो उसकी नीली आँखों को बस देखती रह गई। समय जैसे थम गया। काश समय वही थम जाता।

इतने में मिसेज़ जेम्स ने मुझे घबराते हुए पूछा,

"देवयानी क्या सबकुछ ठीक ठाक है ?" आखिर मैं इतनी रात को वहाँ अकेली क्यूँ आई ? मैंने फटाफट उन्हें सारी बात बताई। अंकल जेम्स तो घर पर थे ही नहीं इसलिए मिसेज़ जेम्स ने हेनरी को मेरे साथ जाने को कहा। हेनरी बही नीली आँखों वाला, नीली आँखों वाला डॉक्टर। हेनरी ने जल्दी से अस्तबल से घोडा निकाला उसकी काठी कस्सी और छलांग लगा कर घोड़े पर सवार होगया। मिसेज़ जेम्स ने डॉक्टर्स बैग मुझे थमा दिया। घोड़े पर सवार मेरी तरफ आता हुआ हेनरी मुझे राजकुमार नज़र आ रहा था। मेरे पास आकर वो रुका हाथ बढ़ाया, मेरा हाथ थामा और मुझे घोड़े पर बिठा लिया। घोड़े को ऐड लगाई और घोडा हवा से बाते करने लगा। हम इतने करीब थे कि शायद उसे मेरे दिल कि धड़कन भी सुन रही थी। और मेरा दिल कुछ ज़यादा ही धड़क रहा था। जितना काबू करने कि कोशिश करती उतना बेकाबू हो रहा था और हम घर पहुंच गए किसी नाज़ुक से फूल कि तरह हेनरी ने मुझे ज़मीन पर उतारा।

बुआ का दर्द काफी बढ़ चुका था। हेनरी ने उनकी जांच की और मुझे टोवेल्स गरम पानी ना जाने क्या क्या लाने को कह दिया। जो जो हेनरी कहता गया मैं करती गई। हेनरी ने मुझे कहा बुआ को महीनो की कैलकुलेशन में कुछ गलती हो गई हैं। मैं सिर्फ 18 साल की थी, मुझे हेनरी कि बातें समझ ही नहीं आ रही थी और शायद हेनरी को भी यह समझ आ गया और वो हँसने लगा। बुआ की हालत देखकर मुझे घबराहट हो रही थी। मुझे हेनरी पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था कि वो कुछ करता क्यूँ नहीं ? और मैं रोने लगी। पहले तो हेनरी हँसा और फिर मेरे करीब आकर मुझे बाँहों में भर कर कहा सब ठीक हो जाएगा तभी बुआ के चीखने की आवाज़ आई और फिर कुछ देर बाद हेनरी ने मुझे खुश खबरी दी और छोटे से राजकुमार को मेरे हाथों में पकड़ा दिया। रात बीत चुकी थी और अब सब शांत था। करीब 8 बजे सुबह माँ और पिता जी वापिस पहुँच गए। पहले हैरान, फिर खुश और फिर मेरे बहादुरी कि प्रशंसा। इन सब के बीच हेनरी मुझे बस देखता जा रहा था।

इसके बाद हेनरी का हमारे यहाँ आना जाना बढ़ गया। वो घंटो दादा जी के साथ बैठा चैस खेलता और हमेशा हारता। दादाजी जो सबसे हार जाते थे हेनरी को हरा कर बहुत खुश होते। मैं उनके पास बैठी किताबें पड़ती या ग्रामोफ़ोन के रिकॉर्ड्स बदलती य़ा बस युहीं आगे पीछे घूमती रहती। बस मुझे तो हेनरी को देखना होता था। बेचारा शायद हारता भी मेरे ही वजह से था।

मिसेज़ जेम्स का बर्थडे था। उन्हें नरगिस के फूल बहुत अच्छे लगते थे, मैंने ख़ास कर के उनके लिए नरगिस के फूलो का गुलदस्ता बनाया, केक बके किया और फिर ड्राईवर के साथ उनके घर चल दी। कुछ एक और मेहमान भी आए थे। मेरी नज़रे हेनरी को ढूँढ रही थी। और फिर वो मुझे दिखा लॉन में फूलों के पास किसी लड़की से बातें करता। पता नहीं क्यूँ मुझे उसपर गुस्सा आ गया ? तभी वो दोनों मेरी तरफ आए। हेनरी ने उसका नाम मार्गरेट बताया। मैंने दोनों से ठीक से बात भी नहीं की। मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मैंने ड्राईवर को वापिस क्यों भेज दिया ? नहीं तो उसी समय उठ कर वापिस आ जाती। हेनरी मुझसे बात करने कि कोशिश करता और मैं किसी और से बातें करने लग पड़ती। फिर हेनरी को भी गुस्सा आ गया और वो सिर्फ मार्गरेट से बातें करने लगा। अब यह तो मुझसे सहन नहीं हुआ और मैंने मिसेज़ जेम्स को कहा मैं घर वापिस जाना चाहती हूँ। मुझे लगता हैं उन्हें भी कुछ समझ आ गया था वो हंसने लगी और उन्होंने हेनरी को मुझे घर छोड़ आने को कहा।

