प्रीत की रीत
प्रीत की रीत
मोहन और लसिका साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं। मोहन को कूची, रंगों से प्यार है तो लसिका को उसके चित्रों से। मोहन के बनाये हर चित्र लसिका के साथ औरों को भी बरबस अपनी ओर खींचते हैं। दोनों के बीच एक समझ है जो बिना कहे ये लोग एक-दूसरे की बात को समझ जाते हैं, सबको लगता कि ये दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन एक बात सिर्फ वो दोनों ही जानते है कि मोहन, लसिका से चार साल छोटा है पर लगता नहीं है।
उसकी बातें उसको उम्र से ज्यादा परिपक्व बताती। मोहन को लसिका से प्यार हो गया है पर उसने लसिका को बताया नहीं, वो सही समय का इंतज़ार कर रहा है। उनका एक बड़ा सपना भी पूरा होने जा रहा है, मोहन के एक चित्र को राष्ट्रीय सम्मान के लिए चुना गया है। उस चित्र की नायिका लसिका है, वो उस दिन अपने प्यार का इज़हार करना चाहता है।
वो दिन भी आता है और 'लसिका मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, बिन तुम्हारे अब रहना सम्भव नहीं, क्या तुम शादी करोगी, मेरी हर तस्वीर की नायिका तुम ही हो।"
"नहीं, मैं शादी नहीं कर सकती तुमसे, प्यार भी नहीं करती मैं, आज के बाद हम नहीं मिलेंगे कभी भी नहीं।"
"ठीक जो तुम्हारी मर्जी लेकिन मैं तुमको दिल की गहराई से चाहता हूँ, तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता, आज के बाद कोई नई तस्वीर नहीं बनेंगी।
लसिका तुरंत वहाँ से आ जाती है। उस दिन के बाद मोहन ने कोई नई तस्वीर नहीं बनाई। उधर लसिका जिसने अपने पिता के दबाव के कारण झूठ कहा। खुद को सज़ा देने के लिए खुद को सँवारना छोड़ दिया क्योंकि मोहन को वो काजल, बिंदी, लाली में बहुत प्यारी लगती थी, जो वो कई बार कह चुका था।
ये सारी बात उसकी करीबी सहेली मीत जानती थी, उनके अलग होने के बाद भी वो दोनों से जुड़ी थी। दोनों ने शादी नहीं करने का फैसला लिया, दोनों ने अलग-अलग जगह पर नया काम शुरू किया पर सच्ची मोहब्बत को भुलाया नहीं जाता, तो कभी-कभी याद करते थे लेकिन कभी मिल नहीं सके। एक दिन किसी दवाई के गलत असर से लसिका की आँखों की रोशनी खत्म हो गई।
आँखों का ऑपरेशन किया गया, पट्टी खोली गई तो उसको दिखना बन्द हो गया था, वो हमेशा के लिए अंधी हो गई थी। उसी समय मोहन वहाँ किसी को खून देने आया हुआ था वो उसकी सहेली ओर लसिका के पापा को देख खुद ब खुद उनके पास गया और सारी बात मालूम हुई। वो उसके पापा से इजाजत ले लसिका के पास जा बोला, "क्या आप राधा बन मेरी जिंदगी में आओगी ?
"कौन हो आप जो मुझ अंधी पर रहम कर रहे हो ?
"मोहन हूँ मैं, क्या आप मेरे लिए अपना श्रृंगार करोगी दुबारा, मैं आज भी दिल से आपको चाहता हूँ, छोटा हूँ चार साल पर बड़ों की तरह ध्यान रखूँगा।"
अपने कंधे पर एक दूसरा स्पर्श पा वो कहती है, "हाँ, क्या तुम अपने चित्र की नायिका को दुबारा चित्रों में उतारोगे।"
"हाँ .... जरूर ....।"