हरि शंकर गोयल

Fantasy Others

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हरि शंकर गोयल

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परियों की दुनिया

परियों की दुनिया

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आज तो साहित्यिक एप पर बड़ी गजब की रौनक छा रही थी। कारण यह था कि उस एप ने आज का विषय रखा था "परियों की दुनिया"। जिधर देखो उधर कोई न कोई परी इठला रही थी। उमंग और उत्साह से भरपूर। सौन्दर्य बिखेरती हुईं, अपना जादू दिखलाती हुईं, सबके सपनों में आकर सबकी ख्वाहिशें पूरी करती हुईं बहुत व्यस्त नजर आ रही थीं। 

सब बड़ी खुश थीं कि कम से कम साहित्यिक एप जी ने तो उनकी महत्ता समझी। वरना तो इस दुनिया में उनके साथ अत्याचार ही होता आया है। मर्द जाति बड़ी निर्दयी, निष्ठुर, उत्पीड़क, दमनकारी, पैशाचिक प्रवृत्ति वाली होती है। नारी कोमल हृदया , भावना प्रधान, संवेदनशील होती हैं। नारी एक परी का रूप ही तो है। वह सबकी इच्छाओं का सम्मान करती है। पूरे परिवार का ध्यान रखती है और मर्द ? वह तो पैदाइशी अत्याचारी है। नारी पर अत्याचार करके उसे सुख मिलता है। उसे स्त्री की भावनाओं का कोई खयाल नहीं है। हर जगह उनसे खिलवाड़ करता है। 


नारी तो पूरे परिवार के लिये जीती है, पूरे परिवार का ध्यान रखती है मगर मर्द तो केवल अपने लिये ही जीता है। केवल अपना ध्यान रखता है। और तो और वह कमाई भी केवल अपने लिये ही करता है। कमाई के लिए वह धूप, गर्मी, सर्दी सहकर पत्थर तोड़ता है, जूते साफ करता है, मजदूरी करता है, खेतों में काम करता है। रिक्शा चलाता है, सवारियाँ ढोता है तो इसमें बड़ी बात क्या है ? यह तो उसका कर्तव्य है। अगर वह अपना कर्तव्य कर रहा है तो वह खुद के लिए जी रहा है। स्त्री अगर अपना कर्तव्य करती है तो वह महान काम कर रही होती है। वह खुद के लिए नहीं, परिवार के लिए जीती है। स्त्री के तो कड़वे वचन भी शहद तुल्य होते हैं जिन्हें सुनाकर स्त्री धन्य धन्य हो जाती है और मर्द उन्हें सुनकर जानवर से इंसान बन जाते हैं। महान कवि कालिदास और तुलसीदास जी अपनी महान पत्नियों की बदौलत ही तो इतने महान साहित्यकार बने थे। इसमें उनके बुद्धि कौशल , ज्ञान , शैली वगैरह का कोई योगदान नहीं था। सारा योगदान तो उनकी पत्नियों का था जिन्होंने "ताना चालीसा" सुना कर उनका जीवन ही बदल दिया। अगर वे ताने नहीं मारतीं तो हम इतने श्रेष्ठ साहित्य से वंचित रह जाते। 


एक महान नारी थीं गांधारी देवी। कहते हैं कि भीष्म के अत्याचारों के कारण उसका विवाह एक अंधे व्यक्ति धृतराष्ट्र से कर दिया गया। गांधार नरेश भीष्म की ताकत के सामने उस विवाह के लिए ना नहीं कह सके। गांधारी ने अपने बेटे दुर्योधन को इतने श्रेष्ठ संस्कार दिये कि वह अपनी भाभी को अपने कुल के पूर्वजों की उपस्थिति में निर्वस्त्र करना चाहता था। तब ये महान नारी इस महान काम को रोकने आगे नहीं आयी और अपने बेटे को इस महान काम को करने से नहीं रोका। बेटे को कोई दंड भी नहीं दिया। जब द्रोपदी कुरु वंश को शाप देने लगी तब उसने द्रोपदी को रोक दिया। वाह। एक स्त्री ने दूसरी स्त्री की कितनी इज्ज़त की। इससे बढ़िया उदाहरण शायद ही कोई मिले ? 


कैकेयी कितनी महान महिला थी। वो तो राजा दशरथ एक बहुत बड़े अत्याचारी पति थे। जमकर अत्याचार किये थे उन्होंने कैकेयी पर। बेचारी कैकेयी क्या करती ? अत्याचारों का बदला लेने के लिए श्रीराम को बनवास भेज दिया। कितना महान काम किया था उन्होंने। मर्द तो हैं ही इसी लायक। अगर राम ने जो एक मर्द मात्र था, चौदह वर्ष वन में बिता लिये तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा उन पर ? 


एक नवजात बच्चे को नदी में बहाने का काम भी तो माता कुंती ने ही किया था। यदि वह गंगा कि लहरों में समा जाता तो समा जाता। इसमें माता कुंती का क्या दोष ? 


देवयानी ने जबरन ययाति से विवाह किया। देवयानी के पिता गुरु शुक्राचार्य से पंगा लेने की हिम्मत ना तो शर्मिष्ठा के पिता में थी और न ही ययाति में। बेचारा ययाति। शादी करना चाहता था शर्मिष्ठा से लेकिन करनी पड़ी देवयानी से। पर अत्याचारी तो मर्द होते हैं। बार बार उदाहरण भीष्म पितामह का दिया जाता है देवयानी का नहीं। क्योंकि स्त्री के समस्त कार्य बिल्कुल सही होते हैं और मर्द ? मर्द तो कुछ अच्छा करना जानते ही नहीं हैं। 


जहां तक मुझे याद है, दहेज कम आने को लेकर शायद ही किसी पुरुष ने ताने मारे होंगे। मगर सास, ननद तो परियां हैं। वे तो बहू को पलक पांवड़े बिछाकर घर में लाती हैं। लड़की होने पर जो भी अपशब्द कहे जाते हैं वे सब मर्द प्रजाति के द्वारा ही तो कहे जाते हैं। नारियां तो गुणगान करती हैं। कोख में बच्चे मारने का काम केवल पुरुष करते हैं क्योंकि वे तो हैं ही जन्मजात दुष्ट। 


पता नहीं फिर क्यों कोई लड़की इन दुष्टों से विवाह कर लेती है ? आपस में ही दोनों परियां क्यों नहीं विवाह करके बच्चे पैदा कर लेती हैं। अरे हां, याद आया। जिस तरह बच्चे पैदा होने का सारा श्रेय मां को दिया जाता है उससे तो कभी कभी पुरुषों को लगता है कि शायद उनका कोई योगदान नहीं है। जब पुरुषों का कोई योगदान नहीं , उनकी कोई उपयोगिता नहीं तो फिर पुरुषों से विवाह करने की जरूरत ही क्या है ? अनुपयोगी सामान को ड्राइंग रूम में कौन रखता है ? 


फिल्मों में जो नायिकाएं लगभग नग्न नजर आती हैं वे भी मर्दों की वजह से ही हैं। फिल्मों में चांस मिलने के लिए वे सब कुछ करने को राजी हो जाती हैं, इसमें उनका कोई दोष नहीं है। सारा दोष मर्दों का है। 


अत्याचारी मर्द। औरत का अभिशाप झेलने को तैयार हो जाइये। मर्द जाति का उसी तरह सफाया हो जायेगा जिस तरह यदुवंश का हुआ था। फिर धरती पर परियां ही परियां नजर आयेंगी। अद्भुत, अनमोल, अलौकिक। 



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