घर पहुँचने से पहले ही हेनरी ने जीप रोक दी। अपनी उंगली से हौले से मेरे मुंह को ऊपर उठाया और मेरी आँखों में झांकते हुए कहा, "मैं तुम्हे बेइन्तेहाँ प्यार करता हूँ।"

मैंने शरमाकर उसके सीने में अपना मुंह छुपा लिया। हम घर पहुंचे। कुछ ज़यादा ही ख़ुशी का माहौल था। माँ ने हाथों में मिठाई की ट्रे उठाई हुई थी। मुझे देखते ही माँ ने मुझे गले से लगा लिया और फिर पहले मेरे और फिर हेनरी के मुंह में मिठाई ठूंसते हुए हँसते हँसते कहा,

"देवयानी के लिए लड़का पसंद कर लिया। बस अब तो देवयानी की शादी हो जायेगी। " मैं और हेनरी बेबस से एक दूसरे को देखते रहे और फिर हेनरी कब चला गया मुझे पता भी नहीं चला।

घर में खूब ज़ोर शोर से शादी कि तैयारियां शुरू हो गई। मैं क्या करती, चुप चाप सब देखती और सहती रही। कुछ कहने कि हिम्मत नहीं थी। रात को जब सब शांत हो जाता तो चुप चाप रोती। हेनरी कई दिनों से नहीं आया था और फिर एक दिन शाम को वो आया। उदास और बेबस लग रहा था। वो वापिस इंग्लैंड जा रहा था। भारत आज़ाद होने वाला था और कुछ दिनों बाद मिस्टर और मिसेज़ जेम्स भी वापिस जा रहे थे। हेनरी मेरे कमरे में आया और मैं रोने लगी। शायद आखरी बार हेनरी ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और फिर हेनरी ने मुझे वो छोटा सा कागज़ का टुकड़ा दिया जिसमे हेनरी का इंग्लैंड का एड्रेस लिखा हुआ था। हेनरी चला गया, मिस्टर और मिसेज़ जेम्स भी चले गए और यहाँ सब बदल गया।

बहुत धूम धाम से मेरी शादी हुई, विदाई हुई और मैं ससुराल पहुंच गई। सब खुश थे यह सोच कर कि मैं बहुत खुश हूँ पर में क्या कहती ? आज़ादी मिलने वाली थी, पर माहौल बहुत खराब था भयानक सी खबरो की आवाज़े हवाओ में गूंजती रहती। मेरी डोली अभी उतरी ही थी, मुंंह दिखाई भी नहीं हुई थी कि घर में कुछ गहमागहमि होने लगी। घर के मर्द लोग कहीं जाने कि तैयारी करने लगे। मेरे पति से कहा ज रहा था कि वो घर पर ही रुके पर वो भी सभी क साथ निकल गए। पास ही कहीं बवाल हुआ था। कोंग्रेसी परिवार, पॉलिटिक्स में इन्वॉल्व्ड, जाना तो था ही ! मैं तो बस घूँघट में ही बैठी रही और मुझे खबर सुनाई गई,

"पता नहीं किसने गोली चलाई, कहाँ से गोली चली, पर हाँ मेरा सिन्दूर उजड़ गया !"

किसी ने मेरा घूँघट भी नहीं उठाया और मैं भाई और पिता जी के साथ उसी रात वापिस हवेली आ गई हमेशा के लिए...एक विधवा ! समय रुक गया या शायद चलता गया, मुझे नहीं पता।

आज भी मेरी आँखे भर आईं हैं। बोर्डिंग का समय होगया है। बस कुछ घंटो में मैं लंदन पहुँच जाउंगी। मैंने बड़े सहेज कर उस पीले कागज़ के टुकड़े को जिसपर हेनरी का एड्रेस लिखा है फिर अपने पर्स में रख लिया .... पता नहीं क्यों !

2 साल पहले हेनरी, भाई को नैरोबी में मिला था किसी कॉन्फ्रेन्स में। भाई बता रहे थे कि वो लंदन में ही रहता है पर सारी दुनिया में घूमता रहता हैं अकेला पता नहीं क्यो...!


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