पश्चाताप के आँसू
पश्चाताप के आँसू
रमेश ने पंडित जी के पैर छुए और दक्षिणा दी।पंडित जी आशीर्वाद देते हुए बोले-
"बेटा तुमने पूरी श्रद्धा से आज अपनी माँ की तेरहवीं की रस्म को पूरा किया है।वो जहाँ भी होंगी तुम्हें ढेरों आशीर्वाद दे रहीं होंगी।भगवान तुम्हारे जैसा बेटा सबको दे।"
पंडित जी के जाने के बाद रमेश फूट-फूटकर रोने लगा..रह-रहकर उसके कानों में माँ के वो आखिरी शब्द गूँज रहे थे.."बेटा तेरी बहुत याद रही है,हो सके तो एक बार जाना।"
वह अपने आपको कोसने लगा.. "माँ,मुझे पता है तुम मुझसे बिल्कुल खुश नहीं होगी।यही कह रही होगी..भगवान मेरे जैसा बेटा किसी को ना दे।मैंने तुम्हारा भरोसा तोड़ा।तुम हमेशा से यही कहती थी,कि मेरा राजा बेटा मुझे बहुत सुख देगा,मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा।तुम्हारा सहारा बनना तो दूर कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की,कि तुम अकेले कैसे अपना जीवन जी रही हो।पापा के जाने के बाद तुमने दिन रात मेरा ख्याल रखा कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी।मुझे पढ़ा लिखाकर इस काबिल बनाया,ताकि अपने पैरों पर खड़ा हो सकूँ।कितने धूम धाम से मेरी शादी की थी।बहू को घर लाने के लिए कितनी उत्सुक थीं तुम।यही सोचती थीं,कि अब तुम्हारा दुख दर्द बाँटने वाली आ जाएगी।मैं इतना स्वार्थी निकला,कि अपनी पत्नी की खुशी के लिए विदेश चला गया।तुम फिर भी कुछ नहीं बोलीं क्योंकि तुम्हें हमेशा से मेरी खुशियों का ख्याल था।साल भर बाद जब अपने परिवार के साथ आता था,तो तुम कितनी चहक उठती थीं।तुम्हारे चेहरे पे कोई शिकन नहीं होती थी।मैं तो तुम्हें साल भर के खर्चे के पैसे देकर चला जाता था और समझता था,कि मैंने अपनी सारी जिम्मेदारी पूरी कर दी।अपने अंतिम दिनों में तुम्हारी इतनी हालत खराब थी तब भी तुमने मुझे नहीं बताया ताकि मैं परेशान ना हूँ।
माँ तुम बहुत अच्छी थी।मेरी एक आवाज पर दौड़ी चली आती थीं।मुझे छींक भी आती, तो तुम पूरा घर सिर पर उठा लेती थीं।मैं इतना कैसे निर्दयी हो गया,कि ये भी नहीं समझ सका मेरी माँ को भी अकेलापन सताता होगा।कोई दुख तकलीफ होती होगी।माँ मैं कभी अपने को माफ नहीं कर सकता।"रमेश को यूँ बिलखता देख,रीना की आँखे भी भर आईं।पति के कंधे पर हाथ रखकर बोली-"तुम अपने को यूँ न कोसो।तुम अकेले ही नहीं,मैं भी माँ की गुनहगार हूँ।मैंने ही हमेशा तुम्हें विदेश में नौकरी करने को मजबूर किया था।जबकि तुम माँ के पास रहना चाहते थे।"पश्चाताप की अग्नि में जल रहे रमेश ने वृद्धा आश्रम का निर्माण कराया और आजीवन वृद्धों की सेवा करने का संकल्प लिया।