कुर्बानी प्यार की

कुर्बानी प्यार की

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सरकारी विभाग के बड़े अफसर सत्या जी के बंगले की रौनक देखते ही बनती है।

हो भी क्यों न उसके इकलौते बेटे रचित की शादी है वो भी उसकी बचपन की दोस्त और प्यार कुमुद के साथ।

उनका बेटा भी मल्टी कम्पनी में सीनियर पोस्ट पर काम करता है। सब तरफ खुशी ही है। कहते हैं न ज्यादा खुशी को नज़र लग जाती है।

एक फोन आता है एक दिन सुबह सुबह जब सभी थोड़ा नाचने की कोशिश कर रहे हैं।

ट्रिंग ट्रिंग ....

ट्रिंग ट्रिंग ...

सत्या जी खुद फोन उठाते हैं। "क्या, हाँ ....हाँ ठीक आता हूँ मैं अभी।"

बात करते ही वो बिना किसी को जवाब दिए निकल जाते हैं, थोड़ी देर में आने का बोल कर। करीब एक घण्टे के बाद वो आते हैं। पत्नी को बेटे के साथ स्टडी में आने को कहते हैं। "रचित, हमने हमेशा तुम्हारी हर बात मानी है। तुम अपने बचपन के प्यार से शादी करना चाहते हो तो हम उसमें भी खुश है क्योंकि तुम्हारी खुशी हमारी खुशी है। तो हमको ये बताओ कि हमारी परवरिश में कहाँ कमी रह गई जो तुमने ये किया ?

"समझा नहीं पापा ..?

तुमको मालूम है किसका फोन आया था, क्यों आया था ?

"नहीं न तो सुनो ...

"वो फोन खुद कुमुद का था। उसको आज एक लड़की मिली बदहवास हालत में, जो तुम्हारी फ़ोटो लिए सबसे तुम्हारा पता पूछ रही थी। वो पेट से भी है। कुमुद को उस पर दया आई और वो उसको अपने घर ले गई।

"आप किसकी बात कर रहे हो, मेरे को कुछ नहीं समझ आ रहा ..?

"उसकी जिससे तुम चार महीनें पहले अपनी ट्रेनिंग के दौरान उसके शहर में मिले।

उसको अपने प्यार में फंसाया ओर ख़ुद के अंश को उसके भीतर डाला।

तुम तो आ गये दुबारा उसको लेने जाने का वादा कर पर उसकी हालत खराब हो गई जब उसको मालूम हुआ कि उसके प्यार का अंश है उसके भीतर। वो आ गई यहाँ।

" अब तुम बोलो की क्या करना है, वैसे कुमुद और बाकी सब की इच्छा है कि तुम अपनी सन्तान को उसकी माँ के साथ अपनाओ तुमने प्यार का नाटक किया अपनी जरूरत के लिए लेकिन उसने तो सच्चा प्यार कर लिया।

"नहीं नहीं मैं शादी तो कुमुद से ही करूँगा ......

वो ही है मेरा प्यार , मेरी मोहब्बत उसके बिना मैं मर जाऊंगा ....।

"पर ...कुमुद भी यही चाहती है कि तुम उससे शादी करो ....।"

"नहीं मैं भी फैसला ले चुका हूं कि तुम अपनी होने वाली सन्तान को सबके सामने अपनाओ।

"नहीं, ये नहीं होगा .....

आप क्या जानो प्यार क्या होता है ....?

अपने किया ही नहीं तो कैसे जानोंगे की प्यार क्या है उसके बिना क्या होता है ?

तभी चटाक ....चटाक की आवाज़ आती है। रचित की माँ ने उसको मारा....

तुम क्या जानो प्यार क्या है ये आदमी देवता है तुम इनकी सन्तान नहीं हो फिर भी इनकी जान हो।

मुझे भी बहुत पहले तुम्हारे जैसे ही किसी ने झूठे प्यार में फंसा कर तुमको मेरे अंदर डाल छोड़ दिया।

इन्होंने मुझे अपनाया मुझे तो ये जानते भी न थे क्योंकि ये मुझे तब मिले जब मैं अपना शहर छोड़ चुकी थी। खुद को मिटाने के लिए ......

इन्होंने मुझे पूरे सम्मान के साथ अपनाया घरवालों को मेरे सच को खुद की ही गलती बताया।

"पापा जो आप कहेंगे वो मैं करूँगा ......

एक बार कुमुद से माफी जिसका हकदार नहीं पर मांगना चाहता हूं।

उसने साबित किया आज प्यार क्या होता है।


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